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________________ अर्थात परस्पर उपकार करना ही जीवन का कर्तव्य है। यह उपकार दया का प्रतीक है। दया पर्यावरण का बीमा है। कहा गया है - ___ "दयानदी महातीरे सर्वेधर्मास्तृणांकुराः" अर्थात् दया रूपी नदी के विशाल तट पर सभी धर्मों के तृणांकुर उगते हैं। जैन धर्म में प्रतिपादित पंच महाव्रत पर्यावरण प्रदूषण को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। अहिंसा जहाँ अन्य प्राणियों का वध एवं कष्ट देने का निषेध करती है, वहाँ सत्य, छल, कपट, परनिन्दा तथा कठोर वचनों के प्रयोग को वर्जित कर पारस्परिक सद्भाव और मैत्री का संवर्द्धन करती है। अस्तेय का सिद्धान्त शासकीय जंगलों से लकड़ी की चोरी, अवैध शिकार करके वन्य प्राणियों के चमड़े, सींग, हड्डी, दांत, चर्बी, ताँत आदि की चोरी पर रोक लगाने में सक्षम है। इस संदर्भ में आचार्य उमास्वामी ने जैन श्रावक के लिए अचौर्य व्रत के जिन अतीचारों का उल्लेख किया है, वे दृष्टव्य हैं - "स्तेन प्रयोग तदाहत दान विरूद्ध राज्यातिक्रम हीनाधिक मानोन्मान प्रतिरूपक व्यवहारा:"4 अर्थात चोरी की प्रेरणा देना, चोरी का माल खरीदना, राजाज्ञा के विरूद्ध चलना, माल के खरीदने एवं बेचने में न्यून या अधिक परिमाण के बाँट रखना, अच्छे माल में घटिया की मिलावट। .. अपरिग्रह का सिद्धान्त पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए रामबाण औषधि है। प्राकृतिक सम्पदा के अमर्यादित दोहन के पीछे मनुष्य की अमर्यादित परिग्रही वृत्ति है। तत्वार्थ सूत्र में कहा गया है - "मूर्छा परिग्रह'' अर्थात पदार्थों में आसक्ति ही परिग्रह। जहाँ अभाव है, वहां दुख है। आत्मा सब अभावों का अभाव चाहती है। अपरिग्रही वृत्ति का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण जैन साधुओं की दिगम्बरी मुद्रा है। दिशायें ही जिसका अम्बर हों, धरती ही जिसका बिछौना हो, आकाश ही जिसका ओढ़ना हो, मयूरपिच्छी से स्थल बुहार कर जो उठता - बैठता हो, ईर्यापथ पर विहार करता हो, भाषा, समिति और वचन गुप्ति का पालन करता हुआ जो हित - मित - प्रिय वचन बोलता हो, दिन में एक बार करपात्र में शुद्ध सान्विक भोजन ग्रहण करता हो, ऐसे निश्छल निसर्ग पुत्र का कोई भी आचरण कैसे पर्यावरण प्रदूषित करेगा? प्रभुता सम्पन्न राष्ट्रों का आयुध भंडार, विश्व की महाशक्तियों में परमाणु परीक्षण की होड़, अरब राष्ट्रों के तेल भंडार, मनुष्य की असंयमी वृत्ति के ही विनाशकारी परिणाम है। ब्रह्मचर्य महाव्रत भी पर्यावरण की रक्षा में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। बलात्कार की घटनाओं में होने वाली दिन दूनी, रात चौगुनी वृद्धि, भ्रूण हत्या, एड्स जैसी महामारी का संक्रमण, अश्लील विज्ञापन, चलचित्र एवं अश्लील साहित्य का बाहुल्य मानव की असंयमी प्रवृत्ति के ही दुष्परिणाम है। भगवान महावीर ने कहा है - 'संयम ही जीवन है, असंयम ही मृत्यु है। संयम का मार्ग साधना का राजमार्ग धर्म के तीन चरण है - अहिंसा, संयम और तप, और ये तीनों पर्यावरण रक्षा में सहायक हैं। जैन धर्म के तीर्थंकरों के जीवन चरित्र पर्यावरण रक्षा एवं प्रकृति प्रेम के ज्वलन्त 46 अर्हत् वचन, अक्टूबर 99
SR No.526544
Book TitleArhat Vachan 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
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