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________________ बौद्ध संघ का, बाद की शताब्दियों में तक्षशिला में प्रभुत्व सर्वविदित है। बहुत प्राचीन काल से चली आ रही जैन स्तूप परंपरा (आगमों - मूर्तियों - स्मरण चिन्हों को सुरक्षित रखने का स्थान) को तक्षशिला में पहचाना जाना, तक्षशिला के आस - पास यूनानी संदर्भो द्वारा जैन मुनियों को पहचाना जाना, बौद्ध संघ की आक्रामकता और उसके बाद यह विश्वास जैनों में चले आना कि बौद्ध धर्म के अनुयाइयों द्वारा जैन आगमों की होली जलाई गई जो 6 माह तक जलती रही, एक सीधा संदेश देता है कि यह अलिखित विश्वास सत्य होना चाहिए। यह बात इसलिए भी सच लगती है कि चिंतनशील प्रवृत्ति का आत्मशोधी श्रमण अपनी बात को लिखे. बिना नहीं रह सकता। भारत जैसे विशाल देश में जिस प्रकार ऋग्वेद पूर्व श्रमण संस्कृति को पहचाना जा रहा है, लिखित ग्रंथ होना ही चाहिए। अब उनका न मिलना इस बात की पुष्टि करते हैं कि 'उनकी होली जला दी गई।' इन आगमों के अस्तित्व को प्रकाशित करते हुए जर्मनी के डा. हावर ने अथर्ववेद के 15 वें काण्ड के संबंध में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है "ध्यानपूर्वक विवेचन के बाद मुझे स्पष्टतया विदित हो गया है कि यह प्रबंध प्राचीन भारत के ब्राह्मणेत्तर आर्य धर्म को मानने वाले व्रात्यों के उस वृहत वाङ्मय. का कीमती अवशेष है जो प्राय: लुप्त हो गया है।12 '' यह इतना स्पष्ट संकेत देता है कि व्रात्यों का अपना आगमों का एक विशाल भंडार था। विद्वानों द्वारा व्रात्यों को स्पष्ट रूप से श्रमण मान लिया गया है। व्रात्य, व्रतों की परंपरा मानने वाले चरित्रवान लोगों को ऋग्वेद द्वारा दिया गया नाम है। 9. तक्षशिला के संदर्भ में रोमिला थापर की यह टिप्पणी विचारणीय है कि 'अधिक कर्म कांडी ब्राम्हण इस प्रदेश को अपवित्र मानते थे, क्योंकि यह फारस के आधिपत्य में चला गया था (पृ. 51) यहाँ वैदिक व अन्य संदर्भो की ओर ध्यान दें तो कर्मकांडी ब्राम्हणों और कट्टर वैदिकता के समर्थकों के मध्य तक्षशिला को ऋग्वेद के काल से ही मान्यता प्राप्त नहीं थी क्योंकि तक्षशिला शक्तिशाली श्रमणकेन्द्र के रूप में स्थापित था। गांधार प्रदेश के प्रति विद्वेष भाव अथर्ववेद में भी (5.22.14) पहचाना गया है। जिसमें प्रार्थना की गई है 'गन्धारियों, भुजवन्तों, अंगों तथा मगधों के देश में ज्वर फैले। संभवत: यह दुर्भावना इसलिए थी कि यह प्रदेश वैदिक विद्याओं को नहीं जैन विद्याओं को अपनाये हुए थे। आगमों की यह होली कब जली होगी इस पर थोड़ा विचार करना लाभप्रद होगा। 1. भगवान बुद्ध का निर्वाण 544 ई.पू. में हुआ। भगवान महावीर का निर्वाण 527 ई.पू. __ में हुआ। 2. 530 ई.पू. से कुछ पहले फारस के एकेमेनिड सम्राट साईरस ने कंबोज, गंधार तथा सिंधु क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित किया था।13 फारसी विचारों का प्रभाव भारतीय जीवन के विविध क्षेत्रों में अनुभव किया गया। भारत फारस के बीच सर्वाधिक रोचक आदान - प्रदान कुछ शताब्दियों के पश्चात् बौद्ध धर्म के विकास के साथ घटित हुआ जब बौद्धमत के आरंभिक विचारों ने फारस के दार्शनिक एवम् धार्मिक आंदोलनों की ओर अधिक पश्चिम तक प्रभावित किया। यह ई.पू. 330 के पहले की स्थिति होना चाहिए क्योंकि सिकंदर के ई.पू. 330 में फारस को जीत लेने के बाद फारस का इन क्षेत्रों पर प्रभाव समाप्त हो गया। बौद्धमत की महायान शाखा को झोरीष्ट्रीयन धर्म ने प्रभावित किया इससे यह अनुमान लगाना संभव है कि ई.पू. 330 से पहले बौद्ध धर्म (विशेष कर महायान शाखा) का प्रभाव इस क्षेत्र में बढ़ गया होगा। इस काल में इस क्षेत्र में चार धार्मिक आंदोलन दिखाई देते है। जैन, बौद्ध, झोराष्ट्रीयन और अर्हत् वचन, अक्टूबर 99
SR No.526544
Book TitleArhat Vachan 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
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