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________________ गर्मी को महसूस नहीं करना चाहिए? क्या प्रबुद्ध जैन तीर्थ यात्रियों को तक्षशिला के दर्शन नहीं करना चाहिए? क्या जैन इतिहासकारों को इस किवदंती के सत्य से हमें परिचित नहीं कराना चाहिए? कोई हानि नहीं यदि यह किवदंती असत्य सिद्ध हो जाय पर यदि सत्य के दायरे में आ जाय तो जैन धर्म की प्राचीनता, इतिहास सम्मत हो जायेगी और हमें जैन साहित्य का यह इतिहास कि 'जैन साहित्य के उद्गम की कथा का आरंभ भगवान महावीर से होता है' लिखने के पूर्व दो बार सोचना पड़ेगा। यह साहित्य भगवान महावीर के पूर्व था। स्वयं भगवान महावीर ने अपने समय में उपस्थित किसी चर्चा को अव्याकत कहकर अलक्षित या उपेक्षित नहीं किया था। संभवत: सब लिखित गूढ विषयों को उन्होंने स्पष्ट किया था। पूछे गये प्रश्नों का आधार भी लिखित साहित्य ही था। इन्द्रभूति किस प्रश्न का समाधान करने महावीर के पास आये थे? भारत में धर्म की जो धारा बह रही है वह इस सत्य को समझ लेने से कोई उल्टी नहीं बहने लगेगी। कोई इस धारा को उल्टा बहाने का साहस भी नहीं कर सकता। इस देश में जिसे हम धर्माचरण कहते हैं वह सब धर्मों का मिला जुला प्रभाव है। इसका तात्पर्य यह नहीं होता कि हम समयसार को उपनिषद समझ लें। उपनिषद कर्ताओं ने समयसार को अपना कर जो तत्व दर्शन फैलाया वह समयसार से बहुत भिन्न है। गीता ने भी आत्मा के बारे में जो कुछ समझाया वह समयसार से बहुत भिन्न है। इसका अर्थ यह नहीं कि हम अपनी जिव्हा से कटु आलोचना करें। संभवत: अपना कर्त्तव्य तो यह होना चहिए कि जो समयसार में लिखा है उसे सरल सुबोध माध्यम से जैन धर्म के बंधन से मुक्त जन-जन तक पहुँचायें। 'मिथ' झूठ नहीं - सत्य को कहने का अन्य तरीका है। इसी संदर्भ में आचार्य रजनीश का यह सोचना कि 'इतिहास का आग्रह यह होता है कि बाहर की घटी हुई घटनायें, तथ्य फैक्ट्स की तरह संग्रहीत हों। पुराण या मिथ इस बात पर जोर देती है कि बाहर की घटनाएं तथ्य की तरह इकट्ठी हों या न हों, निष्प्रयोजन वे इस भांति इकट्ठी हों कि जब कोई इनसे गुजरे, तो इसके भीतर कुछ घटित हो जाय। तक्षशिला में पाकिस्तान द्वारा यद्धज टैंकों का निर्माण करना तक्षशिला के विनाश की एक नई कहानी का सूत्रपात है। अत: तक्षशिला से जड़े सत्य और किंवदंतियों का अब लिखित रूप में बदल जाना अत्यंत आवश्यक है। संदर्भ - 1. श्री रामशरण शर्मा : प्राचीन भारत में भौतिक प्रगति एवम् सामाजिक संरचनाएं - पृ. 37 2. पी.एन. ओक : विश्व इतिहास के विलुप्त अध्याय - पृ. 45, 62, 92 3. पुरुषोत्तम जैन एवम् रवीन्द्र जैन, अर्हत् वचन (इन्दौर), वर्ष 11, अंक-2 - पृ. 44 4. राधाकुमुद मुकर्जी : हिन्दू सभ्यता - पृ. 31 5. राधाकुमुद मुकर्जी : हिन्दू सभ्यता - पृ. 104 - 135 6. Grammery : Websters Encyclopedic Dictionary पृ. 1457 7. रोमिला थापर : भारत का इतिहास पृ. 43 8. रोमिला थापर : वही : पृ. 45 9. रोमिला थापर : वही : पृ. 51 10. स्वयं के अध्ययन के आधार पर : क्या स्तूप परंपरा जैन परंपरा है? अप्रकाशित 11. जान मार्शल : Taxila Vol. I, Cambridge, 1951 P.P. 256-57. National Musew Collection 12. कैलाशचंद्र शास्त्री : जैन साहित्य का इतिहास (पूर्व पीठिका) पृ. 60 13. रोमिला थापर : वही पृ. 50 14. रोमिला थापर : वही पृ. 59 15. ओशो (आचार्य रजनीश): महावीर मेरी दृष्टि में : पृ. 27 प्राप्त - 15.8.99 18 अर्हत् वचन, अक्टूबर 99
SR No.526544
Book TitleArhat Vachan 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
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