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टिप्पणी-1
अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर
आकाश द्रव्य - एक उर्जीय रूप
- विवेक कुमार कोठिया*
धर्म और विज्ञान में हमेशा तकरार होती रही है, परन्तु जब वे एक दूसरे के क्षेत्र में दबे पांव प्रविष्ट होते हैं तो बड़ा आश्चर्य होता है, इसलिये सत्य को स्वीकारने में दोनों ही झिझकते हैं। जैनाचार्यों ने तो प्रकृति का बहुत गहराई से मनन किया है। अत: जैन शास्त्रों में जिन सिद्धान्तों का उल्लेख किया गया है, या तो वे वैज्ञानिक रूप ले चुके हैं या फिर उसकी तैयारी में हैं। परन्तु जो वैज्ञानिक दृष्टि से उपयुक्त प्रतीत नहीं होते हैं, उन्हें येन - केन - प्रकारेण सही ठहराना भी शोभा नहीं देता है।
आकाश द्रव्य जैनाचार्यों की एक अनूठी कल्पना थी। पहले 'द्रव्य' क्या है इस पर विचार कर लें। गुणपर्यवद्रव्यम् के अनुसार गुण एवं पर्याय दोनों ही मिलकर द्रव्य की संरचना होती है। पर्याय तो देखी जा सकती है, परन्तु गुण अनुभवगम्य होता है। जैन सिद्धान्त विश्व (Universe) को छह द्रव्यों से निर्मित मानता है। वे निम्न है - 1. जीव 2. पुद्गल
3. धर्म 4. अधर्म . 5. आकाश
6. काल यहाँ पर हम केवल आकाश द्रव्य की चर्चा कर रहे हैं। आकाश को अंग्रेजी में Space कहा जाता है। जैन दर्शन में इसकी इकाई 'प्रदेश' के रूप में मानी गई है।इसी प्रदेश में एक पुद्गल परमाणु स्थान घेरता है और इसे एक प्रदेश में जाने में जितना काल लगता है वह 'समय' कहलाता है। आकाश द्रव्य को भी दो भागों में विभाजित किया गया है (अ) लोकाकाश - जो कि दृष्टव्य है और इसके परे (ब) अलोकाकाश - जो कि रिक्त है। आकाश में कोई भी द्रव्य एक निश्चित स्थान अवश्य घेरता है। अगर यह स्थान न घेरा जाये तो सचमुच वह द्रव्य शून्य ही हो जायेगा और उसका कुछ भी अस्तित्व नहीं रह जायेगा। विश्वविख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्सटाइन की थ्योरी के अनुसार किसी भी द्रव्य (Mass) को शक्ति (Energy) में E = MC2 के समीकरण से परिवर्तित किया जा सकता है। इसमें C को प्रकाश के वेग के लिये प्रयुक्त किया गया है जो कि एक स्थिरांक है और M (Mass) को पदार्थ या द्रव्य अथवा जैन दर्शन के अनुसार गणों/पर्यायों के समूह को कहते हैं। यह वही मास है जो आकाश में एक निश्चित स्थान घेरता है। इसी मास M को अगर (g) गुरुत्वीय त्वरण से गुणा कर दिया जाये तो वह वस्तु का भार W (Weight) कहलाता है। स्पष्टत: वस्तु का भार ब्रह्माण्ड में तो परिवर्तित हो सकता है, परन्तु उसके आकार में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता है। अक्सर लोग आइन्सटाइन के उर्जा समीकरण में M की जगह W (मात्रा की जगह भार) का उपयोग कर लेते हैं जिससे पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच जहाँ गुरुत्वाकर्षण शून्य हो जाता है और वस्तुएँ भारहीन होकर तैरती लगती हैं, वहाँ आइन्सटाइन के इस समीकरण को गलत ठहराने में नहीं चूकते हैं। दरअसल आइन्सटाइन को अपने ऊर्जा समीकरण में पदार्थ के आकार को साफ साफ दर्शाना था। यद्यपि 'आकार' को आज तक न तो विज्ञान ने ही महत्व दिया है और न ही किसी वैज्ञानिक ने इस पर चर्चा करना आवश्यक समझा है।
सूर्यग्रहण के दौरान छपे अपने लेखों में मैंने एक प्रश्न तो अवश्य किया है कि सूर्य एवं चन्द्र के दृश्य आकार लगभग बराबर क्यों होते हैं? वस्तुओं के वास्तविक आकार अर्हत् वचन, अप्रैल 2000
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