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________________ एवं सृष्टि के आरम्भ से संबंधित है। 'अवसर्पिणी के छठे काल के अन्त में मेघों के समूह सात प्रकार की निकृष्ट वस्तुओं की वर्षा 7-7 दिन तक करते हैं जिनके नाम अत्यंत शीतल जल, क्षार जल, विष, धुंआ, धूलि, वज्र एवं जलती हुई दुष्प्रेक्ष्य अग्नि ज्वाला है। इन सात रूप परिणत हुए पुद्गलों की वर्षा 7-7 दिन तक होने से लगातार 49 दिनों तक चलती है।' 'उत्सर्पिणी काल के प्रारम्भ में पुष्कर मेघ सात दिन तक सुखोत्पादक जल को बरसाते हैं जिससे वज्र, अग्नि से जली हुई सम्पूर्ण पृथ्वी शीतल हो जाती है। क्षीर मेघ 7 दिन तक क्षीर जल की वर्षा करते हैं जिससे पृथ्वी क्षीर जल से भरी हुई उत्तम कांतियुक्त हो जाती है। इसके पश्चात अमृत मेघ अमृत की वर्षा करते हैं जिससे अभिषिक्त भूमि पर लता - गुल्म आदि उगने लगते हैं। इसके बाद रस मेघ 7 दिन तक दिव्य रस की वर्षा करते हैं। इस दिव्य रस से परिपूर्ण वे लता आदि सर्वरस वाले हो जाते हैं। पश्चात शीतल गंध को प्राप्त करके मनुष्य और तिर्यंच गुफाओं से बाहर निकल आते हैं। ' पृथ्वी पर जलीय भाग अधिक है विज्ञान के अनुसार ' धरातल का लगभग एक तिहाई भाग ही भूमि है, शेष भाग में जल है। अर्थात धरातल के 71% भाग में जल एवं 29% भाग में थल है। 5 इस कथन पर यदि हम विचार करें तो मध्यलोक में अनेक / असंख्यात द्वीप समूह हैं। प्रत्येक द्वीप को उससे दुगने विस्तार वाला समुद्र घेरे हुए है। तथा अंतिम समुद्र स्वयंभूरमण है। जो सम्पूर्ण द्वीप समूहों से दोगुना है। इसके अलावा भी प्रत्येक द्वीप में अनेक सरोवर एवं नदियाँ हैं। उक्त वर्णन से स्पष्ट है कि धरातल का भूमि भाग जलीय भाग की अपेक्षा कम है। द्वीप के चारों ओर जल है ' पृथ्वी के महासागर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, इसलिये समुद्रों का जल स्तर सभी जगह एक सा रहता है। यदि हम सम्पूर्ण विश्व के नक्शे को चटाई की तरह बिछाकर देखें तो नक्शे में पृथ्वी के चारों ओर जल भाग ही दिखाई देगा। जैनागम के अनुसार प्रत्येक द्वीप को चारों ओर से समुद्र घेरे हुए है, जैसे जम्बूद्वीप को लवण समुद्र आदि । 7 वायुमण्डल का तापमान - विज्ञान के अनुसार हम जैसे जैसे जमीन के अन्दर नीचे की ओर जाते हैं वैसे-वैसे तापमान क्रमशः कम होता जाता है।' जैनागम में नरकों के गर्मी एवं ठण्ड के दुखों का वर्णन करते हुए लिखा हैं कि प्रारम्भ के चार नरक पृथ्वियों के सभी बिल और पांचवीं पृथ्वी के 3/4 भाग प्रमाण बिल उष्ण हैं तथा पांचवें पृथ्वी के अवशिष्ट बिल तथा छठवीं सातवीं पृथ्वी के बिल शीत हैं। इससे आगम की वैज्ञानिकता स्पष्ट है। विश्व स्वतः निर्मित है विश्व स्वतः निर्मित है। सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी आदि सभी ग्रह परस्पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण निरालम्ब स्थित है। इस विश्व की निर्माता रक्षक या विनाशक ईश्वर नाम की अर्हत् वचन, जुलाई 99 45
SR No.526543
Book TitleArhat Vachan 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
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