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________________ टिप्पणी-2 अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर केन्द्रीय संग्रहालय, इन्दौर में सुरक्षित तीर्थंकर पार्श्वनाथ की धातु प्रतिमा - नरेशकुमार पाठक * भगवान पार्श्वनाथ को जैन धर्म का तेइसवाँ तीर्थंकर माना जाता है। वे काशीराज महाराज अश्वसेन के पुत्र थे, उनकी माता का नाम वामा था। ऐसा माना जाता है कि वे ईसापूर्व 817 में पैदा हुए थे और कुमारावस्था में ही तप ग्रहण कर लिया था। उन्हें देवदार (घव) वृक्ष के नीचे तपस्या करते हुए केवलज्ञान प्राप्त हुआ और शतायु होने के पश्चात ईसा पूर्व 718 में उन्होंने सम्मेदशिखर में रहते हुए निर्वाण प्राप्त किया। नाग उनका लांछन है। तीन, सात, नौ या ग्यारह फणावली युक्त नागराज सदैव उनके सिर के ऊपर छाया किये रहते हैं। भगवान पार्श्वनाथ के यक्ष का नाम धर्मेन्द्र और यक्षिणी का नाम पद्मावती है। यहाँ चर्चित प्रतिमा केन्द्रीय संग्रहालय, इन्दौर में बनारस (उत्तरप्रदेश) से क्रय की गई थी। तीर्थंकर पार्श्वनाथ पद्मासन में बैठे हुए हैं। सिर के ऊपर सात फण की नाग मौली है। लम्बे कर्ण तथा सौम्य रूप हैं। आँख व मुख अस्पष्ट हैं। आसन के पीछे का भाग व बायाँ पैर टूटा हुआ है। ताम्बे की धातु से निर्मित 4 x 2.5 x 8 से.मी. आकार की यह प्रतिमा लगभग 16वीं शताब्दी की मध्यकालीन कला का प्रतिनिधित्व करती है। 9* संग्रहाध्यक्ष - केन्द्रीय संग्रहालय, आगरा - मुम्बई रोड़, इन्दौर राष्ट्र की धड़कनों की अभिव्यक्ति हिन्दी का प्रमुख राष्ट्रीय दैनिक नवभारत टाइम्स 66 अर्हत् वचन, अक्टूबर 99
SR No.526544
Book TitleArhat Vachan 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
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