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________________ श्री त्रिलोकचन्दजी जैन का दु:खद निधन अर्हत् वचन के सम्पादक, कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर के सचिव तथा गणिनी ज्ञानमती शोधपीठ, हस्तिनापुर के निदेशक, गणितज्ञ डॉ. अनुपम जैन के पूज्य पिता श्री त्रिलोकचंद जी जैन का 4 अक्टूबर 2000 को राजगढ़ (ब्यावरा) में आकस्मिक निधन हो गया। धार्मिक प्रवृत्ति के धनी स्व. श्री जैन क्रॉकरी के थोक व्यवसायी थे तथा अपने व्यवसाय से संबंधित कार्य से ब्यावरा से राजगढ़ गये हुए थे। राजगढ़ से खिलचीपुर जाते समय बस - ट्रक दुर्घटना में उनका दुःखद निधन हो गया। बुलंदशहर (उ.प्र.) के छतारी ग्राम में 10 मई 1936 को जन्मे स्व. श्री त्रिलोकचंद जैन प्रारंभ से ही प्रतिभाशाली एवं उद्यमशील रहे। अपने पिता श्री रेवतीप्रसाद जी जैन के शीघ्र ही निधनोपरांत उन्होंने ही अपने छोटे भाई - बहिनों के विवाह एवं समस्त पारिवारिक उत्तरदायित्व का कुशलतापूर्वक निर्वाह किया। सन 1958 में अपना जन्म स्थान छोड़कर ग्वालियर एवं फिरोजाबाद में नौकरी की। पश्चात स्वयं का ग्लास एवं क्रॉकरी व्यवसाय किया। अपने प्रतिभावान एकमात्र सुपुत्र डॉ. अनुपम जैन के म.प्र. शासकीय महाविद्यालयीन सेवा में प्रवेश के पश्चात् 1990 में अपनी धर्मपत्नी श्रीमती इन्द्रा जैन सहित ब्यावरा (म.प्र.) आ गये। इसके पूर्व उन्होंने अपने सुपुत्र सहित चारों सुपुत्रियों (उपमा, सरिता, संध्या व शालिनी) के विवाह भी सम्पन्न कर अपने प्रमुख दायित्व से मुक्ति पा ली थी। किन्तु अपनी स्वाभिमानी व स्वावलम्बी वृत्ति के कारण, शारीरिक प्रतिकूलताओं के बावजूद वे जीवन की अंतिम श्वांस तक संघर्षरत रहे। निश्चित ही यह उनके पुण्योदय का ही सुफल था कि वर्ष 1995 में उन्होंने अपने सुपुत्र डॉ. अनपम जैन को. जम्बद्वीप हस्तिनापर में, परमपज्य, गणिनीप्रमख, आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के नाम से घोषित प्रथम गणिनी ज्ञानमती पुरस्कार (एक लाख रु. एवं प्रशस्ति) से सम्मानित होते हुए देखा। इस सुअवसर पर उन्होंने अपने समस्त संबंधी व आत्मीयजनों को हस्तिनापुर आमंत्रित कर उनका यथोचित सम्मान भी किया। ब्यावरा (राजगढ) में 5 अक्टूबर 2000 को उनका अंतिम संस्कार हुआ जहाँ पुत्र डॉ. अनुपम जैन ने मुखाग्नि दी। स्थानीय जैन समाज के अतिरिक्त अनेक प्राध्यापक, समाजसेवी एवं जैनेतर बंधु भी उनकी अंत्येष्टि में सम्मिलित हुए। तीसरे का उठावना 7 अक्टूबर को डॉ. अनुपम जैन के निवास "ज्ञानछाया'' डी-14, सुदामानगर, इन्दौर पर हुआ जिसमें बड़ी संख्या में दिग. जैन महासमिति एवं दि. जैन महिला संगठन के पदाधिकारी, जैन समाज के वरिष्ठजन, प्राध्यापकगण एवं आत्मीयजन भी सम्मिलित हुए। देश-विदेश से अनेक शीर्षस्थ मनीषी विद्वान एवं विभिन्न संस्थाओं से भी संवेदना पत्र प्राप्त हुए और निरंतर प्राप्त हो रहे हैं। देश की अनेकानेक पत्र - पत्रिकाओं द्वारा भी उनको श्रद्धांजलि प्रकाशित की जा रही है। दिवंगत आत्मा को कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ परिवार की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि एवं शोक संतप्त परिवारजनों के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त की गई। जयसेन जैन सम्पादक-सन्मति वाणी
SR No.526548
Book TitleArhat Vachan 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size6 MB
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