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व्यक्ति जिसे पाँच जीवों ने घेरा हुआ है। दायीं ओर से पशुओं का क्रम है गेंडा, भैंसा, मृग, शेर और हाथी।
8 मृग की उपस्थिति के विषय में उल्लेखनीय है कि 'वह' युगल रूप में आसन के नीचे, विपरीत दिशाओं में गर्दन घुमाये हए दर्शाये गये हैं। मानों वे उपरोक्त व्यक्तित्व के वाहन के प्रतीक हों।
सनी यहाँ सोम, चन्द्र के माध्यम से शिव के व्यक्तित्व से जुड़ता है। और शिव अपनी मूल अवधारणा में ऋषभ के पर्यायवाची प्रतीत होते हैं। इससे क्या हम निष्पत्ति निकाल सकते हैं कि सोमत्व ही शिवत्व या केवलज्ञान अथवा अमृत है? इसी प्रकार यदि ऋषभदेव को, ऐतिहासिक अवधारणा से ऊपर उठकर
पहचानने का प्रयास करें, तो क्या वे दिन रात की तरह दो विपरीत मगर समान काल खण्डों के, सूर्योदय अथवा दूज के चांद
के समान मिलन बिन्दु का मानवीकरण हैं? 8. मेधिवृत में जुते हुए पशुओं, मुक्त होओ21 (धौलावीरा, कच्छ, गुजरात की गढी के
उत्तरी द्वार पर अंकित धर्म संदेश) - मेधिवृत जग प्रवृत पशु भव भ्रम् वृत, पशुवत होकर मानव समाज (जग) मेधिवृत में जुतकर चक्कर लगाता है।
यह संदेश हड़प्पा के दस चिन्हों के माध्यम से उपरोक्त द्वार के शीर्ष पर, 'मोजाइक' पद्धति से सम्भवत: काष्ट फलक पर बनाया गया था, जो पुरातत्त्ववेत्ता डॉ.
आर. एस. बिष्ट को द्वार मार्ग के पास वाले बरामदे में उलटा पड़ा मिला है। जैसा कि वाचन - प्रयास से उपलब्ध शब्दों से ज्ञात होता है, धर्म संदेश का यह मात्र आधा भाग है, दूसरा पूर्ण करने वाला शेष भाग, द्वार मार्ग के दूसरी ओर अंकित रहा होगा, या फिर इस फलक के नीचे एक दूसरी पंक्ति भी लिखी गई होगी जो अब नष्ट
हो गई है। सन्दर्भ ग्रंथों की सूची - 1. द इण्डस स्क्रिप्ट, इरावती महादेवन, भारतीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण निदेशालय, नई दिल्ली, 1977. 2. संस्कृत इंग्लिश डिक्शनरी, सर मोनियर विलियम्स, मुन्शीराम मनोहरलाल पब्लिशर्स प्रा. लि.,
नई दिल्ली, तृतीय पुनरावृत्ति, 1988. 3. जैन सब्जैक्ट मैटर ऑन द हड़प्पन सील्स, डॉ. रमेश जैन, ऋषभ सौरभ, ऋषभदेव प्रतिष्ठान,
नई दिल्ली, 1992, पृ. 113-116. 4. टेस्ट डिसाईफरमेंट आफ द हड़प्पन इंस्क्रिपशन्स, डॉ, रमेश जैन (शोध पत्र भारतीय पुराभिलेखन
परिषद् के 26 - 39 अप्रैल 2000 को इरोड़, तमिलनाडु में सम्पन्न वार्षिक अधिवेशन में प्रस्तुत किया गया)। 5. इण्डिया इन ग्रीस, ई. पोकाक, ओरिएण्टल पब्लिशर्स, देहली, भारत, वर्ष 1972 (पुनरावृत्ति)। 6. स्टडीज इन प्रोटो- इण्डो - मैडीटरेनियन कल्चर, फादर ह. हेरास, इण्डियन हिस्टॉरिकल रिसर्च
इन्स्टीट्यूट, मुम्बई, 1953, पृ. 170 - 181. अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000
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