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________________ TTSENTE को समर्पित की गई। (विस्तृत समाचार पृ. 82 पर देखें) पुरस्कृत विद्वानों का परिचय देने वाली स्वसम्पादित पुस्तिका के विमोचन के साथ डॉ. अनुपम जैन ने पुरस्कार योजना का वर्ष 2000 की प्रगति का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। उन्होंने पुरस्कार योजना के स्वरूप, आवश्यकता एवं उपादेयता पर प्रकाश डाला। - श्री निर्मल जैन सतना, डॉ. अशोककुमार जैन लाड़नूं, डॉ. बच्छराज दूगड़ - लाडनूं, डॉ. शुमचन्द्र - मैसूर एवं डॉ. (श्रीमती) कृष्णा जैन ग्वालियर द्वारा पुरस्कृत विद्वानों के परिचयोपरान्त आदरणीय साहूजी, श्री पांड्याजी, डॉ. शास्त्री, श्री योगेशजी, श्री हंसकुमारजी एवं दिगम्बर जैन समाज, अलवर के प्रतिनिधियों ने पुरस्कृत विद्वानों को सम्मानित किया। मंचासीन अन्य विद्वत् जनों का भी अलवर समाज द्वारा सम्मान किया गया। सम्पूर्ण सम्मान समारोह की आयोजना में अलवर समाज के गौरव, परम मुनिभक्त श्री बच्चूसिंहजी का उल्लेखनीय योगदान 00 रहा। पुरस्कृत विद्वानों की ओर से बोलते हुए संहितासूरि पं. नाथूलालजी जैन शास्त्री ने कहा कि यह सम्मान किसी व्यक्ति या विद्वान् का सम्मान नहीं अपितु यह सरस्वती का है। श्री निर्मल सम्मान जैन - सतना ने कहा कि यह व्यक्ति का नहीं, व्यक्तित्व का सम्मान है। इन पुरस्कारों से प्रतिभाओं का उत्साहवर्द्धन एवं उनके कृतित्व का मूल्यांकन होता है। समाज का यह दायित्व है कि वह ऐसे दिव्य ललाम सुधीजनों के प्रति पं. नाथूलाल जैन शास्त्री समारोह को सम्बोधित करते हुए कृतज्ञता प्रकट करने हेतु उनका अभिनन्दन करे। साहू रमेशचन्दजी जैन ने अपने वक्तव्य में इन पुरस्कारों पर हर्ष व्यक्त किया एवं विद्वानों को अधिक से अधिक पुरस्कृत एवं सम्मानित करने की प्रेरणा दी। श्री उम्मेदमल पांड्याजी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में विद्वानों का अभिनन्दन करते हुए उन्हें श्रुत देवता के भंडार में निरन्तर वृद्धि करते रहने की बात कही एवं विद्वानों से यह अपेक्षा की कि माँ जिनवाणी के ये लाल निरन्तर ही जिनवाणी की सेवा करते रहें। श्रुत संवर्द्धन संथ पुरस्कार समर्पण समा परमपूज्य उपाध्याय 108 श्री ज्ञानसागरजी महाराज ने अपने आशीर्वादात्मक मंगल उद्बोधन में कहा कि विद्वान् समाज एवं साहित्य रूपी मंदिर के स्वर्ण कलश हैं। जैसे कलश के बिना मंदिर की वैसे ही विद्वान् के बिना साहित्य, समाज की गरिमा में निखार नहीं आता है। अतः विद्वानों का सम्मान समाज का प्रमुख कर्तव्य है। आपने विद्वानों का आह्वाहन किया कि वे अपनी लेखनी से समाज में व्याप्त अनैतिकता, हिंसा एवं कुरीतियों पर प्रहार कर वात्सल्य, अहिंसा एवं नैतिकता की स्रोतस्विनी प्रवाहित करें, जिससे कि समाज में, राष्ट्र में, विश्व में शांति एवं भाईचारा स्थापित हो सके। कार्यक्रम का सशक्त संचालन एवं संयोजन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ के सचिव डॉ. अनुपम जैन ने किया। * सहायक प्राध्यापक - संस्कृत, शा. महारानी लक्ष्मीबाई कला एवं वाणिज्य स्वशासी महाविद्यालय, ग्वालियर 474001 (म.प्र.) सहायक प्राध्यापक हिन्दी, एस. आर. के. महाविद्यालय, फिरोजाबाद 283203 (उ.प्र.) अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000 80 **
SR No.526548
Book TitleArhat Vachan 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size6 MB
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