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________________ ग्रीष्मकालीन अध्ययनशाला का आयोजन भोगीलाल लहेरचन्द इन्स्टीट्यूट ऑफ इन्डालोजी द्वारा इस वर्ष ग्रीष्मकाल में एक साथ तीन अध्ययनशालाओं का आयोजन किया जा रहा है। __ 1. प्राकृत भाषा एवं साहित्य 2. जैनधर्म व दर्शन। ये दोनों अध्ययनशालायें स्वतंत्र रूप से, परन्तु उन्हीं तिथियों में दिनांक 28 मई से 18 जून तक आयोजित हैं। 3. पाण्डुलिपि विज्ञान और लिपि विज्ञान। यह अध्ययनशाला दिनांक 18 जून से 2 जुलाई 2000 तक होगी। इन तीन अध्ययनशालाओं में से प्रवेशार्थी क्र. 1 व 3, अथवा क्र. 2 व 3 अथवा अपनी रूचि के अनुसार, किसी एक अध्ययनशाला में भाग ले सकते हैं। प्रवेशार्थियों की योग्यता भारतीय दर्शन, संस्कृत, पालि, प्राकृत, भाषा विज्ञान, प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व, इनमें से किसी भी विषय में एम.ए. होनी चाहिए शोध व शिक्षण अनुभव प्राप्त प्रवेशार्थियों को वरीयता दी जायेगी। आयु सीमा 22 से 45 वर्ष रखी गई है। विशेष योग्यता प्राप्त प्रवेशार्थियों को आय सीमा में छट दी जा सकती है। आवेदन एवं नियमों का एक प्रपत्र विशेष जानकारी के लिए कृपया निम्न पते पर सम्पर्क करें - भोगीलाल लहेरचन्द इन्स्टीट्यूट आफ इण्डोलाजी 20 वाँ किलोमीटर, जी. टी. करनाल रोड़, पो. अलीपुर, दिल्ली - 110036 फोन : 011-720 2065 मयंक मरकर भी अमर हो गया हुमड़ जैन युवा मंच के पूर्व मंत्री तथा दिगम्बर जैन सोशल ग्रुप 'इन्दौरनगर' के सहमंत्री श्री दिलीप मेहता एवं कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ आदि अनेक प्रतिष्ठित शोध संस्थानों से अभिन्न रूप से जुड़ी प्रसिद्ध लेखिका एवं विदुषी डॉ. संगीता मेहता के सुपुत्र चि. मयंक मेहता का दुःखद निधन तीर्थयात्रा पर जाते हुए नागदा के समीप कार दुर्घटना में दिनांक 23.4.2000 को हो गया। यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, इन्दौर में अधिकारी श्री दिलीपजी तथा शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, इन्दौर के संस्कृत विभाग में कार्यरत डॉ. संगीताजी समाजसेवा एवं साहित्य सेवा की विभिन्न गतिविधियों से अभिन्न रूप से जुड़ी रहीं। किन्तु चि. मयंक के निधन के समय इस दम्पति द्वारा प्रदर्शित दृढ़ता और मानवता के कल्याण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने इस दम्पति को वंदनीय एवं अभिनंदनीय बना दिया। साथ ही चि. मयंक भी अपने यश शरीर से सदैव के लिये अमर हो गया। दिनांक 23.4.2000 को दुर्घटना के बाद मयंक को उपचार हेतु इन्दौर लाया गया जहाँ श्रेष्ठतम सुविधायें उपलब्ध कराये जाने के बाद भी उसे बचाया नहीं जा सका तथा विशेषज्ञ चिकित्सकों के एक दल ने 24 अप्रैल को मयंक की ब्रेनडेथ घोषित कर दी। जैन दर्शन के गहन अध्ययन एवं ज्ञान की सार्थकता सिद्ध करते हुए मेहता दम्पति ने अविलम्ब निर्णय लेकर मयंक के दोनों गुर्दे, नेत्र एवं त्वचा दान कर दी। समय पर लिये गये निर्णय से दो किशोरों के जीवन को बचाया जा सका जो गुर्दे की बीमारी से पीड़ित थे एवं गुर्दा प्रत्यारोपण ही जिनका एकमात्र इलाज था। इन लाइनों के लिखे जाने तक दो अन्य मानवों को नेत्र ज्योति प्राप्त हो चुकी होगी। मेहता दम्पति के इस आदर्श, प्रेरणादायक, साहसिक निर्णय पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय श्री दिग्विजयसिंह, इन्दौर के महापौर श्री कैलाश विजयवर्गीय, जैन एवं जैनेतर संस्थाओं के पदाधिकारियों एवं समाज नेताओं ने उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। ज्ञातव्य है कि मेहता दम्पति की दोनों सन्तानों कु. श्वेता एवं चि. मयंक में से चि. मयंक सिक्का स्कूल में कक्षा 9वीं में अध्ययनरत था तथा दुर्घटना के दिन 22 अप्रैल को उसका जन्मदिन भी था। इस अनुकरणीय दान से मयंक एवं मेहता दम्पति का नाम मानवता के इतिहास में सदैव स्वर्णाक्षरों में कित रहेगा। - डॉ. अनुपम जैन, सचिव अर्हत् वचन, अप्रैल 2000 93
SR No.526546
Book TitleArhat Vachan 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size6 MB
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