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________________ sgreen alte प्राचीन साहित्य प्रत्येक दृष्टि से महत्वपूर्ण एवं संग्रहणीय कृति मूल संघ और उसका प्राचीन साहित्य, पं. नाथूलाल जैन शास्त्री प्रस्तावना पं. पन्नालाल जैन साहित्याचार्य, प्रकाशक कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, 584, महात्मा गांधी मार्ग, तुकोगंज, इन्दौर, 1999 साइज - डेमी 1/8, पृष्ठ XVIII + 204, मूल्य : रु.70 = 00 समीक्षक पं. शिवचरनलाल जैन, अध्यक्ष तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ, सीताराम मार्केट, मैनपुरी (म. प्र. ) पुस्तक समीक्षा पं. नाथूलालजी जैन शास्त्री द्वारा लिखित 'मूलसंघ और उसका प्राचीन साहित्य' ग्रन्थ मिला। वर्तमान में डा. सागरमल जैन द्वारा लिखित 'जैन धर्म में यापनीय सम्प्रदाय' कृति अत्यन्त चर्चित एवं दिगम्बर जैन आम्नाय के लिये चिन्ता का विषय बनी हुई है। उसमें श्वेताम्बर आम्नाय के मत के पक्षाग्रह के कारण अनेकों विसंगतियों को लेखक द्वारा समाहित कर दिया गया है। इस विषय में विद्वानों की संस्थाओं को भी चिन्ता है। इस ओर प्रयत्न भी किये जा रहे हैं। प्रयत्नों का उद्देश्य उक्त ग्रन्थ की मिथ्या मान्यताओं का निरसन एवं वास्तविक तथ्यों का प्रकटीकरण है। पूज्य पंडितजी साहब ने उसी दिशा में इस महत्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना की है। रचना बहुआयामी है। ज्ञान गरिष्ठता से परिपूर्ण है, सामयिक आवश्यकता की पूर्ति हेतु सार्थक प्रयास है। वे अत्यन्त साधुवाद के पात्र हैं। मैं उनको नमन करता हूँ। - राष्ट्रसंत आचार्य श्री विद्यानन्दजी महाराज ने आशीर्वचन में मूलसंघ के प्राचीन सन्दर्भों का संकलन कर इसकी उपयोगिता में अगुणित वृद्धि कर दी है। कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ ने पंडितजी को इस ग्रन्थ के लेखन हेतु प्रेरित किया था अतः संस्था एवं उसके नियोजकों को इस कार्य हेतु मैं बधाई देता हूँ। इसके प्रकाशन हेतु कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ के प्रति मैं अपनी शुभकामना देता हूँ। अर्थ व्यवस्था हेतु श्री सिद्धकूट चैत्यालय टेम्पल ट्रस्ट (श्री निर्मलचन्द प्रमोदचन्द्र सोनी) की विशेष सहभागिता भी समाज के लिये एक विशेष योगदान सिद्ध होगी । ग्रन्थ प्रत्येक दृष्टि से महत्वपूर्ण है तथा संग्रहणीय है। कु. शकुन्तला जैन को पीएच. डी. कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ की शोध छात्रा कु. शकुन्तला जैन ने विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से डा. शचीन्द्र प्रसाद उपाध्याय, प्राध्यापक - इतिहास, माधव महाविद्यालय, उज्जैन के सुयोग्य मार्गदर्शन में 'आयुर्वेद के विकास में जैनाचार्यों का योगदान ( ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में वैदिक काल से 17 वीं शताब्दी तक ) ' विषय पर Ph.D. की उपाधि प्राप्त की । के विद्वानों के सहयोग से सामग्री का संकलन एवं प्रबन्ध का लेखन किया। डा. शकन्तला जैन ने कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर में अनेकश: रहकर ज्ञानपीठ डा. जैन को उनकी इस उपलब्धि पर हार्दिक बधाई । अर्हत् वचन, जनवरी 2000 89
SR No.526545
Book TitleArhat Vachan 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size24 MB
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