SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्हत्व कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर सम्पादकीय सामयिक सन्दर्भ अर्हत् वचन का यह 44 वाँ अंक अपरिहार्य कारणों से किंचित विलम्ब से आपके हाथों में प्रस्तुत है। हमें इस बात का संतोष है कि प्रस्तुत अंक एतदर्थ निर्धारित कालावधि अक्टू. - दिस. 99 के मध्य ही प्रकाशित कर आपके हाथों में पहुँचाया जा सका। सर्वप्रथम तो मैं इस अंक के माध्यम से सम्पादक मंडल के सभी सदस्यों की ओर से आप सभी को दीपावली एवं नववर्ष की शुभकामनाएँ देता हूँ। नये वर्ष में जैन विद्याओं के अध्ययन और अनुसंधान के प्रति हम और आप सब मिलकर कुछ अधिक सार्थक और समन्वित प्रयास कर सकें, यह हम सब की कामना है, क्योंकि संत्रस्त मानवता के कल्याण हेतु एक आशा की किरण जैन जीवन पद्धति में दिखाई देती है। जब साम्यवाद, समाजवाद और पूंजीवाद . अपनी प्रासंगिकता खोते जा रहे हैं, तब अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त से समन्वित, संयमित जीवन शैली ही सन्तप्त विश्व पर्यावरण प्रदूषण, एड्स, शोषण, उत्पीड़न एवं आतंकवाद से मुक्ति दिला सकती है। असीमित भौतिक आकांक्षाएँ ही वर्ग संघर्ष, जाति संघर्ष और क्षेत्रीयता के संघर्ष की जनक हैं। इन आकांक्षाओं के वशीभूत होकर हम घोंट देते हैं। हम यहाँ कतिपय सामयिक बिन्दुओं पर चर्चा कर पाठक इन्हें रूचिकर पायेंगे। अनेकश: सत्य का भी गला रहे हैं, हमें विश्वास है कि नई सहस्राब्दी का शुभागमन सम्प्रति यत्र-तत्र - सर्वत्र नई सहस्राब्दी के शुभागमन की तैयारियाँ जोर-शोर से चल रही हैं। अनेक उत्सवों, मेलों का प्रयोजन व्यापारियों एवं उत्पादकों द्वारा किया जा रहा है। कम्प्यूटरों द्वारा अपने उपलब्ध प्रोग्रामों के माध्यम से 99 के बाद 100 को पढ़ने के बजाय शून्य आ जाने से उत्पन्न Y2K समस्या तो वास्तविक थी और हमारे देश के युवा प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों ने इसका समाधान भी ढूंढ़ लिया किन्तु मीडिया जगत पता नहीं किन दबावों में इस सत्य को अनावृत करने में संकोच महसूस कर रहा है कि संख्या का आरम्भ 1 से होता है शून्य (0) से नहीं। वर्तमान में प्रचलित ईसवी केलेन्डर में ईसवी सन् का प्रारम्भ 1 से माना गया है। हमारे देश में शून्य की अभिधारणा 2000 वर्ष से भी अधिक समय पहले विद्यमान थी किन्तु ऋषियों / मुनियों ने संख्या का प्रारम्भ कभी शून्य से नहीं किया । यदि हम 1 जनवरी 2000 से नई शताब्दी स्वीकार करते हैं तो वर्तमान शताब्दी मात्र 99 वर्ष की रह जायेगी और यह सहस्राब्दी 999 वर्ष की रह जायेगी। इसलिये 1 जनवरी 2000 से नई शताब्दी एवं सहस्राब्दी का प्रारम्भ मानना किसी भी दृष्टि से समीचीन नहीं है। प्रसिद्ध खगोलभौतिकीविद् तथा विश्वविख्यात वैज्ञानिक डॉ. जयन्त विष्णु नारलीकर ने टाइम्स ऑफ इण्डिया के 11 नवम्बर 99 के अंक में प्रकाशित अपने आलेख 'The Numbers Game Overcoming the Millenium Mania' में भी यह स्पष्ट अभिमत व्यक्त किया गया है कि नई शताब्दी का प्रारम्भ 1 जनवरी 2001 से ही होगा और 1 जनवरी 2000 से प्रारम्भ होने वाला वर्ष 20 वीं शताब्दी का अंतिम वर्ष होगा। समय की गणना करने वाली दो अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त संस्थाओं U.S. Naval Observatory और Royal Observatory Geenwich ने भी 2001 से ही नई शताब्दी को स्वीकार किया है। आमोद-प्रमोद के कार्यों अथवा व्यापारिक उत्पादनों की बिक्री के संवर्द्धन हेतु विभिन्न माध्यमों को अपनाना और प्रसंगों का उपयोग करना उनका अर्हत् वचन, अक्टूबर 99 5
SR No.526544
Book TitleArhat Vachan 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy