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________________ प्रस्तुत किया। इस विषय में डा. नेमिचन्द्र शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने कहा है - "वनवास देश उत्तर कर्नाटक का प्राचीन नाम है। यहां कदम्ब वंश के राजाओं की राजधानी थी। इस वनवास देश में ही आ. पुष्पदन्त ने जिनपालित को पढ़ाने के लिये 'वीसदि' सूत्रों की रचना की। इनका समय वी.नि.सं. 633 के पश्चात् होना चाहिये।" यह षट्खण्डागम का प्रथम मंगलाचरण है। इस महामंत्र का संस्कृत में रूपान्तरण - __नमो अर्हम्यः, नम: सिद्धेभ्यः, नम: आचार्येभ्य:, नम: उपाध्यायेभ्य:, नमो लोके सर्वसाधुभ्यः । महामंत्र का हिन्दी भाषा में रूपान्तरण - लोक में तीन कालों के सर्व अरहन्तों को नमस्कार हो, लोक में तीन कालों के सर्वसिद्धों को नमस्कार हो, लोक में तीन कालों के सर्व आचार्यों को नमस्कार हो, लोक में तीन कालों के सर्व उपाध्यायों को नमस्कार हो और लोक में तीन कालों के सर्वसाधुओं को नमस्कार हो। यह महामंत्र अनेक विशेषणों से महत्वपूर्ण सिद्ध होता है, यथा - . 1. अनादि निधन मंत्र - यह मंत्र आदि तथा अन्त से रहित है, कारण कि उत्सर्पण - अवसर्पण रूप कालचक्र में पंचपरमेष्ठी देवों का सदैव अस्तित्व भूतकाल में था, वर्तमान में है, भविष्य में होता रहेगा। कभी अभाव नहीं होगा। इसलिये यह महामंत्र भाव (अर्थ) की अपेक्षा अनादिनिधन है परन्तु शब्द रचना की अपेक्षा सादि सान्त है। पूजन के प्रारंभ में महामंत्र को कहने के पश्चात् पढ़ते हैं - ओं ही अनादिमूल मंत्रेभ्यो नम: पुष्पांजलिं क्षिपेत्।' 2. मूल मंत्र - मूल का एक अर्थ मुख्य होता है अत: यह मंत्र सर्व मंत्रों में प्रधान है। मूल का द्वितीय अर्थ जड़ है, जैसे जड़ वृक्ष की उत्पत्ति, वृद्धि, स्थिति, फूलफलोदय में कारण है, उसी प्रकार यह मूल मंत्र भी हजारों मंत्रों की उत्पत्ति, वृद्धि और पुष्पित फलित होने में कारण है। पूजन से अतिरिक्त अन्य ग्रंथों में कहा गया है कि - अनादिमूल मंत्रोऽयं, सर्वविघ्नविनाशनः।' 3. महामंत्र णमोकार मंत्र - इस णमोकार मंत्र को महामंत्र भी कहते हैं कारण कि यह मंत्र द्वादशांग श्रुतज्ञान का सार है, सर्व स्वर व्यंजनों का इसमें अन्तर्भाव है। इससे 84 लाख योनियों का विच्छेद होता है इसलिये इसको चौरासी लाख मंत्रों का राजा कहा जाता है। द्वितीय कारण यह है कि इस मंत्र की साधना से लौकिक तथा पारलौकिक ऋद्धि - सिद्धि की प्राप्ति होती है अतएव इसको महामंत्र कहते हैं। व्रत, विधान, पूजन, प्रतिष्ठा पाठ और पंचकल्याणक विधानों के जितने मंत्र कहे गये हैं उन सर्व मंत्रों का अन्तर्भाव इस महामंत्र में हो जाता है। हिन्दी के एक कवि ने कहा है - महामंत्र की जाप किये नर सब सुखपावें अतिशयोक्ति रंचक भी इसमें नहीं दिखावे। देखो शून्यविवेक सुभग ग्वाला भी आखिर हुआ सुदर्शन कामदेव इसके प्रभाव कर॥ अर्हत् वचन, जनवरी 2000
SR No.526545
Book TitleArhat Vachan 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size24 MB
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