________________
का निर्माण नहीं कर सकते हैं परन्तु भोजन के लिये दूसरों पर आश्रित रहते हैं। इन्हें कन्ज्यूमर्स कहते हैं। सृष्टि में कन्ज्यूमर्स वर्ग में अनेक प्रकार के प्राणी व जीव जंतु विद्यमान हैं जो कि पौधों द्वारा बनाये गये भोजन को ग्रहण न करके उन प्राणियों का शिकार करते हैं जिनका जीवन पौधों या वनस्पति जगत पर आश्रित होता है। इस प्रकार इनमें भोजन आधारित श्रृंखला का निर्माण होता है। इन प्राणियों को प्रायमरी कन्ज्यूमर्स , सेकंडरी, टरशियरी इत्यादि वर्गों में बांटते हैं या फिर श्रृंखलाबद्ध करते हुए कन्ज्यूमर लेवल - 1, 2, 3 आदि क्रम दे देते हैं। जब सभी पौधों व प्राणियों का जीवनकाल समाप्त होता है तो उनके मृत शरीर में बन्द विभिन्न तत्व व ऊर्जा को सूक्ष्म जीवों द्वारा विघटन क्रिया करके वातावरण में निसर्ग किया जाता है। जिससे गैसेस व विभिन्न तत्व अपने-अपने स्थान पर पहुँच जाते हैं। इस प्रकार यह पारिस्थिति तंत्र लाखों वर्षों से अपना कार्य करता आ रहा है।
इस तंत्र में हम देखते हैं कि प्रत्येक जीव वर्ग का वातावरण के साथ व आपस में गहन संबंध है तथा वे सभी एक-दूसरे से मकड़ी के जाल के समान आपस में गूंथे हुए हैं। एक कड़ी के अलग होते ही सम्पूर्ण तंत्र अव्यवस्थित हो जाता है यानी अहिंसा का ही परिपालन अनिवार्य है।
जैन आगम में पर्यावरण विज्ञान के विषय में चिंतन व व्याख्या तत्वार्थ सूत्र के चतर्थ एवं पंचम सत्रों में, भगवती व्याख्या प्रज्ञप्ति के 21, 22 और 23 वें शतकों में तथा पंचास्तिकाय की 181 गाथाओं में मिलता है। तत्वार्थ सूत्र के चतुर्थ सूत्रानुसार -
जीवाजीवास्रव - बंध - संवर - निर्जरा मोक्षास्तत्वम्।।4।। अर्थात् जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्व प्रयोजन भूत हैं। जीव - जिसका लक्षण चेतना है, वह जीवन है। चेतना ज्ञान - दर्शन रूप होता है, इसी के कारण जीव अन्य द्रव्यों से भावृत होता है। अजीव - जिनमें चेतना नहीं पायी जाती है। ऐसे अजीव तत्व पाँच होते हैं - पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल।
आगे स्पष्ट किया गया है कि तत्व सात ही क्यों हैं, जबकि पर्यावरण विज्ञान में इनका कोई स्पष्टीकरण नहीं है। तत्वार्थ सूत्रानुसार यह मोक्षशास्त्र है, इसका प्रधान विषय मोक्ष है। मोक्ष जीव को होता है अत: जीव को ग्रहण किया तथा संसार पूर्वक ही मोक्ष होता है और संसार अजीव के होने पर होता है, क्योंकि जीव और अजीव के परस्पर में बद्ध होने का ही नाम संसार है। अत: अजीव को ग्रहण किया। संसार के प्रथम कारण आस्रव और बंध हैं, अत: आस्रव बंध कहे तथा मोक्ष के प्रधान कारण संवर निर्जरा है अत: संवर - निर्जरा कहें। इसलिये तत्व सात ही कहे गये हैं।
सात तत्वों में से प्रथम दो तत्व 'जीव' और 'अजीव' द्रव्य हैं तथा शेष पाँच तत्व उनकी संभोगी तथा वियोगी पर्याय (विशेष अवस्थाएँ) हैं। आस्रव और बंध संयोगी हैं। संसार के मूलभूत आस्रव - बंध के कारणों को जानकर उनको दूर करने का उपाय करना व संवर - निर्जरा के कारणों को जानकर उन उपायों को मिलाने से मोक्ष प्राप्त होता है। जीव के स्वभाव और विभाव को जानने के लिये ये सात तत्व बहुत उपयोगी हैं। आसव बंध आत्मा के विभाव है और संवर - निर्जरा स्वभाव रूप हैं।
श्वेताम्बर जैन आगम भगवती सूत्र (व्याख्या प्रज्ञप्ति) में 41 शतक हैं और प्रत्येक शतक अनेक उद्देशकों में विभाजित है। 21, 22 और 23 वें शतक वनस्पति शास्त्र के
अर्हत् वचन, अप्रैल 2000
6A