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________________ कुंदकुंद ने स्वर्ण के अयस्कों को सुहागे एवं लवण के साथ संगलित कर शुद्ध रूप में प्राप्त करने की चर्चा की है। सीसे के अयस्कों को नागफणी एवं गोमूत्र के साथ उत्तापित करने से भी सोने को प्राप्त करने की बात कही है। वह घर्षण, मारण, काटन आदि विधियों से जांचा जाता है। प्रज्ञापना में जल के 19 भेद बताये गये हैं। अन्य ग्रंथों में इनकी संख्या 6-7 के बीच पाई जाती है। इसके अंतर्गत मद्य, दुग्ध, इक्षुरस, अम्लरस आदि का भी उल्लेख है। जल में जलयोनिक एवं वायुयोनिक जीव पाये जाते हैं। जल का शोधन उबालने तथा फिटकरी से किया जाता है। यह अन्य पदार्थों का शोधक भी है। किण्वित या खट्टे जलों का भी उल्लेख है। जल के भेदों में गैसीय जल (भाप) का उल्लेख नहीं है। जीवाभिगम में 21 स्रोतों से मद्य प्राप्त करने का उल्लेख है। मूलाचार के अनुसार किण्वित पदार्थों (घी आदि) के भक्षण योग्य बने रहने की सीमा चौबीस घंटे की है। जीवभिगम में द्रव पदार्थों के कणों का आधार घनीय बताया गया है और ठोस कणों की आकृति गोलीय बताई गई है। ऐसा प्रतीत है कि मुलाचार और उत्तरवर्ती काल में वायु गैस कोटि के पदार्थों का प्रतिनिधि था। इसीलिये वायु के 7 भेदों में केवल उसी के रूप गिनाये गये हैं। हां, प्रज्ञापना में अवश्य इसके 19 भेद गिनाये गये हैं। इनमें मुँह (और नाक या श्वासोच्छवास) की वायु परिगणित है। यह प्रमुखत: कार्बनडाइऑक्साइड है। वायु तो अनेक गैसों का मिश्रण है। इसके अतिरिक्त अन्य वायुओं का विवरण उत्तरवर्ती काल में संयोजित नहीं हुआ है। वायु के प्रमुख गुणों में जलने में सहायक होना है। इसके विपर्यास में, तूफान ज्वलन क्रिया का प्रतिरोधी है। वायु श्वासोच्छवास का एक अंग है और इसमें संकोच - विस्तार के गुण पाये जाते हैं। इसमें सूक्ष्म जीवाणु भी पाये जाते हैं। अग्नि को आगमकाल में सुज्ञात ऊर्जाओं का प्रतीक माना जा सकता है। इसके 6 - 12 भेद बताये गये हैं। इनमें ताप, प्रकाश एवं विद्युत (यहां तक कि ईंधन - रहित अग्नि) ऊर्जाओं का समाहरण है। यह भी उनके दृश्य एवं प्राकृतिक रूपों में है। प्रज्ञापना में मणिज अग्नि, घर्षण अग्नि, उल्का आदि का भी उल्लेख है। ऊर्जा के ये तीन प्रमुख रूप शास्त्रीय युग में सुज्ञात थे। तैजस ऊर्जा के रूप में हमारे शरीर तंत्र में तैजस शरीर माना गया है जो हमारे आहार के पाचन एवं शरीर तंत्री के संचालन के लिये ऊर्जा स्त्रोत का काम करता है। अकलंक ने बताया है कि तैजस न केवल हमारे शरीर का संचालक है अपितु यह मिट्टी को पकाकर घड़े में परिणत करता है और धातुओं में अवशोषित होता है। इस प्रकार, तैजस ऊर्जा रासायनिक क्रियाओं के संपादन में काम आती है। भौतिक और रासायनिक क्रियायें 19 रसायन शास्त्र में भौतिक और रासायनिक क्रियाओं का विवरण किया जाता है जो परमाणुओं एवं स्कंधों के संयोग - वियोग से संपन्न होती है। शास्त्रों में आचार्यों ने इस संबंध में अपने अनेक अवलोकनों के माध्यम से जैन सिद्धांतों को समझाया है। जैन ने 29 अवलोकनों का संकलन किया है जिनमें 18 तो भौतिक क्रियायें हैं, 8 रासायनिक क्रियायें हैं और 3 अपरिभाषित क्रियायें हैं। भौतिक क्रियाओं में सामान्यत: अवस्था परिवर्तन (दूध का उष्णीकरण, प्रशीतन, विसरण, अविलेयता, पदार्थों का द्रवण एवं ठोसीकरण) एवं भौतिक स्वरूप में परिवर्तन (बादल, कुहरा, आकाश - वृक्ष, झंझावात, तन्तुओं से वस्त्र निर्माण, क्रिस्टलन, अर्हत् वचन, जुलाई 99 39
SR No.526543
Book TitleArhat Vachan 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
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