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________________ रखे जा सके होंगे। हमनें क्या किया . हमने पूर्व की तीनों पंजियों को निरस्त करके नई सूची व्यवस्थित की है। इसका प्रथमत: आधार बनाया भण्डार का पुराना रजिस्टर। - सभी ग्रंथों को अलमारियों से बाहर निकालकर प्रत्येक ग्रन्थ को चेक किया गया। प्रारम्भ या प्रशस्ति से उसका नाम मिलाया गया। पुराने रजिस्टर में 1051 प्रविष्टियाँ थीं। इससे आगे अन्य दो रजिस्टरों से विवरण मिलान करते हुए शास्त्रों और वेस्टनों पर अग्र संख्याएँ अंकित की गई। . हम कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर से कैटलॉग कार्ड भी ले गये थे। जिन वेस्टनों में एक से अधिक ग्रंथ व्यवस्थित किये गये उनमें बाहर सेफ्टी पिन से कार्ड संलग्न कर दिया गया है। उसमें उस वेस्टन के शास्त्रों के नाम और नम्बर अंकित किये गये। वेस्टनों पर नम्बर अंकित करने के लिये स्लिपें लगाई व स्केच पेन से वेस्टन (कपड़े) पर भी नम्बर लिखे। . व्यवस्थीकरण के दौरान कीडे लगे शास्त्रों के बस्तों को ग्रंथ भण्डार के बाहर निकालकर साफ किया, चार दिन तक सुखाया, पुन: साफ किया और व्यवस्थित करके रखा। जो वेस्टन खराब हो रहे थे उन्हें बदला, जिन शास्त्रों के साथ कुछ आधार नहीं था उनमें कूट - गत्ता लगाकर सुरक्षित किया। . व्यवस्थित सूचीबद्ध कुल ग्रंथ संख्या 1374 हुई। श्री इन्दुजी एवं कोठियाजी को पुनर्स्चीकरण के समय पुरानी सूची के अनुसार जो 103 ग्रंथ नहीं मिले थे उनमें से हमें 36 ग्रंथ प्राप्त हुए। शेष 68 ग्रंथों सहित कुल 123 ग्रंथ हमें नहीं मिले जिनको कि पहले 2-3 स्तरों में विवरण तैयार कर सूचीबद्ध किया गया था। - शास्त्रों के लिये पहले 6 आल्मारियाँ थी, हमने एक अलमारी और खाली करवाकर 7 आलमारियों में शास्त्रों को व्यवस्थित किया। अलमारी नं. 1 - इसमें व्यवस्थित ग्रंथ - परिग्रहण संख्या 1 से 245 तक अनुपलब्ध ग्रंथ क्रमांक - 5, 6, 9, 69, 70, 73, 80-95, 122, 130, 140, 148, 149, 162, 188-191, 195, 203, 217, 233, 234, 239. अलमारी नं. 2 - इसमें व्यवस्थित ग्रंथ-परिग्रहण संख्या 246 से 500 तक __ अनुपलब्ध ग्रंथ क्रमांक - 264, 358, 359, 360,361, 446, 447, 456, 466 अलमारी नं. 3 - इसमें व्यवस्थित ग्रंथ-परिग्रहण संख्या 501 से 800 तक अनुपलब्ध ग्रंथ क्रमांक - 505, 506, 530-532,564,579-586, 595, 614, 655, 567-680, 682 - 689, 691, 697, 741, 745, 747, 758, 776 अलमारी नं. 4 - इसमें व्यवस्थित ग्रंथ-परिग्रहण संख्या 801 से 1000 तक अनुपलब्ध ग्रंथ क्रमांक - 814,855, 953,954-956, 973, 979 अलमारी नं. 5 - इसमें व्यवस्थित ग्रंथ - परिग्रहण संख्या 1001 से 1280 तक अनुपलब्ध ग्रंथ क्रमांक - 1053, 1280 अलमारी नं. 6 - इसमें व्यवस्थित ग्रंथ - परिग्रहण संख्या 1281 से 1374 तक अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000
SR No.526548
Book TitleArhat Vachan 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size6 MB
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