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________________ ने की । यथा (1) हरिवंशपुराण (शके 705 ) - अ. 60 वर्षाणां षट्शतींत्यक्वा, पंचाग्रं मुक्तिं गते महावीरे, शक 2.2 धवला (शके 738) उद्धृत पंच य मासा पंच य, वासा छच्चेव होंति वाससया । सगकालेण य सहिया, थावेयव्वो तदो रासी ॥ 41 ॥ ( पु. 9-132) प्रश्न : कौनसी राशी मिलना चाहिये ? उत्तर : - गुत्ति पयत्थ भयाइं चोदसरयणाइ समइकंताई । परिणिव्वुदे जिणिंदे, तो रज्जं सगणरींदस्स ॥42॥ ( पु. 9- पृ. 132) अर्थ - शक नरेन्द्र के वीर नि. 607 वर्ष + 5 मास में 394 वर्ष + 7 मास ( मिलाना) । - ना केई एवं परुवेिं सत्ता सहस्साणु वसय पंच (5) णउ (9) दि (3) स पंच मासाय । अइक्कंता वासाणं, जझ्या तइया सगुप्पत्ति ॥ 43॥ (पु. 9-133) * मास पंचकं । राजस्ततोऽभवत् ॥ 551॥ अर्थ कोई आचार्य इस प्रकार कहते हैं कि 395 वर्ष में शक नृप के 5 मास वाले 605 वर्ष मिलने पर एक सहस्र की जोड़ संख्या आती है। (यह कल्की काल है) टीप यह नं. 42 व 43 की गाथा भ्रष्ट रूप से आ. वीरसेन को मिली थी । यथा 43 इनको ऐसा ही सार्थ उद्धृत कर आ. वीरसेन ने लिखा 34 42- मुत्ति पयत्थ भयाई, चौद्दस स्यणाइ समइकं ताई ।......॥ 14793 सत्त सहस्स ण - व सद पंचाणइ समइकं ताई ।.......।। 7995 - देसु तिसु एक्केण होदव्वं । ण तिण्णमुवदेसाणं सच्चत्तं ॥ अण्णोणविरोहादो । तदो जाणीय वत्तव्वम् ॥ अर्थ इन तीन कथनों में से एक ही सच्चा होगा। तीनों कथनों का ठीक होना योग्य नहीं है, क्योंकि उनमें परस्पर विरोध है । अतः उनको ठीक जानकर ही वक्तव्य करें। 2.3 मूल गाथा 42 आदि का समर्थन त्रिलोकसार (10 वीं सदी) से होता है । यथा - पण छ सय वस्सं पणमास जुदं गमीय वीर गिव्वुइदो । सगराजो तो कक्की, चदुणवतिय महिय सग मासं ॥ 850 ॥ इसकी टीका में माधवचन्द्र त्रैविद्य लिखते हैं कि 'श्री वीर निवृतेः सकाशात पंचोत्तर षट् शत (605) वर्षोणि पंच मास युतानि गत्वा विक्रमांक शक राजो जायते। ततः उपरि चतुर्नवत्युत्तर त्रि ( 394 ) वर्षाणि सप्तमासादिकानि गत्वा पश्चात्कल्की जायते।' - - 'श्री वीरनाथ चौबीसवाँ तीर्थंकर 2.4 इसके हिन्दी अनुवाद में पं. टोडरमलजी लिखते हैं। का मोक्ष होने के पीछे छह सो पाँच वर्ष पाँच मास सहीत गये विक्रम नाम का राजा हो है I 2.5 पं. फूलचन्दजी सिद्धान्तशास्त्री 'खोज करने पर जान पड़ता है कि अनेक जैन लेखकों ने प्राचीन काल से शक काल के साथ भी विक्रम का नाम जोड़ रखा है। * तिलोयपण्णत्ती एवं धवला की गाथा के मूलरूप हमें स्व. शांतिकुमारजी हवली ने बताये हैं। लेखक अर्हत् वचन, अक्टूबर 99
SR No.526544
Book TitleArhat Vachan 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
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