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________________ आत्मा शरीर से निकल कर गमन करती है तथा जेनेटिक कोड / भाग्य / कर्मफल के अनुसार शरीर / स्थान में पहुँच कर उसका आगे निर्माण करती है या कहें कि एक निश्चित जेनेटिक कोड वाले शरीर में फिट बैठने वाले कार्माण शरीर का निर्माण होता है जो आत्मा के साथ उस नयी पर्याय में पहुँच कर अपना नया जीवन आरम्भ कर देता है। पुनश्च आदमी या किसी भी जीव के जेनेटिक कोड से मिलकर एक गाय / शेर / कीड़े / चिड़िया / पौधे या किसी भी जीव का निर्माण किया जा सकता है। उपसंहार इस प्रकार से जीव विज्ञान के अध्ययन के आधार पर लगता है कि समस्त जीवों के सम्पूर्ण जीवन का संचालन, उनकी मूलभूत इकाइयों को कोशिकाओं के अन्दर स्थित जीनों/ जेनेटिक कोड के द्वारा होता है। जैन कर्म सिद्धान्त के अनुसार विभिन्न गतियों, शरीरों का कारण कर्म होता है, जीव के कर्मों के कारण कार्माण शरीर बनता है जो जीव के विभिन्न कार्यों को संचालित करता है। यह कार्माण शरीर ही संभवत: जीनों की क्रिया को नियंत्रित करता है तथा अनूकूल या प्रतिकूल परिणाम देता रहता है तथा अगली पर्याय का निर्धारण करता है। इस परिकल्पना को यदि प्रयोगशालाओं में परिवर्धित, परिमार्जित, पल्लवित किया जाये तो यह निष्कर्ष निश्चित रूप से सामने आयेगा कि व्यक्ति की सोच / कार्य के अनुसार ऐसे कारण उसके चारों ओर आकर्षित होते हैं जो कि आगे चलकर तदनुरूप सुखद या दुखद परिणाम देते हैं। टेलीपैथी/ रैकी जैसी कुछ प्रणालियों से ऐसे निष्कर्ष निकले भी हैं कि एक व्यक्ति के विचार, शक्ति दूसरी व्यक्ति की विचार / शक्ति तक पहुँचकर उसे प्रभावित करते हैं। इस दिशा में यदि हम अन्वेषण / अनुसंधान कर सकें तो उपरोक्त जीव वैज्ञानिक परिकल्पना एक निश्चित सिद्धान्त/नियम रूप में सामने आ सकेगी जिससे व्यक्ति सदाचार और कदाचार के प्रत्यक्ष परिणामों को जानकर स्वत: आदर्श आचरण का आलंबन लेने लगेंगे तथा सुखी, संतुष्ट, संतुलित समाज बन सकेगा। आभार ___ मैं आचार्य श्री कनकनंदीजी महाराज का आभारी हूँ जिनके आशीर्वाद, शुभकामनाओं, प्रोत्साहनों से तथा उनके वृहद चिन्तन परक, आधुनिक सरल शैली में लिखे ग्रन्थों की सहायता से प्रस्तुत परिकल्पना की जा सकी। मैं डॉ. राजमल जैन - उदयपुर, डॉ. अनुपम जैन - इन्दौर एवं डॉ. जे. डी. जैन - दुर्गापुरा (जयपुर) का भी अत्यन्त आभारी हूँ जिनकी वैज्ञानिक दृष्टि, शुभकामनाओं ने मुझे संबल दिया। References (Literature) 1. Gupta P.K., Psychology, Genetics and Plant Breeding, Rastogi Publication, Shivaji Road, Meerut-2, 1989, p. 1-163, 1-219. 2. कनकनन्दि आचार्य, स्वतंत्रता के सूत्र (तत्वार्थ सूत्र टीका सहित), धर्म दर्शन शोध प्रकाशन, बड़ौत, 1992 अर्हत् वचन, जुलाई 99 21
SR No.526543
Book TitleArhat Vachan 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
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