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पर अथक परिश्रम के द्वारा 'वीरायन' की रचना की। इसमें 15 सर्ग हैं। कवि ने भगवान महावीर के वर्णन के साथ - साथ जनकल्याण एवं राष्ट्रोद्धार की बात कही। अतीत के साथ वर्तमान भारत की समस्याओं, कुरीतियों, अभावों का निरूपण कर उनके समाधान हेतु भगवान महावीर की प्रासंगिकता सिद्ध की है। महावीर स्वामी के चरित्र द्वारा 'विश्व के लिये शिव की प्राप्ति होना' ही कवि की कामना है। इसमें 'युवा राजकुमार वर्धमान' का चित्र 'वनपथ सर्ग' से पूर्व दिया है। 36. चरम तीर्थंकर महावीर - सन् 1975 में श्री राजेन्द्र प्रवचन कार्यालय श्री मोहनखेड़ा तीर्थ, राजगढ़ (म.प्र.) से प्रकाशित हुआ। इसके रचयिता श्रीमद् आचार्य विजयविद्याचन्द्र सूरि तथा सम्पादक पंडित मदनलाल जोशी हैं। इसका आधार श्वेताम्बर परम्परा है। कवि ने चित्रकार टी.जी. शर्मा, अहमदाबाद के 41 रंगीन चित्रों से सज्जित किया है। काव्य और चित्रकलाओं की अटूट मैत्री से भगवान महावीर का जीवन वीर छंद में प्रस्तुत किया है। 37. बंधन मुक्ति - कवयित्री साध्वी मंजूला ने इसका सृजन किया। सन् 1975 में आदर्श साहित्य संघ, चुरु (राजस्थान) से प्रकाशित हुआ। कथावस्तु 9 सर्गों में संयोजित है। इसमें भगवान महावीर के जीवन घटनाक्रम के साथ चंदना की उद्धार कथा, स्याद्वाद, अहिंसा, अपरिग्रह आदि सिद्धान्तों एवं उपदेशों का वर्णन हुआ है। 38. भगवान महावीर - प्रस्तुत कृति के प्रणेता श्री रामकृष्ण शर्मा हैं। यह सन् 1975 में सरस्वती सदन, भरतपुर (राजस्थान) से प्रकाशित हुई। इसमें 21 सर्ग हैं। प्रत्येक सर्ग में एक रस और एक छंद प्रयुक्त हुआ है। यह रचना 'राष्ट्रीय एकता, अखंडता एवं विश्वशांति के लिये समर्पित' है। इइमें भारत की तत्कालीन परिस्थितियों, भगवान महावीर का जीवनवृत्त तथा जैन दर्शन का तात्विक विवेचन किया गया है। 39. विश्व ज्योति महावीर - इसकी रचनावधि विक्रम संवत् 2031 तथा रचनाकार श्वेताम्बर यति श्री गणेशमुनि शास्त्री हैं। सन् 1974 में अमर जैन साहित्य संस्थान, उदयपुर (राजस्थान) से प्रकाशित हुआ है। सम्पूर्ण काव्य 3 खंडों और 43 शीर्षकों में विभक्त है। 'मंगलप्रवेश में दोहा छंद को छोड़कर आद्योपांत एक ही छंद प्रयुक्त हुआ है। 40. श्री महावीरायण (महावीर चरित्र मानस) - इसके रचयिता पंडित रतनचन्द कौछल (म.प्र.) हैं तथा इसका रचनाकाल सम्वत् 2502 है। सन 1976 में गोपीचन्द राजेन्द्रकुमार सोधिया, महाराजपुर (म.प्र.) ने प्रकाशित किया। इसमें 6 कांडों में कई शीर्षक एवं उपशीर्षकों में भगवान महावीर का जीवनवृत्त समाहित है। यह अवधी भाषा में रामचरितमानस की शैली पर दोहा - चौपाई छन्द की सुन्दर रचना है। सवैया, सोरठा आदि छन्दों का भी प्रयोग हुआ है। इसमें जैन सिद्धान्त का विस्तृत वर्णन है। कवि ने भगवान महावीर की माता त्रिशला की स्मृति स्वरूप 'विश्व महिला दिवस' पर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को समर्पित कर नारी के प्रति सम्मान प्रकट किया है। 41. श्रमण भगवान महावीर चरित्र - इसका प्रणयन कवि अभयकुमारजी 'यौधेय' ने किया। यह भगवान महावीर प्रकाशन संस्थान, मेरठ से सन् 1976 में प्रकाशित हुआ है। संपूर्ण कथा श्वेताम्बर मान्यतानुसार 9 सोपानों में विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत संघटित है। 42. तीर्थंकर महावीर - इसका सृजन अवन्तिका के कवि छैलबिहारी गुप्त ने मुनि श्री विद्यानंदजी की प्रेरणा से मात्र पाँच माह में सन् 1975 में किया। यह वीर निर्वाण ग्रंथ प्रकाशन समिति, इन्दौर द्वारा सन् 1976 में प्रकाशित हुई। इसमें भगवान महावीर का चरित्र 8 शीर्षक विहीन सर्गों में समाहित है। पद्मश्री बाबूलालजी पाटोदी ने लिखा है - 'यद्यपि कवि जैन संस्कारों में पला हुआ नहीं है फिर भी उन्होंने काव्य, इतिहास, धार्मिक मान्यताओं
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अर्हत् वचन, अप्रैल 2001
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