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भारत के मनीषी इतिहासकारों से निवेदन
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद NCERT द्वारा 11 वीं कक्षा के इतिहास के छात्रों के लिये प्रकाशित पुस्तक 'प्राचीन भारत' में दसवां अध्याय 'जैन और बौद्ध धर्म' के सम्बन्ध में है जिसमें जैन धर्म का प्रवर्तक भगवान महावीर को बताया गया है एवं इससे पूर्व 23 तीर्थकरों की मिथक कथा जैन धर्म की प्राचीनता सिद्ध करने के लिये गढ़ना बताया गया है तथा उक्त पाठ के लेखक प्रो. रामशरण शर्मा द्वारा निम्न स्तरीय भाषा का प्रयोग करते हुए तीर्थंकरों को आचार्य व मुनियों के विहार के लिये भटकना बताया गया है। भगवान महावीर द्वारा 30 वर्ष की आयु में संन्यास लेकर 12 वर्ष तक बिना वस्त्र बदले इधर उधर भटकते रहना अंकित किया है, जो समस्त जैन समाज के लिये एक चिन्तन का विषय है कि पाठ्य पुस्तकों के ऐसे प्रकाशन से आगे आने वाली पीढ़ी को जैन धर्म के बारे में क्या शिक्षा मिलेगी।
मैंने इस सम्बन्ध में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद को उक्त पाठ में संशोधन किये जाने हेतु पत्र लिखा, जिस पर उन्होंने प्रो. रामशरण शर्मा को पत्र की प्रति प्रेषित कर टिप्पणी चाही। प्रो. रामशरण शर्मा ने उक्त पाठ की विषय वस्तु में परिवर्तन करने से इन्कार करते हुए भगवान ऋषभदेव से नेमिनाथ तक के सम्बन्ध में पुरातात्विक एवं शास्त्रीय प्रमाण मांगे हैं। मैंने अपनी ओर से पंडित कैलाशचन्द शास्त्री की पुस्तक 'जैन धर्म' से उद्धरण लेकर निम्नलिखित सन्दर्भ उन्हें प्रेषित किये थे, जिन्हें प्रो. शर्मा ने अस्वीकार कर दिया - 1. Indian Philosophy Vol. 1, page no. 287, Dr. S. Radha Krishnana 2. श्रीमद भागवत पुराण, स्कन्ध-5. अध्याय 2 से 61 3. मथुरा में कंकाली टीले से प्राप्त शिलालेख जिनमें भगवान ऋषभदेव की पूजा के लिये दान दिये जाने का उल्लेख है। 4. हाथी गुम्फा - उदयगिरि, खण्ड गिरि (उड़ीसा) से प्राप्त शिलालेख जो सम्राट खारवेल ने लिखाया था, में ऋषभदेव
की प्रतिमा के सम्बन्ध में उल्लेख किया गया है। 5. हिन्दू काल गणना के आधार पर स्वयंभू मनु की पांचवीं पीढ़ी में उत्पन्न होने वाले ऋषभदेव का जन्म प्रथम सतयुग
में हुआ और अब तक 6 मन्वन्तर तथा 7वें मन्वन्तर के 28 सतयुग बीत चुके हैं, जिससे जैन धर्म की प्राचीनता
असंदिग्ध है। 6. मेजर जनरल जे. आर. फलांग के अनुसार ईसा से अगणित वर्ष पहले जैन धर्म भारत में फैला हुआ था।
प्रो. शर्मा ई.पू. छठी शताब्दी मध्य गंगा मैदान के पूर्व में आबादी न होने के आधार पर 15 तीर्थंकरों के जन्म को अस्वीकार करते हैं तथा डॉ. राधाकृष्णन को इतिहास के बारे में कोई प्रशिक्षण नहीं होना मानते हुए कहते हैं कि यजुर्वेद और ऋग्वेद में 'ऋषभ, अजित, नेमि' का वर्णन तीर्थकर के रूप में नहीं किया गया है, बल्कि बैल या मनुष्य के रूप मात्र में है तथा भागवत पुराण की रचना छठी शताब्दी से पूर्व की नहीं है तथा इसे अवतारों की रचना का समय कहा जाता है। उन्होंने खारवेल की हाथी गुम्फा एवं मथुरा से प्राप्त शिलालेख में भी ऋषभदेव का वर्णन तीर्थकर के रूप में होने से इन्कार किया है। उन्होंने कहा है कि पांचवीं शताब्दी के करीब तीर्थकरों की रचना का कार्य प्रारम्भ हुआ है तथा उन्होंने महती प्रभावना हासिल की है। जबकि प्रथम शताब्दी के भगवान ऋषभदेव की पूजा के प्रमाण उपलब्ध हैं। सर्वश्री डा. महेन्द्र सागर प्रचंडिया (अलीगढ़), डॉ. अनुपम जैन (इन्दौर) व श्री राजमल जैन (दिल्ली) ने प्रो. शर्मा के उपरोक्त दावों का खंडन किया है। उन्होंने अपने सन्दर्भो में डा. रामचन्द्रन, डा. सतीशचन्द्र काला, डॉ. चन्द्रा, डॉ. कृष्णदत्त बाजपेयी एवं डॉ. रमेशचन्द शर्मा आदि विद्वानों के आलेखों का सन्दर्भ दिया है तथा हड़प्पा लिपि एवं मू-अन - जोदड़ो (सिन्धु घाटी सम्यता) से प्राप्त शिलालेखों एवं अवशेषों के आधार पर जैन संस्कृति के प्रमाण पाये जाते हैं जो करीब 5000 वर्ष प्राचीन हैं।
मेरा आपसे अनुरोध है कि जब एक ओर भारत में 5 लाख ई.पू. का मानव इतिहास माना जा रहा है तब जैन धर्म की प्राचीनता के लिये पुरातात्विक साक्ष्यों की आवश्यकता क्यो है? जैन धर्म के इतिहास को अनुश्रुतियों के आधार पर आधारित मानकर इतिहासकारों द्वारा अस्वीकार किया जा रहा है, जिस पर आप जैसे विद्वानों को चिंतन कर NCERT को माकूल उत्तर देना है। मैं न तो इतिहास का विद्यार्थी हूँ और नही जैन दर्शन का। में तो सिर्फ कानून का विद्यार्थी हूँ। लेकिन 'प्राचीन भारत ' पुस्तक में वर्णित तथ्यों ने मेरी भावना को कचोट कर रख दिया, जिससे मैंने उपरोक्त कार्य प्रारम्भ किया है। इसमें आपके सहयोग की महती आवश्यकता है। कृपया सम्बन्धित विषय - वस्तु पर अपने विचार गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के सान्निध्य में, उन्हीं की प्रेरणा से जम्बूद्वीप- हस्तिनापुर में दिनांक 11 जन 2000 को आयोजित होने वाली विद्वत् संगोष्ठी में स्वयं उपस्थित होकर प्रस्तुत करने की कृपा करें एवं मुझे अनुग्रहीत करें।
. खिल्ली मल जैन, एडवोकेट 2, विकास पथ, अलवर (राज.)
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अर्हत् वचन, अप्रैल 2000