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________________ अध्ययन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। यहाँ नाना प्रकार से वनस्पति का वर्गीकरण किया गया है एवं उनके कंद, मूल, स्कन्द, त्वचा, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल और बीज के सजीवत्व और निर्जीवत्व की दृष्टि से विचार किया गया है। पंचास्तिकाय की 181 गाथाएँ दो श्रत स्कंधों में विभाजित हैं। प्रथम श्रुतस्कंध 111 गाथाओं में समाप्त हआ है और इसमें 6 द्रव्यों में से पाँच अस्तिकायों अर्थात् जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश का स्वरूप समझाया गया है। करणानुयोग जैसे सूर्य प्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीप - प्रज्ञप्ति और द्वीपसागर - प्रज्ञप्ति में समस्त संसार को दो भागों में बांटा गया है - लोकाकाश और अलोकाकाश। निष्कर्ष - वर्णित तथ्यों से स्पष्ट है कि जैन आगम में पर्यावरण को वृहद् एवं गूढ़ रूप में समझा गया है तथा उसके महत्व को भी प्रतिपादित किया गया है। जबकि आधुनिक पर्यावरण विज्ञान में पर्यावरण की व्याख्या अभी भी अपूर्ण है। वर्ष प्रति वर्ष नई-नई जानकारियों का समवेश होता जा रहा है। इस विज्ञान में सम्पूर्ण संसार या विश्व का चिंतन न होकर जैविक संसार की ही प्रधानता है। जीव तत्वों का ही वर्गीकरण विशेष रूप से किया गया है। जैन आगम में दी गई जीव व अजीव की व्याख्याएँ एवं उनमें बताये गये परस्पर संबंधों का महत्व आज का पर्यावरण विज्ञान भी स्वीकारता है। तत्वार्थ सूत्र में वर्णित 'आसव' और 'बंध' की तुलना हम पर्यावरण तंत्र की ऊर्जा (Energy) व भू तत्वों और गैसों (Nuitrients & Gases) से कर सकते हैं, जिनकी वजह से सम्पूर्ण तंत्र गतिशील होकर चलता रहता है। ऊपर वर्णित संसार के मूलभूत आस्रव बंध के कारणों को जानकर उनको दूर करने को उपाय करने से आज के सन्दर्भ में तात्पर्य है - पर्यावरण असंतुलन और जिसकी उत्पत्ति है पर्यावरण प्रदूषण, चूंकि हमनें पर्यावरण को ठीक से नहीं समझा व कारणों को समय रहते नहीं जान सके। यदि हमनें सही समय पर कारणों को जानकर उनको दूर करने का उपाय कर लिया तो नई - नई समस्याएँ पैदा नहीं होंगी। अत: स्पष्ट है कि जैन आगम में पर्यावरण विज्ञान का सविस्तार उल्लेख हजारों वर्ष पूर्व किया जा चुका है एवं उसकी गूढता को आधुनिक संदर्भ में विस्तार से समझाना होगा। सन्दर्भ ग्रनथ एवं लेख - 1. तत्वार्थ सूत्र (मोक्ष शास्त्र), टीकाकार - बाल ब्र. प्रद्युम्न कुमार। 2. जैन भूगोल : वैज्ञानिक सन्दर्भ, जैन लालचन्द, अर्हत वचन (इन्दौर), वर्ष 11, अंक-3, जुलाई 19991 3. रसायन के क्षेत्र में जैनाचार्यों का योगदान, जैन एन.एल., अर्हत् वचन (इन्दौर), वर्ष 11, अंक-3, जुलाई 19991 4. कालद्रव्य : जैन दर्शन और विज्ञान, जैन के.ए., अर्हत् वचन (इन्दौर), वर्ष 11, अंक - 3, जुलाई 1999। 5. फन्डामेंटल्स अफि इकॉलाजी, ओडम एवं ओडम, 1970 प्राप्त - 12.11.99 अर्हत् वचन, अप्रैल 2000
SR No.526546
Book TitleArhat Vachan 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size6 MB
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