SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (U.G.C.) देश में उच्च शिक्षा को नियमित एवं नियंत्रित करने वाली शीर्ष संस्था है। देशभर में फैले विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों में व्याख्याता (लेक्चरर) के पद पर नियुक्ति एवं कनिष्ट शोध अध्येतावृत्तियों के लिये कुछ वर्षों से नेट (NET) परीक्षा का आयोजन (U.G.C.) द्वारा किया जाता है। इस परीक्षा को उत्तीर्ण करने के बाद ही कोई अभ्यार्थी विश्वविद्यालयीन शिक्षा सेवा अथवा आयोग एवं उससे सम्बद्ध संस्थाओं द्वारा प्रवर्तित कनिष्ठ शोध ध्येतावृत्तियों (J.R.F.) हेतु पात्रता प्राप्त करता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जायेगा कि (U.G.C.) ने (J.R.E. - NET) परीक्षा के विषयों में से कोड नं. 078 "जैन विद्या और प्राकृत भाषा' को समाप्त कर 'बौद्ध दर्शन एवं गांधी शांति विचार' विषय के कोड क्रमांक 080 में विलीन कर दिया। इस प्रकार कोड क्रमांक 080 'बौद्ध, जैन, गांधीवाद एवं शांति अध्ययन' विषय बन गया। ज्ञातव्य है कि कोड क्रमांक 083 'पाली साहित्य' पूर्व से ही निर्बाध रूप से चल रहा है तथा कोड 080 में बौद्ध दर्शन भी है जबकि प्राकृत भाषा को परिदृश्य से पूर्णत: गायब कर दिया गया। इस सन्दर्भ में प्राकृत भाषा एवं साहित्य के अध्येता छात्रों, प्राध्यापकों एवं प्राकृत अध्ययन - अनुसंधान में रत विभिन्न संस्थाओं की व्यापक प्रतिक्रिया हुई है। जैन विद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी - जयपुर के निदेशक डॉ. कमलचन्द सोगाणी, अन्तर्राष्ट्रीय जैन विद्या अध्ययन केन्द्र, गुजरात विद्यापीठ - अहमदाबाद के निदेशक हॉ. शेखरचन्द्र जैन, अखिल भारतवर्षीय दि. जैन विद्वत् परिषद, तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ के अध्यक्ष पं. शिवचरनलाल जैन - मैनपुरी, प्रचार मंत्री डॉ. अभयप्रकाश जैन आदि विद्वानों ने व्यक्तिश: एवं अपनी संस्थाओं की ओर से सशक्त विरोध दर्ज कराया है तथा इस सन्दर्भ में विश्वविद्यालय अनदान , को इन कोडों में किये गये संशोधनों को निरस्त कर पूर्ववत् प्राकृत भाषा एवं जैन विद्या को एक स्वतंत्र कोड के अनतर्गत रखे जाने की मांग की है। कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर भी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से यह विनम्र आग्रह करता है कि प्राकृत भाषा की गौरवशाली परम्परा, भारतीय संस्कृति के उन्नयन में प्राकृत भाषाविदों एवं प्राकृत साहित्य के अवदान को दृष्टिगत रखते हुए उसे (NET) परीक्षा में स्वतंत्र कोड के तहत सम्यक् स्थान दिया जाना चाहिये। ऐसा करना आयोग की भारतीय भाषाओं के अध्ययन और अनुसंधान को सम्यक् संरक्षण देने की रीति-नीति के अनुरूप तो होगा ही, देश के विश्वविद्यालयों में जैन विद्या एवं प्राकृत भाषा के विभागों, पाली - प्राकृत भाषा विभागों के छात्रों के प्रति भी न्यायपूर्ण होगा। आज जब सम्पूर्ण देश में संस्कृत के विकास हेतु सघन प्रयासों की श्रृंखला में संस्कृत वर्ष मनाया जा है तब उससे भी प्राचीन भारतीय भाषा, प्राकत की यह उपेक्षा समझ से परे है। मात्र इतना ही नहीं भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग जैन धर्म के आगमों की भाषा भी प्राकृत ही है। यदि बौद्ध धर्म ग्रन्थों की भाषा पाली को समुचित आदर और सम्मान दिया जा रहा है जिसकी वह पात्र है तो फिर प्राकृत को क्यों नहीं? जैना (JAINA) का अधिवेशन ___ Federation of Jaina Associations in North America' (JAINA) का वार्षिक अधिवेशन 2 से 5 जुलाई 99 के मध्य फिलाडेल्फिया में अनेक कार्यक्रमों के साथ सम्पन्न हुआर। भारत से सम्मिलित होने वालों में अर्हत् वचन सम्पादक मंडल के सदस्य प्रो. पारसमल अग्रवाल का नाम सम्मिलित है। साध्वी चन्दनाजी, श्री मनक मुनिजी, श्री अमरेन्द्र मुनिजी, साध्वी शिल्पाजी के अतिरिक्त पूज्य भट्टारक देवेन्द्रकीर्तिजी, आचार्य महाप्रज्ञ की शिष्याएँ (श्रमणीजी), श्री ज्योतिन्द्र दोशी, ताराबेन दोशी, डॉ. जगदीशप्रसाद जैन, डॉ. कल्याण गंगवाल, पं. नीरज अर्हत् वचन, अक्टूबर 99
SR No.526544
Book TitleArhat Vachan 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy