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________________ आस - पास हुआ। इस विघटन के परिणाम स्वरूप सिंधु क्षेत्र के वासियों का प्रत्यावर्तन सारे देश में हुआ। यहां के वासी अपनी कृतियों, अपनी विद्याओं के साथ प्रत्यावर्तित हए। इस प्रत्यावर्तन को अब अच्छी तरह पहचाना जाने लगा है। यह भी अब विश्वास के साथ पहचाने जाने लगा है कि समस्त सिंधु सभ्यता के क्षेत्र में श्रमण (जैन) चिंतन और विद्याओं का अस्तित्व था। विस्थापित सिंधु सभ्यता के वासी तक्षशिला भी पहुंचे जहाँ संभवत: पहले से ही जैन धर्मावलंबी रह रहे थे। सिन्धु क्षेत्र के निकट ही उत्तर में तक्षशिला अवस्थित है। साथ में दिये मानचित्र (अगले पृष्ठ पर) को देखें तो स्पष्ट रूप से दिखाई देगा कि सिंधु सभ्यता के केन्द्रों से जुड़ा हुआ तक्षशिला था। तक्षशिला ने इस काल में बहुत बड़े श्रमण समूह को अपने आंगन में पाया होगा। इन सब लोगों ने मिलकर अपनी विद्याओं को सुरक्षित रखने के लिए स्तूपों का निर्माण कराया और तक्षशिला को जैन विद्याओं का केन्द्र बना दिया। संलग्न मानचित्र में महाभारत काल में श्री राधाकुमुद मुकर्जी ने तक्षशिला को पहचाना है। यदि ऋग्वेद काल में तक्षशिला का अस्तित्व था तो राधाकुमुद मुखर्जी ने अपने वैदिक भारत के नक्शे में इसे क्यों नहीं दिखाया? यह इसलिए है कि वेदों में तक्षशिला का वर्णन नहीं है। हो सकता है कि वैदिक जनों का वहां वास न हो और चूंकि वह क्षेत्र अन्य विद्याओं का केन्द्र था इसलिए इसे जानबूझकर वेदों में स्थान न दिया हो। ऋग्वेद के अध्ययन से स्पष्ट है कि ऋग्वेद में सीमित स्थानों का ही विवरण है। अत: तक्षशिला का वर्णन न हो तो कोई अनूठी बात नहीं है। जो पंसद नहीं उसे नहीं लिखना यह प्रवृत्ति भारत के इतिहास के बारे में नई नहीं है। सम्राट चंद्रगुप्त और चाणक्य के संदर्भो को 10 शताब्दी तक जैन होने के कारण आंखों से ओझल रखा गया है। स्वयं जैन संदर्भो में बुद्ध का कहीं वर्णन नहीं होना इसी प्रवृत्ति की ओर संकेत करता है। महाभारत काल ईसा से करीब 1000 वर्ष पूर्व माना जाता है। इस समय तक्षशिला का अस्तित्व था यह पूर्णत: मान्य है। 3. तक्षशिला एक प्राचीनतम नगर है। Webster Encyclopedic Unabarised° डिक्शनरी में लिखा है तक्षशिला रावलपिंडी पश्चिमी पाकिस्तान के निकट वास्तुशिल्पीय स्थान है, इसी स्थान पर निरंतर तीन शहरों के भग्नावशेष है, जिसका समय ईसा की 7 वीं सदी पूर्व से ईसा पश्चात 7 वीं सदी तक जाता है। यह बुद्ध समुदाय का केन्द्र है। डिक्शनरी (पृ. 1437) में ऐसा वर्णन करना एक अंतर्राष्ट्रीय भूल है। इसे सुधारा जाना चाहिए क्योंकि तक्षशिला का एक सांस्कृतिक समृद्ध स्थान के रूप में महाभारत काल में अस्तित्व था। लगभग 600 ई.पू. भी तक्षशिला एक महत्वपूर्ण प्राचीन राजनैतिक व सांस्कृतिक नगर था। यह नगर एक सांस्कृतिक परंपरा का परिणाम था। 600 से 321 ई.पू. की राजनैतिक व सामाजिक परिस्थितियों व वैचारिक अवधारणाओं के विकास के बारे में रोमिला थापर ने लिखा है वैदिक कट्टरता के विरुद्ध जिन्होंने प्रजातांत्रिक प्रतिक्रिया की चली आ रही परंपरा को अक्षुण्ण रखा था। उन में शाक्य, कोलीय या मल्लों, वज्जियों और यादवों को पहचाना गया है। यह सभी वंश जैन महापुरूषों से जुड़े हैं। 'प्रजातंत्र पर मिले विवरणों को देखने से प्रतीत होता है कि उनके जीवन में नगरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमें वैशाली के एक ऐसे नवयुवक का विवरण मिलता है, जो प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए लंबी और कठिन यात्रा करके तक्षशिला गया था और अपने घर लौटकर इसने दस्तकारी शुरू की थी' अर्थात् तक्षशिला इसके पूर्व भी विद्याओं का केन्द्र था। तक्षशिला और वैशाली के घनिष्ठ संबंध थे। यह संदर्भ स्पष्ट रूप से कह रहा है अर्हत् वचन, अक्टूबर 99
SR No.526544
Book TitleArhat Vachan 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
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