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________________ शती में सकलचन्द्र उपाध्याय ने 'वीर वर्धमान जिन बेलि', 'महावीर हींच' तथा 'महावीर जिन स्तवन', समयसुंदर ने 'वीर स्तवन काव्य', लालविजय ने 'विशाल स्तवन काव्य', भट्टारक रत्नकीर्ति ने 'महावीर गीत' लिखे । इसी शती में गुणहर्ष ने 'महावीर निर्वाण' (दीपमालिका महोत्सव ) 10 ढालों में लिखा, जो 'चैत्यवंदनस्तुति स्तवनादि संग्रह' भाग 1, 2, 3 में प्रकाशित है। इसके साथ ही ज्ञानउद्योत कवि की 'महावीर विवाहलो', 'महावीर को नखशिख' (सं. 1760 के लगभग) तथा 'वीर चरित्र बेलि' (सं. 1825) भी उल्लेखनीय है। महीचन्द्र ने 'महावीर पालना' 16 कड़वकों में लिखा । बीसवीं सदी में खड़ी बोली में भगवान महावीर संबंधी शतक काव्य, चित्रशतक तथा पुष्कल काव्य रचना हुई है। सन् 1939 में पुष्पभिक्षु ने 'वीर स्तुति' लिखी । श्री धन्यकुमार जैन 'सुधेश' ने 'वीरायण' (सन् 1952 ) राधेश्याम कथावाचक की शैली पर लिखा । यह सुधेश साहित्य सदन, नागौद से सन् 1952, सं. 1960 में प्रकाशित हुआ । इस स्फुट काव्य में कलियुग में जनकल्याणकारी संदेश समाहित हैं। श्री खूबचन्द्र जैन 'पुकल' की 'वीर अवतार', सुश्री सुन्दरबाई जैन की 'अहिंसा का पुजारी, श्री रतनचन्द रत्नेश की 'वीरावतार', सुश्री प्रतिभा जैन अलीगंज की 'सत्य अहिंसा के उन्नायक', श्री चंपालाल सिंघई 'पुरंदर' की 'वीरोदय', लक्ष्मीचन्द रसिक की 'जियो और जीने दो', श्री लक्ष्मीचन्द सरोज की 'सत्य अहिंसा की निधि' आदि ये स्पुट रचनायें सन्मति संदेश- महावीर जयंती विशेषांक, अप्रैल मई 1957 में प्रकाशित हुई हैं। श्री कमलकुमार 'कुमुद', खुरई के 'महावीर श्री चित्र शतक' काव्य में 249 पद्य हैं, इसे सन् 1974 में पन्नालाल जैन आर्किटेक्ट, दिल्ली ने प्रकाशित किया है। लक्ष्मणसिंह चौहान 'निर्मम', सागर ने मुक्त छंद में 'हे निर्ग्रन्थ', मुनि कन्हैयालाल ने 'महावीर चालीसा', मुनि नवरत्नमल ने 'महावीर दोहावली' की रचना की है। हुकमचन्द जैन 'अनिल' का 'महावीर की मानवता' काव्य सन् 1973 में प्रकाशित हुआ है। सन् 1974 में कुंथुसागर स्वाध्याय सदन प्रकाशन, खुरई (म.प्र.) से रमेश सोनी 'मधुकर' की कृति 'ज्योतिर्मय' (पद्य) प्रकाशित हुई है। वीरेन्द्रकुमार जैन का 'भगवान महावीर ' पद्य श्री वीर निर्वाण ग्रंथ प्रकाशन समिति, इन्दौर (सन् 1974 ) से प्रकाशित हुआ है। सन् 1974 में भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली से राम भारद्वाज का 'महावीर गीतिका' प्रकाशित हुई है। रमेश रायजादा ने 'मंगलरथ' महावीर शतक काव्य लिखा, जो तीर्थंकर नैतिक शिक्षा प्रकाशन, नजीबाबाद (उ.प्र.) से सन् 1974 में प्रकाशित हुआ है। साध्वी अणिमाश्री की 'महावीर गीतिका' में वंदे मातरम् का स्वर अनुकरणीय है। डॉ. निजामुद्दीन की 'जितेन्द्र महावीर' सरल एवं सुबोध कृति है। श्री वीरेन्द्रप्रसाद जैन की वीर कवितांजलि स्फुट काव्य संग्रह 'वंदना' सन् 1975 में महावीर प्रकाशन, अलीगंज, एटा से प्रकाशित हुआ है। ओमप्रकाश सारस्वत 'द्रोणाचार्य' की 'महावीर वाणी' सन् 1975 में प्रकाशित हुई। नईम ने तीर्थंकर महावीर के सन्दर्भ में नवीनतम काव्यविधा 'नवगीत' की रचना की है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि विविध भाषाओं के रचनाकारों ने भगवान महावीर के जीवन से जुड़े उन पक्षों को उद्घाटित किया है, जो सम्पूर्ण मानव जाति की प्रेरणा और मार्गदर्शन का अनन्य स्रोत है। अनेक ग्रंथों की रचनावधि और रचनाकार के विषय में अनिश्चितता के बावजूद भी यह पूरे निश्चय के साथ कहा जा सकता है कि भगवान महावीर की प्रासंगिकता को लेकर रचनाकार आज भी रचना कर्म में जुटे हुए हैं। भविष्य में भी भगवान महावीर का चरित्र रचनाकारों को जीवन और लेखन संबंधी सभावनाऐं देता रहेगा, ऐसी आशा है। 24 Jain Education International For Private & Personal Use Only अर्हत् वचन, अप्रैल 2001 www.jainelibrary.org
SR No.526550
Book TitleArhat Vachan 2001 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2001
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size14 MB
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