________________
चामुण्डप
कि संसार में जीव और कर्म के संयोग से जो पर्यायें आती हैं, उनके विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता चामुण्डराय को है।
चामुण्डराय के प्रश्नों के उत्तर आचार्य ने धवला आदि ग्रंथों के आधार पर तर्क विधान, प्रमाण और नय द्वारा दिए होंगे, जिसमें सिद्धान्तशास्त्र समाहित होता गया होगा।
आचार्य ने तत्काल यह अनुभव किया होगा कि चामुण्डराय जैसे अनेक व्यक्तियों को इस ज्ञान की आवश्यकता है, तो क्यों नहीं फिर इन उत्तरों को लेखबद्ध किया जाए। इसी विचार से ग्रंथ लिखना प्रारंभ हुआ होगा, जो योद्धा के संदेह निरस्त करके समाप्त
हुआ।
- ग्रंथ में बाहबली प्रतिमा (दक्षिण कुक्कुटजिन) के उल्लेख के आधार पर कहा जा सकता है कि ग्रंथ का पूर्ण संपादन प्रतिष्ठापना समारोह के पश्चात् ही हुआ है। इस समारोह के पश्चात् चामुण्डराय ने सांसरिक जीवन त्याग दिया हो, यह बहुत संभव है। त्यागी शिष्य और सिद्धान्तचक्रवर्ती आचार्य के बीच बहत शास्त्रार्थ हआ होगा. जो ग्रंथ निर्माण में फलित हुआ। 8.6 ग्रंथ निर्माण का जो कारण बना उसी के नाम पर इसका नामकरण किया जाना चाहिए। ऐसा आचार्य ने ग्रंथ के पूर्ण संपादन के पश्चात् सोचा होगा। 8.7 चामुण्डराय के बाल्यावस्था के नाम नेमिचंद्राचार्य के ध्यान में कैसे आया ? इसकी दो संभावनाएं है। पहली संभावना यह है कि काललदेवी द्वारा आचार्य के समक्ष चामुण्डराय को 'गोम्मट' नाम से संबोधित किया जाना, जो आचार्य को भी प्रिय लगता होगा। दूसरी संभावना यह है कि यदि डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन का मत सही है, तो आचार्य को अपने बालसखा का नाम 'गोम्मट' याद होगा।
'सार' का अभिप्राय है 'घना तात्पर्य'। गोम्मटसार पूर्ववर्ती ग्रंथों का सार है।
अतएव ऐसे सार रूप ग्रंथ का नाम चामुण्डराय के नाम पर 'गोम्मटसार' रखा गया। उसने इस ग्रंथ पर आचार्य के समक्ष ही 'वीरमार्तण्डी' नामक कन्नड टीका की रचना की। 9. टिप्पणियाँ एवं अन्य अभिमत - 9.1 यद्यपि दोनों धारणाएं कोई ठोस समसामयिक आधार या लक्ष्य प्रस्तुत नहीं करती तथापि उपाध्ये की धारणा शब्द प्रचलन के आधार पर सुसंगत है। 9.2. चामुण्डराय का घरेलू नाम 'गोम्मट' ही प्रतिष्ठापित बाहुबली, चंद्रगिरि, उक्त स्थानों आदि के लिए समय के साथ - साथ प्रयुक्त हुआ होगा। 9.3 इस संभावना से विमुख नहीं हुआ जा सकता कि चामुण्डराय ने बाहुबली प्रतिष्ठापना समारोह में पहली बार आचार्य नेमिचंद्र के दर्शन किए हो। इससे प्रस्तुत परिकल्पना बहुत अधिक प्रभावित नहीं होती है। 9.4 ऐसी भी श्रुति है कि एक बार आचार्य नेमिचंद्र धवला आदि महा सिद्धान्त ग्रंथों में से किसी सिद्धान्त ग्रंथ का स्वाध्याय कर रहे थे। उसी समय गुरू का दर्शन करने के लिए चामुण्डराय भी आए। शिष्य को आता देखकर आचार्य ने स्वाध्याय करना बन्द कर दिया। चामुण्डराय नमस्कार करके बैठ गए तब उसने पूछा कि आचार्य आपने ऐसा क्यों किया ? तब आचार्य ने कहा कि श्रावक को इस ग्रंथ को सुनने का अधिकार नहीं
अर्हत् वचन, अक्टूबर 99