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________________ सत्य प्राप्त हों उसको स्वीकार करें। इन लिखित असत्यों को बार - बार खोजपूर्ण कहकर, पढ़ाकर इतिहास मनवाने का प्रयत्न जिस प्रकार संदिग्ध है उससे परंपरा से चली आ रही जहन में जमी हुई - अनुष्ठानों में छिपी हई बातों को कसौटी पर कसना कई गुना उचित व इतिहास की खोलने में अधिक सहायक है। इतिहास कोई शर्मीली लता नहीं जो मान्यताओं, परंपराओं और अनुष्ठानों की उंगली देखते ही मुरझा जाय। जैन समूह में बहुत प्राचीन समय से यह मान्यता चली आ रही है कि 'तक्षशिला में छ: माह तक बौद्धों ने जैन आगमों की होली जलाई। 60 वर्ष पूर्व ठेठ गांव पर जैन बहुल क्षेत्र में अपने दादा से यह बात सुनी थी। अभी भी पुराने पीढ़ी के लोग इस संदेश के वाहक के रूप में मिल जायेंगे। कुछ दिनों पूर्व पुन: एक बुजुर्ग से इसी बात को सुना और मन हुआ कि इस जैन जन मानस में बैठी बात पर विचार खोज की जाय। जो सामग्री प्राप्त हुई इसे आपसे बाँट रहा हूं। यह किसी बौद्ध विद्वेष से प्रेरित नहीं है। अहिंसा के संदेश को विश्व में फैलाने में महात्मा बुद्ध ने जो योगदान दिया वह अविस्मरणीय है। महावीर ने अहिंसा के संदेश को गहराई दी और बुद्ध ने विस्तार दिया। विस्तार ने कालांतर में मूल चिंतन को कई ऐसी धाराओं में मोड़ दिया कि वह आक्रमक हो गया। ईसा पूर्व की तीसरी शताब्दी से लेकर ईसा पश्चात् की कुछ शताब्दियों में बौद्ध संघ ने जो जैन विरोधी रूख अपनाया उसे कौन नहीं जानता। अकलंक निकलंक की कथा जिस किसी ने पढ़ी है वह इस बात को अच्छी तरह जानता है कि बौद्ध समूह हर हालात में जैन चिंतन को नष्ट करना चाहता था। वैदिक समाज तो ऋग्वेद के माध्यम से पहले ही करीब 4000-5000 वर्ष पूर्व से ही इस कार्य में लगा था किन्तु श्रमण चिंतन से उपजे बौद्ध चिंतन ने भी इस पर हमला किया। बौद्ध समूह हर हालत में जैन चिंतन को नष्ट करना चाहता था क्योंकि भगवान बुद्ध इस चिंतन से बहुत अधिक प्रभावित थे। उनकी समस्त अवधारणाओं पर जैन चिंतन आत्मज्ञान बौद्ध संघ के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती थी। भगवान बुद्ध के अवसान के बाद बौद्ध धर्म के मूल रूप से स्खलित होने के परिणाम स्वरूप, बौद्ध संघ को ऐसा लगने लगा कि उनकी मान्यताओं को कसौटी पर कसने वाले जैन आगमों को नष्ट कर देना आवश्यक है। और उन्होंने ऐसा किया। उन्हें मालूम था कि तक्षशिला में जैन आगमों का भंडार है और एक अमूल्य मानवीय धरोहर, धर्म की धारणाएं, धर्म का शिकार हो गईं। अपार जैन विद्याओं का संग्रह अग्नि की भेंट चढ़ा दिया गया। कल्पना कीजिए छ: माह तक होली जलती रहे तो क्या नहीं जला होगा? आगम (कपड़े - सेलखड़ी - लकड़ी - पत्तों पर अंकित), शिल्प (लकड़ी - ताम्बें और अन्य माध्यमों द्वारा निर्मित) सभी जलकर खाक हो गये होंगे। इससे इतना बड़ा शून्य पैदा हो गया कि जैन समाज में यह धारणा बल पकड़ गई कि अभिव्यक्त आगम सुरक्षित नहीं अत: उन्हें मस्तिष्क में रखना सुरक्षित समझा जाने लगा। श्रुत केवली और केवली इसी प्रकार के ऋषि थे जिन्होंने अपने मस्तिष्क में उन्हें सुरक्षित रखा। तक्षशिला के बारे में हैं। इससे हटकर कुछ थोड़ा विचार कर लें तो ठीक रहेगा। तक्षशिला को अन्य किस. रूप में पहचाना गया है इसे भी देख लें। 1. ऋषभदेव के छोटे पुत्र बाहुबली की राजधानी तक्षशिला थी। यह सोच पुरषोत्तम जैन ने व्यक्त किया है। 2. सिंधु सभ्यता का विघटन राधाकुमुद मुकर्जी के अनुसार ईसा से 2750 वर्ष पूर्व के मा सचा मारताय सदमा म कई जगह सुचनाए माजद अर्हत् वचन, अक्टूबर 99
SR No.526544
Book TitleArhat Vachan 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
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