SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ष - 11, अंक - 4, अक्टूबर 99, 33 - 36 अर्हत् वचन । कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर शक तथा सातवाहन सम्बन्ध -नेमचन्द्र डोणगांवकर * यह सम्बन्ध एक कुल का होगा। इसके लिये (1) तिलोयपण्णत्ति, (2) अन्य जिनागम, (3) हिन्दू पुराण, (4) शिलालेख, (5) नाणीलेख तथा (6) विवाह संबंध का विवेचन करूंगा। 1. तिलोयपण्णत्ति (अ - 4) वीर जिणे सिद्ध - गदे, चउसद इगिसहि वास परिमाणे। कालम्मि अदिक्कते, उप्पण्णो एत्थ सकराओ।। 1496।। अर्थ - वीर नि. 461 वर्ष का काल अतिक्रांत होने पर यह शकराज हआ। अहवा वीरे सिद्धे, सदस्स चउकम्मि सगगये गहिये। पणसीदिम्मि अतीदे, पणमासे सगणिओ जादो।। 1497 ।। अर्थ - अथवा (पूर्व शकराज का ) स्वर्गवास होने पर वीर नि. 485 वर्ष + 5 मास के बाद शकराज हुआ। चौदस सगस्स सगगय ते नउ दी वास कालविच्छेटे। वीरेसर सिद्धिदो उप्पण्णो सगणिओ अहवा।। 1498॥ अर्थ - अथवा चौदहवें शकराज के स्वर्गवास होने से अर्थात् उसके राज्य के 9 वर्ष काल बीतने पर (461 + 9) वीर नि. 470 में एक शकराज हुआ। टीप - इसको लिपिकार से ऐसा लिखा गया - 1. अहवा वीरे सिद्धे, सहस्स णवकम्मि सग सये व्यहिये।....9785 + 5 मास।। 1497 ॥ 2. चौद्दस सहस्स सगसय ................14793 वर्ष।। 1498 ।। प्रश्न : यह तो विक्रम संवत् आया। विक्रम के बारे में ऐसा कथन है कि उसकी 18 वें वर्ष में मृत्यु हुई थी। सो कैसे? उत्तर : दोनों कथन बराबर हैं। उसका जन्म वीर नि. सं. 452 में ही हुआ था। किन्तु जैन मान्यताओं के अनुसार संज्ञान 8 वर्ष बीतने पर याने 9 वें वर्ष में होने से अर्थात् वीर नि. सं. 461 में वह राज्यारूढ़ हुआ था और वीर नि. सं. 470 में उसका देहान्त भी ठीक है। यद्यपि यह विक्रम संवत् के नाम से प्रसिद्ध है, तथापि इसे ग्रंथकार ने शकनप ही लिखा है। इससे दोनों का कुल एक ही होगा। णिव्वाणे वीरजिणे, छब्बास सदेसु पंच वरिसेसु। पण मासेसु गदेसु, संजादो सगणिओ अहवा।। 1499॥ अर्थ - अथवा, वीर नि. 605 वर्ष 5 मास बीतने पर शकराज उत्पन्न हुआ। प्रश्न : गाथा नं. 1496 से 1499 तक भिन्न - भिन्न काल क्यों दिया? उत्तर : 'रायंतरेसु एसा जुत्ति सव्वेसु पतेक्कं ।। 1502।। अर्थ - यह कथन प्रत्येक भिन्न-भिन्न राजाओं की अपेक्षा हुआ है। 2. अन्य जिनागम 2.1 किन्तु अंतिम काल शक संवत् के नाम से रूढ़ होने से उसकी पुष्टि अन्य ग्रंथकारों * देउलगांव राजा-443204 (बुलढाणा), महाराष्ट्र।
SR No.526544
Book TitleArhat Vachan 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy