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व्यक्तिगत मामला है किन्तु कालगणना की सुस्थापित परम्पराओं को ध्वस्त कर जन सामान्य को असत्य जानकारी देना, एक अक्षम्य अपराध है। इस सन्दर्भ में दैनिक भास्कर, इन्दौर (5 दिसम्बर 99) में प्रकाशित श्री सतीश मेहता का आलेख 'क्या सहस्राब्दी एक वर्ष बाद बदलेगी?' भी पठनीय है। भगवान ऋषभदेव निर्वाण महामहोत्सव
हमनें इन पंक्तियों के लेखनक्रम के प्रारम्भ में जिस जैन पद्धति का उल्लेख किया है उसकी जड़ें कहाँ हैं, यह जानने और समझने की आवश्यकता है। जैन परम्परा के अनुसार जैन धर्म अनादिनिधन एवं प्राकृतिक धर्म है एवं वर्तमान युग के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव हैं। भगवान ऋषभदेव ने ही सर्वप्रथम 'कृषि करो या ऋषि बनो' के रूप में एक जीवन पद्धति दी जिसके अन्तर्गत उन्होंने समाज व्यवस्था, राज व्यवस्था एवं दण्ड व्यवस्था का निर्धारण कर एक सुव्यवस्थित समाज की रचना का पथ प्रशस्त किया। असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य
और शिल्प रूप षट् विद्याओं के माध्यम से आपने ज्ञान-विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के विकास के लिये सम्यक् आधार विकसित किया। उनके द्वारा बताई गई जीवन पद्धति में आवश्यकताओं को सीमित कर प्रकृति में न्यूनतम हस्तक्षेप करते हुए जीवन जीने की कला निहित है एवं यही मानवता के संरक्षण का उपाय एवं विश्व की ज्वलंत समस्याओं का एकमात्र समाधान है। यह सब कुछ आदिपुराण में विस्तार से विवेचित है। इसके बावजूद हम सबकी उदासीनता तथा कतिपय भ्रांतियों एवं पूर्वाग्रहों के कारण जैन धर्म की प्राचीनता एवं भगवान ऋषभदेव की जनकल्याणकारी शिक्षाओं से विश्व समुदाय अनभिज्ञ रहा। परम पूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी ने भगवान ऋषभदेव के व्यक्तित्व एवं कृतित्व तथा जैन धर्म की प्राचीनता से जन-जन को परिचित कराने हेतु भगवान ऋषभदेव निर्वाण महामहोत्सव मनाने की प्रेरणा दी है एवं वर्ष पर्यन्त तक चलने वाले कार्यक्रमों का शुभारम्भ माघ कृष्णा चतुर्दशी, वि.सं. 2056, तदनुसार 4 फरवरी 2000 को दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किला मैदान पर सम्पन होगा। इस अवसर पर सप्तदिवसीय ऋषभदेव जैन मेला (4 से 10 फरवरी 2000) भी आयोजित है जिसमें आठ भव्य मण्डपों में जैन धर्म, दर्शन, साहित्य, इतिहास, संस्कृति, पुरातत्व के विभिन्न पक्षों को उद्घाटित किया जायेगा। भगवान महावीर की 2600 वीं जन्म जयन्ती
___1974 में राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रसंत आचार्य श्री विद्यानन्दजी महाराज की सार्थक एवं दूरदृष्टिपूर्ण प्रेरणा से मनाये गये भगवान महावीर के 2500 वें निर्वाण महोत्सव से जैन धर्म का व्यापक प्रचार एवं प्रसार हआ एवं जैन धर्म की बौद्ध धर्म एवं हिन्दू धर्म से अलग पहचान बनी, लोगों ने यह स्वीकार किया कि महात्मा गांधी ने भारत को स्वतंत्रता दिलाने वाले अहिंसा सिद्धान्त को जैन परम्परा से ही प्राप्त किया है। वर्तमान में ईसवी सन् 2001 में भगवान महावीर की 2600 वीं जयन्ती राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाये जाने की चर्चाएँ चल रही हैं। मेरे विचार से भगवान ऋषभदेव निर्वाण महामहोत्सव एवं भगवान महावीर की 2600 वीं जन्मजयन्ती के आयोजन की कल्पना से जुड़े कार्यकर्ताओं को परस्पर समन्वय करके भगवान महावीर की 2600 वीं जन्मजयन्ती के उपलक्ष्य में 'ऋषभदेव - महावीर महामहोत्सव' का आयोजन करना चाहिये। इससे आयोजकों की शक्ति बढ़ेगी एवं जैन धर्म के प्रचार-प्रसार के दोनों आयोजकों के मूल उद्देश्य की पूर्ति अधिक सक्षमता से होगी। यू. जी. सी. - नेट परीक्षा
अर्हत् वचन, अक्टूबर 99