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हीरालाल जैन की यह भावना थी कि विशाल जैन साहित्य में निहित वैज्ञानिक तथ्यों को विषय के अधिकारी विद्वानों के माध्यम से प्रकाश में लाया जाना चाहिये। भारत के राष्ट्रपति महामहिम डॉ. शंकरदयाल शर्मा (तत्कालीन शिक्षा मंत्री, म.प्र.) की अध्यक्षता में दिये गये
हीरालाल जैन के 4 व्याख्यानों (7.8, 910 मार्च 1960) का संवर्धित रूप 'भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान' शीर्षक पुस्तक में प्रकाशित है। इस पुस्तक में पृ. 93 से 98 के मध्य करणानुयोग विषयक साहित्य का विवेचन करते हुए आपने अनेक ऐसे ग्रंथों का विस्तार से परिचय दिया है जिसमें गणितज्ञों की रूचि की विपुल सामग्री निहित है। गणितीय साहित्य में डॉ. जैन की विशिष्ट अभिरूचि का प्रमाण 'जैन सिद्धान्त भास्कर (आरा)' में प्रकाशित आपका आलेख 'आठवीं शताब्दी से पूर्ववर्ती गणित शास्त्र संबंधी संस्कृत एवं प्राकृत ग्रंथों की खोज'12 है। मुझे यह कहते हुए अफसोस है कि आज इस लेख के प्रकाशन के 58 वर्षों बाद भी हम वहीं खड़े हैं। जिन अनुपलब्ध ग्रंथों की चर्चा डॉ. हीरालाल जैन ने 1941 में की थी उनमें से एक भी हम ढूंढ़ नहीं पाये। मैंने 1980 में दिल्ली वि.वि. में दिये गये अपने व्याख्यान में डॉ. जैन द्वारा इंगित तथा विशाल जैन वाङ्मय में जिनके सन्दर्भ मिलते हैं ऐसे अनेकानेक ग्रंथों का हवाला दिया था, जिनकी खोज बहुत आवश्यक है। कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर द्वारा श्री सत्श्रुत प्रभावना ट्रस्ट, भावनगर के सहयोग से 'जैन साहित्य के सूचीकरण की परियोजना का कार्य चल रहा है। मुझे कई ऐसी पांडुलिपियों की जानकारी इस कार्य की श्रृंखला में प्राप्त हुई हैं जिनसे गणित इतिहास की गुत्थियों के सुलझने की आशा है। महान दिगम्बर जैनाचार्य श्रीधर को जैनेतर सिद्ध कर 60 वर्ष तक जिनकी उपेक्षा होती रहे, आज उनका 'गणितसार (त्रिंशतिका)' मूल स्वरूप में शीघ्र ही प्रकाश में आने वाला है। मैं सिर्फ इतना कहना चाहूँगा कि आज विश्व क्षितिज पर जैनाचार्यों के उत्कृष्ट गणितीय अवदान की यदि चर्चा है तो उसके मूल में डॉ. हीरालाल जैन की व्यापक दूरदृष्टि और सतत् सार्थक प्रेरणा रही है और उनकी भावनाओं को विकसित करने में जो सहभागी रहे हैं उनमें स्वर्गीय प्रो. ए.एन. सिंह - लखनऊ, डॉ. नेमीचन्द जैन शास्त्री - आरा, प्रो. लक्ष्मीचन्द जैन - जबलपुर, प्रो. राधाचरण गुप्त - रांची का अमूल्य योगदान है। जन्मशताब्दी वर्ष में डॉ. हीरालाल जैन के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम जैन गणित के क्षेत्र में अब तक प्रकाशित शताधिक श्रेष्ठ शोध पत्रों को संकलित कर गणित के विकास में जैनाचार्यों के योगदान को सम्यक रूप से रेखांकित करने वाले एक ग्रंथ का सृजन एवं प्रकाशन करें। सन्दर्भ स्थल - 1. प्रफुल्ल कुमार मोदी, डॉ. हीरालाल जैन व्यक्तित्व एवं कृतित्व, प्राच्य श्रमण भारती, मुजफ्फरनगर, 1999 2. Smith, D.E., Ganita Sara Samgraha of Mahaviracarya, B.M. (Leipzing), 3, 106-110.
1908 3. महावीराचार्य, गणितसार संग्रह, अंग्रेजी अनुवाद सहित सम्पादित, एम. रंगाचार्य, मद्रास सरकार, मद्रास,
1912 - गणितसार संग्रह, हिन्दी अनुवाद सहित सम्पादित, लक्ष्मीचन्द्र जैन, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर, 1963 - गणितसार संग्रह, हिन्दी, अंग्रेजी एवं कन्नड़ अनुवाद सहित प्रकाशित, कन्नड़ अनुवादक - प्रो. पद्मावथम्मा
(मैसूर), मुद्रणाधीन · 4. Dutt, Sukomal, Bibhuti Bhushan Dutt or Svami Vidyaranya, Ganita Bharti (Delhi),
10(1-4),3-15, 1980 5. Dutt,B.B.. The Jaina School of Mathematics, B.C.M.S. (Calcutta), 21, 115-143.
अर्हत् वचन, जनवरी 2000
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