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________________ में उपस्थिति (इण्डिया इन ग्रीस)। इस ग्रंथ में वह यूनान देश के प्राचीन इतिहास की विसंगतियों का अध्ययन प्रस्तुत करते हुए सविस्तार बताता है कि प्रारम्भिक दौर में यूनान के मूल निवासी अत्यंत दीन-हीन अवस्था में निवास करते थे। उन्हें भारत से विस्थापित होकर आये श्रमणिक समुदाय के लोगों ने न सिर्फ सभ्यता का पाठ पढ़ाया, बल्कि उनको धार्मिक, पौराणिक और भाषाई पहचान भी प्रदान की। इसी श्रेणी के दूसरे विद्वान् हैं प्रसिद्ध ईसाई पादरी - फादर हेरास। आप हड़प्पा की लिपि के प्रारम्भिक अध्येताओं में से एक हैं। आपने भारत के साथ - साथ योरोप और मध्य एशिया के विभिन्न देशों के प्राचीन इतिहास और वहाँ प्रचलित भाषाओं का गहन अध्ययन किया। और उस आधार पर हहप्पा के लेखन को समझने का प्रयास किया। अपने ग्रंथ - स्टडीज इन प्रोटा - इण्डो- मैडीटरेनियम कल्चर, में आपने प्राचीन इराक देश के सुमेरियन नामक सांस्कृतिक स्तर पर 'अन' नामक देवता का जिक्र किया है। जिसके विषय में वे विस्तार से वर्णन करते हैं। और वहाँ की खुदाई से प्राप्त उसकी कांस्य प्रतिमाओं के फोटोग्राफ प्रस्तुत करते हुए उसकी समानता हड़प्पा की संस्कृति से उपलब्ध मूर्ति शिल्पों और बाद के भारतीय ऐतिहासिक व पौराणिक व्यक्तियों में देखते हैं। सुमेरी 'अन' के खोफजे नामक स्थान से उत्खनित मूर्तियों की कुछ विशेषताएँ उन्होंने गिनाई हैं, वे उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं - अ. मूर्ति सदा नग्न अवस्था में प्रस्तुत की गई है। ब. बहुधा मूर्ति के कन्धों पर बालों की दो लटें प्रदर्शित की जाती हैं, जबकि उसके सिर के शेष हिस्से में बालों का अभाव दर्शाया गया है। स. मूर्ति के सिर पर चारों ओर चार फलकों वाला त्रिशूल दर्शाया जाता है। द. ताँबे की इन मूर्तियों में आँखें अलग से भरकर बनाई जाती हैं। ह. मूर्ति की कमर के चारों ओर रस्सी या पट्टीनुमा कोई चीज लिपटी हुई दिखाई जाती फ. 'अन' की मूर्तियों के साथ उसी रूपाकार की, दो थोड़ी छोटी मूर्तियाँ भी मिलती हैं, इनमें से कभी - कभी एक नारी मूर्ति भी होती है। 'अन' की इन मूर्तियों में, नग्नता, कन्धों तक फैली बालों की लटें, सिर के ऊपर स्थापित त्रिरत्न या एक ही समय में चारों ओर देख पाने की क्षमता के प्रतीक की उपस्थिति और भारतीय जैन मूर्तियों की परम्परा के समान मात्र मूर्ति की आंखों को भरकर (इनले की पद्धति से) बनाने की परिपाटी का अनुकरण इत्यादि विशेषताएँ उसे सीधे हड़प्पा संस्कृति के माध्यम से जैनों की ऋषभदेव की मूर्ति- परम्परा से जोड़ती हैं। यहाँ यह बताना समीचीन होगा कि 'अन' नाम 'अंङ्क' शब्द या फिर इण्डो योरोपियन शब्द 'वन' (अंग्रेजी) का पूर्वज रहा होगा जो ऋषभदेव के पर्यायवाची. 'आदि' का समान धर्मा है। इस पर फादर हेरास का यह कथन महत्वपूर्ण हो जाता है कि सांस्कृतिक प्रवाह की धारा तब भारत अर्थात् हड़प्पा संस्कृति से सुमेर की ओर थी। इसकी पुष्टि सर जॉन मार्शल के उस वक्तव्य से भी होती है जो हड़प्पा संस्कृति की खोज को स्थापित करने के तुरन्त बाद 1923-24 में उन्होंने दिया था। अपने समय के श्रेष्ठ पुरातत्त्वविदों की अनुशंषाओं को ध्यान में रखते हुए उसमें उन्होंने सम्भावना व्यक्त की थी कि भारत ही मानव संस्कृति का प्रथम झूलाघर रहा होगा। हड़प्पा लिपि के अध्ययन से जुड़ी कुछ विसंगतियाँ : अत: हड़प्पा संस्कृति की लिपि के अध्ययन से उभरते जैनों के आचरण संबंधी अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000
SR No.526548
Book TitleArhat Vachan 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size6 MB
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