SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर संक्षिप्त आख्या मथुरा के जैन स्तूप व कंकाली का सांस्कृतिक वैभव द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी, अजमेर, 15 - 16 अक्टूबर 1999 . विजयकुमार जैन शास्त्री* परम पूज्य, सराकोद्धारक संत, उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज एवं मुनि श्री वैराग्यसागरजी महाराज के पावन सान्निध्य तथा डा. फूलचन्द्र जैन 'प्रेमी', वाराणसी के संयोजकत्व में 15 - 16 अक्टूबर 99 के मध्य जैन भवन, केशरगंज - अजमेर में 'मथुरा के जैन स्तूप एवं कंकाली टीका का सांस्कृतिक वैभव' शीर्षक द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न हुई। प्रख्यात पुराविद डा रमेशचन्द्र शर्मा, वाराणसी संगोष्ठी के परामर्शदाता थे। संगोष्ठी की कार्यवाही का संक्षिप्त विवरण न्मिनवत् है - प्रथम उद्घाटन सत्र - दिनांक 15.10.99, प्रात: 9.00 बजे मंगलाचरण (प्राकृत) : डा. कमलेश जैन, वाराणसी अध्यक्षता : प्रो. रमेशचन्द्र शर्मा, निदेशक - भारत कला भवन, वाराणसी मुख्य अतिथि : डॉ. पी. एल. चतुर्वेदी, कुलपति - दयानन्द सरस्वती वि.वि., अजमेर संचालन : प्रो. सुशील पाटनी, अजमेर प्रथम सत्र के आदि में अजमेर समाज के अध्यक्ष श्री माणकचन्दजी गदिया द्वारा समागत विद्वानों का सम्मान किया गया। संगोष्ठी संयोजक डॉ. फूलचन्द्र जैन 'प्रेमी' द्वारा मथुरा की सांस्कृतिक धरोहर से सम्बन्धित गोष्ठी का महत्व प्रतिपादित किया। गोष्ठी के परामर्शक एवं भारत कला भवन, काशी हिन्दू वि.वि. के निदेशक प्रो. रमेशचन्द्र शर्मा ने विषय प्रवर्तन करते हुए ब्रज का प्राचीन जैन तीर्थ - कंकाली स्थल पर सुविस्तृत आलेख प्रस्तुत किया। उद्घाटन सत्र के अन्त में परम पूज्य उपाध्याय श्री ने मंगल उद्बोधन में मथुरा के सांस्कृतिक वैभव पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यहाँ लगभग 700 जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। यह वही पवित्र स्थान है जहाँ अन्तिम केवली जम्बू स्वामी के चरणों में बैठकर 500 - 500 डाकुओं ने प्रायश्चित पूर्वक सन्मार्ग ग्रहण किया था। अन्त में पूज्य उपाध्यायश्री के चरण सान्निध्य में मथुरा के सांस्कृतिक वैभव से सम्बन्धित डा. चतुर्वेदी ने एक चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। द्वितीय सत्र - दिनांक 15.10.99, दोपहर 2.00 बजे अध्यक्षता : डा. रतनचन्द्र जैन अग्रवाल, जयपुर मंगलाचरण : ब्र. अनीता बहनजी, संघस्थ संचालन : प्रो. रमेशचन्द्रजी शर्मा, वाराणसी आलेख वाचन : डॉ. शैलेन्द्रकुमार रस्तोगी, लखनऊ, 'मथुरा के कंकाली टीले से भिन्न जैन स्थलों का परिचय श्री क्रान्तिकुमार, सारनाथ, वाराणसी, 'मथुरा के शिला एवं मूर्ति लेखों के सन्दर्भ में जैन समाज' डा. ए. एल. श्रीवास्तव, लखनऊ (प्रतिनिधि द्वारा) 'प्राचीन जैन मंगल चिह्न' डा. वी. के. शर्मा, मथुरा 'मध्यकाल में जैन धर्म अन्त में पूज्य उपाध्यायश्री ने अपने मंगल उद्बोधन में बताया कि समाज को अर्हत् वचन, जनवरी 2000 83
SR No.526545
Book TitleArhat Vachan 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy