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ज्ञानपीठ के प्रांगण से मत- अभिमत
मैंने कुन्दकुन्द ज्ञानपा निष्ठा और उनका पाठ निरन्तर वृद्धि करणा- प्रो. (डॉ.) सुदर्शविद्यालय,
आज मैंने कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ की व्यवस्था तथा ग्रन्थालय को देखा। दोनों को देखकर प्रसन्नता का अनुभव हुआ। डॉ. अनुपम जैन की निष्ठा और उनकी समर्पण की भावना श्लाघनीय है। उन्हीं की निष्ठा का यह प्रतिफल है। आशा करता हूँ कि उनके संरक्षण में यह ज्ञानपीठ निरन्तर वृद्धि करेगा। 21.8.99
पूर्व प्राध्यापक - संस्कृत विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय,
वाराणसी
मैंने आज शोध संस्थान को विस्तृत रूप से देखा। जो कार्य इन्होंने किया है वह सराहनीय है। लगता है कुछ दिनों में देश में कहीं भी कोई भी जैन धर्म पर शास्त्र या पुस्तकें हैं उसके लिये जानकारियाँ प्राप्त करना हो तो वह यहाँ पर लिखने से फौरन पता चल सकेगा। जैन पत्र - पत्रिकाओं की लिस्ट देश में कहीं नहीं है किन्तु इनके पास है। बहुत ही चुस्ती और मेहनत से ऐसे कार्य होते हैं। आशा है कि इनका स्टॉक पुस्तकों का एवं शास्त्रों का बढ़ता रहे। 23.9.99
. मदनलाल काला पी- 15, कलाकार स्ट्रीट, कलकत्ता-700007
आज शोध संस्थान कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ आने का सुअवसर प्राप्त हुआ। संस्थान में ग्रन्थों एवं समाचार पत्रों का संग्रह निश्चित रूप से आशा से कहीं अधिक अच्छा लगा। निश्चित रूप से इस हेतु डॉ. अनुपम जैन एवं उनकी टीम बधाई की पात्र है।
___ संस्थान की निरन्तर प्रगति का आकांक्षी हूँ। 9.10.99
. राजेन्द्र नारद 9, पद्मावती कालोनी,
इन्दौर कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ में दो-तीन वर्षों के बाद आना हुआ। इन दो-तीन वर्षों में यहाँ के कार्य में कई गुना वृद्धि हुई है, यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई। इस सब कार्य के पीछे एक व्यक्ति की लगन तथा परिश्रम सम्मिलित हैं, यह है डॉ. अनुपम जैन। संस्था की उनकी मेहनत से दिनोंदिन उन्नति होगी, ऐसा मुझे विश्वास है। 9.10.99
- डॉ. अनिलकुमार जैन बी - 26, सूर्यनारायण सोसायटी, विसत पेट्रोल पम्प के सामने, साबरमती,
अहमदाबाद - 380005 फोन : 079-7507520
तीन साल के बाद आने पा यहाँ की जो Progress देखी, वह प्रशंसनीय है। डॉ. अनुपमजी का विचार इस संस्थान को National ही नहीं International बनाने का है। बहुत ही अच्छा है। शीघ्र ही यह संस्था International Jain की हो, ऐसी उम्मीद ही नहीं विश्वास है। 18.10.99
। डॉ. महेन्द्र पांड्या 73, बीबी. स्ट्रीट, स्टेटेन आइलेण्ड,
न्यूयार्क, यू.एस.ए. - 10301
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संस्थान का कार्य प्रसार बहुत सुन्दर और सुदृढ़ है। हमारी सबकी कामना है, यह आगे बहुत यश को प्राप्त हो। 26.10.99
. राकेशकुमार जैन 172 - ए, सदर, मेरठ
अर्हत् वचन, अप्रैल 2000