________________
है। इस पर चामुण्डराय ने कहा कि हमको इन ग्रंथों का अवबोध किस तरह हो सकता है? कृपया कोई ऐसा उपाय निकालिए कि जिससे हम भी इनका महत्वानुभव कर सके। इसी कारण से आचर्य ने सिद्धान्त ग्रंथों का सार लेकर गोम्मटसार ग्रंथ की रचना की। कृतज्ञता ज्ञापन - लेखक प्रस्तुत आलेख के विकास में प्रदत्त मार्गदर्शन एवं परामर्श के लिए डा. अनुपम जैन, सहायक प्राध्यापक - गणित, शा. स्वशासी होल्कर विज्ञान महाविद्यालय, इन्दौर का आभारी है। संदर्भ ग्रंथ - 1. Ghoshal, Sarat Chandra, Davva -Samgaha. The Central Jaina Publishing House, Arrah,
1917 2. जैन, ज्योतिप्रसाद, श्रवणबेलगोल और गोम्मटेश्वर बाहुबली, महाभिषेक स्मरणिका, भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली,
श्री वीर निर्वाण ग्रंथ प्रकाशन समिति, इन्दौर, 1981 3. Jain Laxmichandra & Jain Anupam, Philosopher Mathematicians, Digambara Jain
Institute of Cosmographic Research, Hastinapur (Meerut), 1985 4. जैन, पं. खूबचन्द्र, गोम्मटसार (जीवकाण्ड), श्रीमद राजचंद्र आश्रम, अगास, 1985 5. Jaini, J.L. Gommatasāra (Jiva - Kanda). The Central Jaina Publishing House, Ajitashram,
Lucknow, 1927 6. शास्त्री, देवेन्द्रकुमार, चामुण्डराय के गुरुद्वय, महाभिषेक स्मरणिका, भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली, श्री वीर निर्वाण
ग्रन्थ प्रकाशन समिति, इन्दौर, 1981 7. शास्त्री, पं. मनोहरलाल, गोम्मटसार (कर्मकाण्ड), श्री परमश्रुत प्रभावक मंडल, श्रीमद राजचंद्र आश्रम, अगास,
1986 8. Sastri, T.V.G., Gommatesvara of Sravanabelgola, Arhat Vacana, 6(2), April - 94, pp.
25-31 सम्बद्ध गाथाओं का पुन: प्रस्तुतीकरण - गोम्मटसार (जीवकाण्ड)
अज्जज्जसेणगुणगण समूह संधारि अजियसेण गुरू।
भुवणगुरू जस्स गुरू सो राओ गोम्मटो जयऊ।। 743 ।। गोम्मटसार (कर्मकाण्ड)
जह चक्केण य चक्की छक्खंडं साहियं अविग्येण। तह मइचक्केण मया छक्खंडं साहियं सम्म।। 397 ।। जम्हि गुणा विस्संता गणहरदेवादिइडिढपत्ताणं। सो अजियसेणणाहो जस्स गुरू जयउ सो राओ। 966 ।। गोम्मटसंगहसुत्तं गोम्मटसिहरूवरि गोम्मटजिणो
य। गोम्मटरायविणिम्मिय दक्खिणकुक्कडजिणो जयउ॥96811 वज्जयणं जिणभषणं ईसिपभारं सुवण्णकलसं तु। तिहवणपडिमाणिक्कं जेण कयं जयउ सो राओ॥970॥ गोम्मटसत्ताल्लिहणे गोम्मटरायेण जा कया देसी। सो राओ चिरकालं णामेण य वीरमत्तंडी।।972।।
अर्हत् वचन, अक्टूबर 99