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________________ एवं परम्पराओं आदि का अनूठा समन्वय किया है।' 43. सत्यरथी कवि नीरव द्वारा प्रणीत उल्लेखनीय रचना है। सन् 1978 में प्रकाशित हुई। इसमें भगवान महावीर का जीवन प्रतीकात्मक शैली में अभिव्यंजित है। - 44. जय महावीर कवि माणकचन्द्र रामपुरिया की महत्त्वपूर्ण कृति है। सन् 1986 में विकास प्रिन्टर्स एंड पब्लिशर्स, बीकानेर (राजस्थान) द्वारा प्रकाशित हुई है। इसमें 16 सर्ग हैं । जीवनपक्ष की प्रधानता है । कवि ने सैद्धांतिक पक्ष को मात्र स्पर्श ही किया है। 45. त्रिशलानंदन महावीर हिन्दी के प्रसिद्ध हास्य कवि हजारीलालजी 'काका बुन्देलखण्डी' द्वारा 2500 वें वीर निर्वाण वर्ष पर रचित काव्य है। काका साहित्य सदन, सकरार, झाँसी (उ.प्र.) द्वारा प्रकाशित है। इसमें भगवान महावीर के पूर्व तथा वर्तमान जीवनवृत्त का संक्षिप्त 15 शीर्षकों और विविध छंदों में क्रमबद्ध वर्णन है। अनेक स्थलों पर नवीन कल्पनाओं के प्रतीक शब्द चित्र हैं । कवि ने कथानक को सशक्त बनाने में कल्पना की बजाय श्रद्धा - भक्ति से अधिक सहारा लिया है। इस रचना में चंदना से संबंधित 2 चित्र भी दिये हैं। भाव और भाषा की दृष्टि से सफल रचना है। - 46. महावीर हिन्दी में श्री गेंदालालजी सिंघई (अशोकनगर ) द्वारा रचित 'महावीर' काव्य का उल्लेख मिलता है। यह अप्रकाशित है। इसका कुछ अंश 'राजमाता' शीर्षक से सन्मति संदेश, महावीर जयंती विशेषांक, अप्रैल मई 1957, पृ. 36 में प्रकाशित हुआ है। - Jain Education International - भगवान महावीर के जीवन वृत्त से संबंधित महाकाव्यों के अतिरिक्त खंडकाव्य एवं स्फुट काव्य परम्परा भी मिलती है। कवि धन्यकुमार जैन 'सुधेश' (नागौद ) द्वारा विरचित 'विराग' (वीर निर्वाण संवत् 2476) भावपूर्ण खंडकाव्य है। सन् 1951 में भारतवर्षीय दिगम्बर जैन संघ, मथुरा द्वारा प्रकाशित हुआ है। इसमें भगवान महावीर की उत्कृष्ट वैराग्य भावनाएँ 5 सर्गों की 1564 पंक्तियों में सुगठित हैं। इसमें तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक स्थिति, भगवान महावीर का अन्तर्द्वन्द्व तथा अपने माता-पिता से वैराग्योन्मुख होने का तर्क सम्मत संवाद शैली में प्रस्तुति है । कवि उदयचन्द 'वत्सल', दमोह ने 'नाथपुत्र' खंडकाव्य लिखा । 5 सर्गो की यह रचना सम्राट चन्द्रगुप्त साहित्य सदन, जबलपुर द्वारा सन् 1953 में प्रकाशित हुई है। सोहनराज कोठारी कृत 'महावीर : मेरी अनुभूतियों में' (काव्य संग्रह) शिल्पा प्रकाशन, कोटा से सन् 1974 में प्रकाशित हुआ । इसमें 74 विविध शीर्षकों में छोटी छोटी कवितायें केन्द्रित हैं। वर्धमान सूरि ने राजस्थानी हिन्दी में 'वीर जिणेसर पारणउ' (43 गाथाएँ), जिनेश्वर सूरि (द्वितीय) ने तथा जयमंगल सूरि ने भी 'महावीर जन्माभिषेक' पद्य रचना 13वीं शती में की। मरुगुर्जर भाषा में अभयतिलक गणि कृत 'महावीर रास' ( 21 पद्य), जिनभद्रसूरि ने 'महावीर गीत' (सं. 1475) तथा भावसुन्दर ने 'महावीर स्तवन' (15वीं शती) लिखा । राजस्थानी हिन्दी में नन्नसूरि ने 'महावीर सत्ताईस भव' (सं. 1560 ) लघुकाव्य लिखा, उसका संकलन लालचन्द जैन ने किया ऐसा उल्लेख मिलता है। विक्रम की 16वीं शताब्दी में भट्टारक शुभचन्द्र ने महावीर छन्द' (27 पद्य), अज्ञातकवि ने 'महावीर वीनती' ( 14 कड़ी, सं. 1520), समरचन्द्र ( समरसिंह) ने 'महावीर स्तवन' (सं. 1607), देवीदास द्विज ने 'महावीर स्तोत्र षडारक' (वि.सं. 1611 ) की रचना की । षडारक यह चैत्यवंदनस्तुति स्तवनादि संग्रह भाग 3 में प्रकाशित हुए। देवचन्द ने 'महावीर 27 भव स्तवन' (सं. 1695 के आसपास), नगर्षि गणि ने 'बडलीमंडनबंध हेतु गर्भित वीर जिन विनति स्तवन' लिखा। 53 कड़ी की यह रचना सं. 1698 से पूर्व की है। इनकी दूसरी रचना 'श्री महावीर स्तवन' (39 कड़ी) है। कवि हंसराज ने 'वर्धमान जिन पंचकल्याणक स्तव' 100 कड़ियों में सं. 1652 से पूर्व लिखा है, जो 'चैत्य आदि संज्झाय' में प्रकाशित हुआ । विक्रम की 17वीं 23 अर्हत् वचन, अप्रैल 2001 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526550
Book TitleArhat Vachan 2001 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2001
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size14 MB
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