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________________ स्कंधवाद सामान्यत: स्कंध परमाणुओं के भौतिक या रासायनिक दृश्य या अदृश्य समुच्चय को कहते हैं। यह समुच्चय 'भेद - संघातेम्य: उत्पद्यतें के बहुवचनांत सूत्र में उल्लिखित तीन विधियों से निष्पन्न होता है - 1. भेद से : बड़े स्कंधों के विभेदन से 2. संघात से : परमाणुओं के संयोजन / सम्मेलन से सूक्ष्म को स्थूल बनाने से 3. भेद और संघात के मिश्रित प्रक्रम से - उमास्वामी ने तो यह भी बताया है कि दृश्य स्कंध 'भेद - संघात' के द्वितय प्रक्रम से बनते हैं। कुंदकुंद के अनुसार, सभी स्कंध परमाणुओं के विभाग परिणमन हैं। नेमिचंद्राचार्य ने बताया है कि स्कंधों में परमाणु प्राय: गतिशील ही बने रहे हैं। सभी स्कंध परमाणुओं के कार्य हैं और इनसे परमाणुओं का अस्तित्व ज्ञात होता है। ये स्कंध सूक्ष्म (चक्षुषा अदृश्य) और स्थूल - दोनों प्रकार के होते हैं। इन स्कंधों को प्रारंभ में वर्तमान समकक्षता के लिये 'अणु' माना जाता था, पर चूंकि 'अणु' तो रासायनिक समुच्चय है और स्कंध भौतिक समुच्चय (शर्करा - रेत) भी हो सकता है, अत: अब स्कंध को 'समुच्चय' कहना ही अधिक उपयुक्त है। भगवती और स्थानांग में स्कंधों का विभाजन उनमें विद्यमान परमाणु या प्रदेश संख्याओं के आधार पर उल्लिखित है जहां 42 से 1786 तक स्कंध संख्या बताई गई है। 15 पर इस आधार को परम्परा की स्वीकृति नहीं मिल सकी। फलत: स्कंधों को कुंदकुंद और अन्य आचार्यों ने अनेक प्रकार से विभाजित किया। इनमें कुंदकुंद का षटप्रकारी वर्गीकरण भी समाहित है। ऐसा लगता है इसे भी लोकप्रियता न मिल सकी क्योंकि इसे भी अन्य आचार्यों ने उल्लिखित नहीं किया। स्कंधों का 8 या 23 वर्गणागत विभाजन अनेक आचार्यों ने माना है। षट्खंडागम का तो एक खंड ही वर्गणाखंड है। इसके अंतर्गत प्राय: सभी प्रकार के दृश्य एवं अदृश्य स्कंध समाहित होते हैं। प्रज्ञापना में समुच्चयन विधि से स्कंध के 530 भेद बताये हैं। परमाणुओं की संख्या और उनके गुणों की तीव्रता की कोटि के पर स्कंधों के अगणित भेद भी बताये गये हैं। स्कधी का यह वर्गीकरण ईसा पूर्व की सदियों का है जिसमें उत्तरवर्ती काल में कोई विशेष परिर्वतन नहीं हुआ है। महावीर के पूर्ववर्ती या समकालीन कात्यायन के सात तत्वों की तुलना में कुंदकुंद ने धातु चतुष्क को मूल स्कंध माना। पंचास्तिकाय एवं अन्य ग्रंथों में इनके भेद - प्रभेद भी मिलते हैं। ये उत्तराध्ययन 16 प्रज्ञापना एवं जीवाभिगम 18 आदि पूर्ववर्ती ग्रंथों में भी पाये जाते हैं। चार मूलभूत स्कंधों में पृथ्वी, जल, तेज और वायु हैं। यद्यपि ये मूलत: एकेंद्रिय कोटि के पदार्थ हैं, फिर भी अनेक कारणों से ये अजीव स्कंध हो जाते हैं। सामान्यत: इनमें पृथ्वी, जल द्रव, वायु गैस एवं तेज ऊर्जा के प्रतिनिधि हैं। प्रत्येक कोटि में कुछ अपवाद भी हैं। पृथ्वी - स्कंध के अंतर्गत भूगर्भ और भूतल पर विद्यमान 36 - 48 पदार्थों के नाम हैं। इन नामों में समय - समय पर संयोजन होते रहे हैं। मणियों की संख्या में वृद्धि हुई है। पारद और रांगा का नाम जुड़ा है। इन स्कंधों में 6 धातुयें, 10 रासायनिक यौगिक (प्राकृतिक) एवं 20 मणियां भी समाहित हैं। मिट्टी और पत्थर के विभिन्न रूप भी हैं। अर्हत् वचन, जुलाई 99 38
SR No.526543
Book TitleArhat Vachan 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
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