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अर्हत् वच कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर
वर्ष -
- 12, अंक- 2, अप्रैल 2000, 63-65
जैन आगम में पर्यावरण विज्ञान
■ सनत कुमार जैन*
वर्तमान में विभिन्न क्षेत्रों में जहाँ विज्ञान का बोलबाला नजर आ रहा है वहीं लोगों का धर्म के प्रति रूझान दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है। धार्मिक दर्शन ( सिद्धान्तों) को स्वाध्याय के अभाव में अंधविश्वास कहकर टाल दिया जाता है या फिर आधुनिक विज्ञान की प्रयोगात्मक कसौटी का प्रादुर्भाव न हो सकने के कारण मानने से इंकार कर दिया जाता है। अतः आज यह नितांत आवश्यक है कि लोग स्वाध्याय कर धार्मिक सिद्धान्तों में निहित विभिन्न वैज्ञानिक तथ्यों की गूढ़ता को सरल भाषा में व सही परिप्रेक्ष्य में जन-जन तक पहुँचायें ताकि लोग भ्रमित मानसिकता के बंधन में न बंध सकें। यही जैन दर्शन का भी मूल है व आज हम दावे के साथ कह सकते हैं कि जैन धर्म पूर्णत: वैज्ञानिक धर्म है। इसमें आधुनिक विज्ञान जैसे गणित, भूगोल, रसायन शास्त्र, भूगर्भ शास्त्र, वनस्पति शास्त्र, जीव शास्त्र, इंजीनियरिंग, चिकित्सा विज्ञान आदि सभी का समावेश है एवं समय समय पर प्रकाशित लेखों के माध्यम से यह सर्वविदित भी हो चुका है।
इसी आधुनिक विज्ञान की देन
पर्यावरण विज्ञान | विज्ञान की इस शाखा की उत्पत्ति आधुनिक वैज्ञानिक सन् 1865 से मानते हैं, जब एक जर्मन वैज्ञानिक अन्सर्ट हैकल (जो कि मूलत: जीव विज्ञानी थे ) द्वारा जीवों के आपसी सम्बन्धों एवं निवास स्थान में समन्वय स्थापित करने के उद्देश्य से अध्ययन शुरु किया गया । शुरु शुरु में ( 1940) तक प्राणी वैज्ञानिकों व पादप वैज्ञानिकों द्वारा अलग-अलग अध्ययन किये जाते रहे, परन्तु बाद के वर्षों में संयुक्त अध्ययन होने लगे, क्योंकि यह माना जाने लगा कि प्राणी व वनस्पति जगत एक दूसरे से पृथक नहीं बल्कि पूरक हैं। इनका आपसी संबंध बहुत जटिल है। बाद के अध्ययनों में यह भी स्पष्ट हुआ कि प्राणियों एवं वनस्पतियों के साथ-साथ भू तत्वों व वायु इत्यादि का भी गहरा संबंध है। इस प्रकार पचास साठ के दशक में पर्यावरण के विभिन्न सिद्धान्तों का तेजी से प्रतिपादन हुआ और पर्यावरण विज्ञान की प्रगति तेज होती चली गई। साठ सत्तर के दशक में अमेरिकी वैज्ञानिक प्रो. ओडम ब्रदर्स द्वारा पर्यावरण की सर्वमान्य व्याख्या की गई व हमारे आस-पास के वातावरण को पर्यावरण तंत्र कहा जाने लगा। यह एक जीवित तंत्र है। इसमें निरन्तर गतिशीलता बनी रहती है। इसमें ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है तथा भू- तत्वों एवं गैसों का आदान प्रदान होता रहता है। इस तंत्र की विशिष्ट संरचना होती है। यह विभिन्न तत्वों से मिलकर बना है, जिनका आपस में व आस पास के वातावरण के साथ विशिष्ट सम्बन्ध होता है। पर्यावरण विज्ञान के अनुसार हमारा पर्यावरण मुख्यतः दो तत्वों से मिलकर बना है जिन्हें जीव व अजीव तत्व समूह में विभक्त किया गया है। जीव तत्व में वे सभी तत्व आते हैं जो जीवित हैं व जिनमें जीवन क्रिया चलती रहती है यानि कि जो अपना जीवन चक्र पूर्ण करते हैं, चेतन रहते हैं व गैसों का आदान प्रदान करते हैं। जीव तत्व को भोज्य पदार्थ के निर्माण कर सकने या न कर सकने की मतानुसार दो समूहों में विभक्त किया जाता है प्रथम वह जो जमीन से अकार्बनिक तत्वों को सोखकर तथा वायुमंडल से गैस एवं सूर्य प्रकाश को अवशोषित करते हुए प्रकाश संश्लेषण विधि द्वार भोजन का निर्माण करते हैं। इन्हें प्रायमरी प्रोड्यूसर कहते हैं। पादप जगत की हरी वनस्पतियाँ एवं सूक्ष्म जीवी विशेष प्रकार के बैक्टीरिया इसके अन्तर्गत आते हैं। यहीं से पर्यावरणीय तंत्र की शुरुआत होती है। द्वितीय समूह में वे सभी प्राणी व सूक्ष्म जीवी बैक्टीरिया आदि आते हैं जो कि स्वयं के लिये भोजन
* पर्यावरण कन्सलटेन्ट, ए-7, ए. बी. रोड़, तोरण गार्डन के अन्दर, इन्दौर-452008
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