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________________ किया जाना चाहिए। अधिकतम देखने में आया है कि धार्मिक अंधता और राजनैतिक स्वार्थ ऐसी झूठों को प्रचारित करने में आगे रहते हैं जो मानवीय संवेदनाओं के लिए घातक होते हैं। इतिहास को दूषित करते हैं। दूसरी यह कि जो लिखा है वह सदैव सत्य नहीं होता। आग्रहजनित संदर्भ व उद्देश्य कभी - कभी इतिहास को भटका देते हैं और काल को उसे ढोते रहना पड़ता है। कई लिखित सत्य आज अंसत्य के दायरे में आये हैं। जैसे नई खोजों से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि आर्यों जैसी किसी जात ने भारत पर हमला नहीं किया था। जबकि इतिहास के कई पन्ने इस बात को दोहराते नहीं थकते कि आर्यों के आक्रमण के साथ भारत का इतिहास शुरू होता है। यह एनालिसिस इसलिए बनी f ऋग्वेद ने ऐसे संकेत दिये जैसे आर्यों ने भारत पर हमला किया जबकि जो संघर्ष था वह पहले से चले आ रहे हैं और यह नवोदित विचारों का संघर्ष था। अब लिखा यह भी झूठ सिद्ध हो चुका है कि वैदिक संस्कृति से पूर्व भारत में कोई संस्कृति नहीं थी। अब सिंधु सभ्यता जैसी सभ्यता के विशाल क्षेत्र में फैले होने की खोजों ने यह स्पष्ट कर दिया कि वैदिक सभ्यता से अधिक सशक्त व उन्नत सभ्यता भारत में निरन्तर रूप से प्रवाहित थी। बल्कि यों कहना चाहिए कि वैदिक चिंतन ने धीरे - धीरे अपने में पल रही कमियों को दूर करने के लिए पूर्व में विकसित सभ्यता से कई पाठ सीखे और संस्कृति को नये आयाम मिले। अच्छे और बुरे का निर्धारण करना हमारा काम नहीं है। मेग्नीफाइंग ग्लास लगाकर सत्य को देखने का प्रयास भर हम कर सकते हैं। विश्व स्तर पर इतिहासकारों ने लिखा कि महावीर से जैन धर्म प्रारंभ हुआ पर अब यह असत्य सिद्ध हो चुका है। महावीर काल में पार्श्वनाथ पूजे जाते थे जो उनसे 250 वर्ष पूर्व हुए और नेमिनाथ आत्मज्ञान के वाहक थे जो कृष्ण और पांडव के समकालीन थे। दिल्ली के लाल किले और आगरा के ताजमहल पर लिखा इतिहास कि यह दोनों मुसलमान शासकों की देन है बिलकुल असत्य है। इन्हें पूर्ववर्ती हिन्दू राजाओं ने बनाया था जिसे मुसलमान शासकों ने बलात कब्जा कर उस शिल्प को परिवर्तित कर दिया। अब यह सत्य उजागर हो रहे हैं। इतिहासकारों से यह त्रुटि प्राप्त संदर्भो के कारण हुई जो आग्रहजनित थे। मुसलमान इतिहासकारों ने अपने बादशाहों को खुश करने के लिए ऐसी बातें लिख दी जो थी ही नहीं। जो मनगढंत और वास्तविकता से परे थीं। इन संदर्भो के आधार पर अंग्रेज - इतिहासकारों और भारतीय इतिहासकारों ने जब बीसवीं सदी में भारत का इतिहास लिखा तो वह भी सत्य से परे हो गया है। यहाँ तक कि प्राचीन अवशेषों के आगे नाम पट्टिका और विवरण लिखने में भी भारी भूल हुई। इन सब ने मिलकर जनमानस में ऐसी अवधारणा पैदा कर दी मानो भारत रीढ़विहीन लोगों का देश था जब कि इतिहास की परतों में घुसा जाय तो स्पष्ट होता है कि देश में सांस्कृतिक - औद्योगिक एवम् वैज्ञानिक शक्ति से भरपूर एक निरन्तर प्रवाहमान परंपरा थी। . जागृत चिंतकों का तो यह देश खान है। श्रमण, वैदिक, ब्राम्हण, बौद्ध और कई उपशाखाओं के रूप में प्रचलित विचारों के उदगम और विस्तार पर विचार करें तो इस देश पर बाह्य आक्रमणों के अलावा इन विचारों के आपसी संघर्ष ने बहुत प्रभाव डाला है। इन्होंने कई बार आक्रामक रुख भी अपनाया और कई बार अपनी ही जड़ों को काटा, इस का लाभ विदेशी हमलावरों को मिला। अब इसका परिणाम देखिये। हिन्दू, जैन, मुसलमान, क्रिश्चियन, सिख - पारसी सब अपनी आइडेंटीटी इस देश में तलाश कर रहे हैं एक दूसरे की आइडेंटीटी समाप्त कर, जो कि स्वप्न में भी संभव नहीं है। ऐसे भारत के इतिहास को पहचानने के लिए हम ऐसा भी नहीं कर सकते कि इस लिखे को पूर्णत: नकार दें किन्तु हम इस पर प्रश्न चिन्ह लगाकर, इस का सम्यक विश्लेषण कर, जहाँ से भी जो 10 अर्हत् वचन, अक्टूबर 99
SR No.526544
Book TitleArhat Vachan 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
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