SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गतिविधियाँ गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी के जन्मदिवस पर तीर्थंकर ऋषभदेव संगोष्ठी गणिनी प्रमुख, आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी के 66 वें जन्मदिवस पर दिनांक 25.10.99 को भगवान ऋषभदेव संगोष्ठी आयोजित की गई। इस अवसर पर वित्त राज्यमंत्री श्री वी. धनंजयकुमार मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। सभा की अध्यक्षता संघपति लाला महावीरप्रसाद जैन ने की। संगोष्ठी को संबोधित करते हुए गणिनी प्रमुख, आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी ने कहा कि शरीर नश्वर है तथा आत्मा अजर - अमर है। इस आत्मा को परमात्मा बनाने के लिये ही हमें यह मनुष्य जन्म मिला है। आत्मा को परमात्मा बनाने के लिये धर्म, स्वाध्याय व परोपकार आवश्यक है। उन्होंने कहा कि भगवान ऋषभदेव ने हमें असि, मसि व कषि की शिक्षा दी। जिसमें उन्होंने यह भी बताया कि शासक का कर्तव्य प्रजा को कष्ट न देते हुए कर वसूलना तथा प्रजा का दायित्व कुशल शासन चलाने के लिये ईमानदारी से कर चुकाना है। ___ केन्द्रीय वित्त राज्यमंत्री श्री वी. धनंजयकुमार ने कहा कि देश की अर्थ व्यवस्था एवं समाज व्यवस्था को सुधारने के लिये भगवान ऋषभदेव के सिद्धान्तों को अपनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भगवान ऋषभदेव ने जो व्यवस्था दी है उसे लागू करने से ही इस देश की माली हालत सुधर सकती है। प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चन्दनामती माताजी ने कहा कि भगवान ऋषभदेव को इसलिये नहीं पूजा जाता है कि वे प्रथम तीर्थंकर थे बल्कि इसलिये पूजा जाता है कि उन्होंने मानव को मानवता का पाठ पढ़ाया था। जगदाचार्य स्वामी अखिलेशजी, आरा ने कहा कि शिव भगवान ऋषभदेव का ही दूसरा रूप है। इसलिये दोनों में अनेक समानताएँ पाई आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी के साथ श्री वी. धनंजयकमारजी जाती है। वृषभ दाना से जुड़ा है। कैलाश पर्वत भी दोनों से सम्बद्ध है। उन्होंने कहा कि ऋषभदेव ज्ञानावतार थे तथा जहाँ सत्य, संतोष व शान्ति होती है, वे वहीं रहते हैं। सुप्रसिद्ध पुरातत्वविज्ञ डॉ. मुनीषचन्द्र जोशी, दिल्ली ने कहा कि जैन धर्म के प्रारम्भ के बारे में कोई निश्चित प्रमाण नहीं है, यह तो अनादि काल से चला आ रहा है। जैन धर्म ही एक मात्र ऐसा विश्वधर्म है जिसमें सहस्राब्दियों पूर्व भी यह कल्पना की गई थी कि सम्पूर्ण विश्व एक हो। उन्होंने कहा कि पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से जो भ्रांतियाँ फैलाई जा रही हैं वह ज्ञान पश्चिम से आया है। पश्चिम में आज भी जैन धर्म का (ad दिशर 71 अर्हत् वचन, अक्टूबर 99
SR No.526544
Book TitleArhat Vachan 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy