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________________ प्राप्त हो रहे हैं, ये सिंग्नल विशाल रेडियो - दूरबीन द्वारा विशेष फ्रीक्वेंसी बैंड्स पर पल्सेज के रूप में प्राप्त होते हैं। भारत में भी कर्नाटक प्रदेश में ऐसा रेडियो टेलिस्कोप है। वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी से बाहर विकसित सभ्यता यदि होगी तो वह अवश्य ही हाइड्रोजन परमाणु द्वारा उत्पन्न 21 सेन्टीमीटर की तरंग दैर्ध्य (Wave Length) का उपयोग करती होगी, क्योंकि अंतरिक्ष में इसका प्रवेश (Penetration) आसानी से हो सकता है। कई बार अति संवेदनशील (Sensitive) रेडियो रिसीवरों में ऐसे अजीब तरह के संदेश प्राप्त होते रहते हैं, पर इन संदेशों को हमारे लिए समझना कठिन है, जब तक कि भेजने वाले की भाषा, कोड आदि ज्ञात न हो, पारस्परिक संपर्क हुए बगैर ये समझना संभव नहीं है। वर्तमान में कॉस्मिक किरण से लेकर ब्रह्माण्ड किरण, एक्स किरण (X-Ray) फोटोन, मेंसोन आदि की खोज हुई है जो रेडियो तरंगों से भी अधिक तेज व सूक्ष्म हैं, पर ये सब मैटर - पुदगल या जड़ पदार्थ हैं, अत: इनकी भी अपनी-अपनी सीमाएँ हैं, तथा मानव का ज्ञान भी इन्द्रिय जन्य ज्ञान होने से सीमित ही है। इतने विशाल ब्रह्माण्ड में कोई ऐसी शक्ति अवश्य होनी चाहिए, जो प्राकृतिक नियमानुसार समस्त संसार का संचालन अनंतकाल से करती आ रही है, यह शक्ति भूत, वर्तमान व भविष्य को युगपत अर्थात एक साथ जानने वाली होगी. ऐसी महाशक्ति को. जो आ निराकार, इन्द्रियातीत, निर्बाध एवं सर्वत्र व्याप्त है। मानव ने इसे ईश्वर, भगवान (GOD) अथवा अल्लाह नाम दिया है, उसके साथ तारतम्य स्थापित कर हम असीम और इन्द्रियातीत संपूर्ण ज्ञान को एक साथ जान सकते हैं ऐसी धारणा ज्ञानी जनों की है। जैन मान्यतानुसार तीर्थंकरों को केवलज्ञान होने पर भूत, वर्तमान व भविष्य काल व तीनों लोकों का ज्ञान युगपत व सहज ही प्राप्त होता है। उन्हीं के माध्यम से साधना द्वारा समस्त चराचर प्राणी (अर्थात् मनुष्य, देव, नारकी और तिर्यच) अपने जीवन की भूत व भविष्य की घटनाओं का ज्ञान प्राप्त करते हैं तथा अपने कर्मानुसार गंतव्य स्थान पर पहुँच सकते हैं, देह का ममत्व त्यागकर विशेष पुण्योदय से विदेह क्षेत्र में पहुँच सकते हैं तथा उससे भी आगे की साधना द्वारा ऐसे सिद्धक्षेत्र (मोक्ष) में पहुँच सकते हैं जहाँ केवल जानना और देखना ही शेष रहता है और उसी में जीव को परमानंद की प्राप्ति होती है, सांसारिक कार्यों और जन्म मरण के दु:ख हमेशा के लिये छूट जाते हैं, देह के साथ रहकर तो हम केवल एक सीमित क्षेत्र में रहकर एक सीमित ज्ञान की ही प्राप्ति कर सकते हैं। त्रिलोक संबंधी ज्ञान वैराग्यवर्धन के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि विशाल ब्रह्माण्ड का अवलोकन करने पर सांसारिक पदार्थ त्रणवत् महसूस होने लगते है, अत: आज इस बात की आवश्यकता है कि प्राचीन ग्रंथों में वर्णित त्रिलोक संबंधी जानकारी और आधुनिक वैज्ञानिक उपलब्धियों व अनुसंधानों का परस्पर समन्वय करने हेतु सुनियोजित अनुसंधानशालाओं का निर्माण हो, जिनमें शक्तिशाली दूरबीन आदि यंत्रों सहित प्राचीन ग्रंथ तथा नवीन खोजों संबंधी साहित्य भी हो, अनुसंधान करने वाले निष्ठावान वैज्ञानिक व विद्वतजन भी हों, और उन्हें समुचित सुविधाएँ प्रदान की जाँय, तभी प्राचीन व अर्वाचीन मान्यताओं का परस्पर, विरोधाभास यथा संभव दूर होगा और मानव समाज को नया प्रकाश उपलब्ध होगा, ऐसी मंगल कामन प्राप्त - 23.6.98 अहेत् वचन, जनवरी 2000
SR No.526545
Book TitleArhat Vachan 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size24 MB
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