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रूप में तथा गणितीय साधन पर आधारित हैं। 7. नाम रहस्य धारणाएं - चामुण्डराय को गोम्मटराय, आचार्य द्वारा संपादित ग्रंथ को गोम्मटसार, चंद्रगिरि को गोम्मटगिरि और उस पर स्थित जिनालय में भगवान नेमिनाथ को गोम्मटजिन तथा बाहुबली प्रतिमा (दक्षिण कुक्कुटजिन) को गोम्मटेश्वर क्यों कहा गया है? इस प्रश्न पर ऊहापोह करने वाले सभी विद्वान अपनी - अपनी धारणाएं लेकर चले है। 7.1 प्रारंभिक धारणा - शरत्चन्द्र घोषाल, नाथूराम प्रेमी, श्रीकंठ शास्त्री, हीरालाल जैन आदि विद्वान यह मानकर चले है कि भगवान बाहबली का ही अपरनाम गोम्मट था। गोविंद पै. ने गोम्मट शब्द को संस्कृत के 'मन्मथ' का अपभ्रष्ट रूप सिद्ध करने का प्रयास किया
जे.एल. जैनी ने 'गोम्मट' को भगवान महावीर के लिए प्रयुक्त बताया है। उन्होंने इसका संधि विग्रह भी किया है। 'गो' का अभिप्राय (दिव्य) वाणी है तथा 'मठ' का अभिप्राय है निवास। इस प्रकार गोम्मट का अर्थ होता है दिव्य ध्वनि का निवास। 7.2 उपाध्ये की धारणा - डॉ. ए.एन. उपाध्ये के अनुसार गोम्मट शब्द मूलतः प्राकृत या संस्कृत भाषा का नहीं वरन् देशज है, जो थोड़े-थोड़े अंतर को लिए हुए कन्नड़, मराठी, कोंकणी एवं तेलुगू में पाया जाता है, जिसका अर्थ उत्तम, आकर्षक, प्रसन्न करने वाला आदि होता है। उनका यह भी अनुमान है कि चामुण्डराय का घरेलू नाम ही गोम्मट रहा होगा। आज भी मराठी भाषी लोग गौर वर्ण एवं सुन्दर बालक को 'गोरा गोमटा' कहते
8. परिकल्पना एवं उसके चरण - 'गोम्मटसार' के नामकरण हेतु उत्तरोत्तर चरण पर परिकल्पना को इस प्रकार विकसित किया जा सकता है। 8.1 उपाध्ये की धारणा को अनुमत करके यह कहा जा सकता है कि चामुण्डराय बाल्यावस्था में सुन्दर ओर आकर्षक होगा। इसी कारण माता काललदेवी उसे गोम्मट कहती होगी। 8.2 गोम्मट बड़ा होकर महासेनापति चामुण्डराय हो गया। अनेक युद्धों को जीतने के पश्चात् उसकी मनोदशा भी धीरे-धीरे वैसी ही हई होगी जैसा कि बाहुबली की भरत को पराजित करने पर तथा सम्राट अशोक की कलिंग युद्धोपरान्त हुई। चामुण्डराय के पास इन राजाओं की तरह त्यागने के लिए कोई राजपाट नहीं था। वह मात्र गंगनरेशों का मंत्री और महासेनापति था। 8.3 गंगवंश के साम्राज्य में सर्वत्र जैन धर्म का प्रभाव था। स्वयं चामुण्डराय का परिवार इस धर्म का अनुयायी था। हमें ऐसा लगता कि काललदेवी ने ही चामुण्डराय को परामर्श दिया होगा कि वह जैनाचार्यों की पूर्णकालिक शरण ले ताकि इस योद्धा की मनोदशा स्थिर हो सके। यह बहुत संभव है कि सबसे पहले उसे कलगरु अजितसेनाचार्य की शरण में ले जाया गया होगा। . 8.4 अजितसेनाचार्य ने निदान किया होगा कि उसे पूर्णकालिक विद्यागुरू की आवश्यकता है तथा इस हेतु तत्कालीन सर्वश्रेष्ठ आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती का नाम प्रस्तावित किया होगा। 8.5 ऐसा लगता कि नेमिचंद्राचार्य उस समय श्रवणबेलगोल में ही होंगे अथवा उन्हें विशेष आग्रह करके यहाँ आमंत्रित किया गया होगा। आचार्य के समक्ष चामुण्डराय ने प्रश्न रूप में अनेक संदेहों को प्रकट किया होगा। जिनके आधार पर उन्होंने निर्धारित किया होगा 22
अर्हत् वचन, अक्टूबर 99