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________________ कोई शक्ति नहीं है। ऐसी वैज्ञानिक मान्यता है। इस सन्दर्भ में जैनागम की मान्यता पूर्ण वैज्ञानिक है तथा आज के विज्ञान से मेल खाती है। जैनदर्शन की स्पष्ट घोषणा है कि - काहू न करै न धरै को, षड्द्रव्यमयीन न हरै को। सो लोक माँहि बिन समता, दुख सहै जीव जित भ्रमता॥' यह लोक तीन वात वलयों के सहारे अलोकाकाश में निरालम्ब स्थित है, यह भी विज्ञान सम्मत है।10 जैनागम जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश तथा काल ये 6 द्रव्य मानता है।1 आधुनिक विज्ञान भी जीव, मैटर, ईथर, फील्ड, स्पेस और टाइम फैक्टर आदि के नाम से 6 द्रव्यों को स्वीकार करता है। सौर मण्डल आकाश में दिखाई देने वाले सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और तारे, इन्हें जैनागम में ज्योतिष्क देव कहते हैं। इनके विमान चमकीले होते हैं अत: इनकी ज्योतिष्क संज्ञा सार्थक है। - जैनागम के अनुसार चित्रा पृथ्वी से 790 योजन से प्रारम्भ होकर 900 योजन की ऊँचाई तक अर्थात 110 योजन में ज्योतिष्क देवों के विमान स्थित है। जैनागम सूर्य पहले है और चन्द्रमा उसके ऊपर जबकि विज्ञान का निष्कर्ष इसके विपरीत है। स्व. पं. जगन्मोहनलाल शास्त्री, कटनी ने अपने निबंध 'जैन शास्त्रों में वैज्ञानिक संकेत'12 में इस अन्तर का समाधान करते हुए लिखा है कि 'पहले पंडित लोग लेखन कार्य करते थे, वे जैन दर्शन के विद्वान नहीं होते थे। अत: उनसे लेखन कार्य में त्रुटि संभव है। पूज्यपाद स्वामी की जो गाथा है उसके पूर्वार्ध में ग्रहों की पृथ्वी से आकाश तक की दूरी की संख्या है और गाथा के उत्तरार्ध में ग्रहों के नाम क्रमश; दिये गये हैं। अन्य सभी एतद् विषयक लेखन उनके बाद के हैं। अत: प्रथम बार त्रुटि हो जाने के कारण बाद के सभी ग्रंथों में त्रुटि होती रही। जिज्ञासु पाठक यह लेख पढ़ें। क्या मनुष्य चन्द्रमा तक पहुँच सकता है? जैनागम के अनुसार सूर्य पृथ्वी से 800 योजन और चन्द्रमा 880 योजन पर है। कर्क सक्रांति के समय जब सूर्य पहली गली में आता है तब चक्रवर्ती नरेश अयोध्या में अपने महल के ऊपर से उस दिन सूर्य विमान में स्थित जिनबिम्ब का दर्शन कर लेते हैं। चक्रवर्ती की दृष्टि का विषय 47, 263/720 योजन प्रमाण है। अर्थात उस दिन सूर्योदय के समय सूर्य निषध पर्वत के ऊपर होता है। उस समय की दूरी का यह प्रमाण आता है। इससे स्वयंसिद्ध है कि भिन्न - भिन्न स्थानों में स्थित सूर्यादि ग्रहों की दूरी का प्रमाण भिन्न-भिन्न ही होगा। इसी परिप्रेक्ष्य में चन्द्रमा की दूरी का अंतर ढूंढ़ना आवश्यक होगा तभी वैज्ञानिक दूरी या आधुनिक दूरी का अंतर या रहस्य जाना जा सकेगा। पं. जगन्मोहनलालजी के अनुसार मनुष्य का चन्द्रलोक को जाना आगम पद्धति के विरुद्ध नहीं अर्हत् वचन, जुलाई 99
SR No.526543
Book TitleArhat Vachan 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
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