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________________ हा हैं। ये गुणसूत्र कोशिकाओं में होते हैं और शरीर कोशिकाओं से ही मिलकर बना है। अर्थात समस्त कोशिकाओं में जीन तो समान ही होते हैं। अत: यह आवश्यक है कि एक निश्चित समय में कुछ ही जीन सक्रिय और शेष निष्क्रिय रहें। यह प्रक्रिया काफी कठिन है। 18 ऐसा विश्वास किया जाता है कि विकसित जीवों में एक विशिष्ट समय में सिर्फ 2-15 प्रतिशत तक जीन सक्रिय रहते हैं। 19 विभिन्न जीव किस तरह से, किसके नियंत्रण में कार्य करते हैं इस पर शोध अभी चल रहा है और यहाँ मेरी सोच यह है कि किसी जीव की सक्रियता, निष्क्रियता को प्रभावित करने वाले कारकों में अंतत: विशिष्ट विकिरणें अर्थात कर्म परमाणु ही होंगे। जीन नियंत्रण और शोध संभावना - विभिन्न जीनों को सक्रिय और निष्क्रिय करने का कार्य हार्मोन्स, विटामिन्स, खनिज, रसायन, रोगजनक कर सकते हैं। 20 ऐसा माना जाता है कि जीन की सक्रियता जीन के वातावरण के साथ हुई क्रिया से प्रभावित होता है अर्थात जीन के चारों ओर स्थित कोशिका द्रव्य के पोषण, प्रकाश तापमान से जीन नियंत्रित होता है। 21 इस तरह से जीन विभिन्न गुणों का निर्धारण करता है और जीन पर नियंत्रण कुछ जाने/ अनजाने कारकों द्वारा होता है। यह शोध का विषय होना चाहिये कि कहीं ये कारक व्यक्ति विशेष के कर्म तो नहीं है? जीव उत्परिवर्तन और भाग्य बदलना - अनेक बार ऐसा होता है कि किसी जीव के गुण में मूलभूत तथा आंशिक परिवर्तन आ जाता है ऐसा परिवर्तन भी जीन परिवर्तन के कारण होता है जिसे कि उत्परिवर्तन कहते हैं। उत्परिवर्तन वह है जिसमें जीव की रासायनिक संरचना इस तरह से बदल जाती है जो कि उस जीव के बाह्य लक्षण तक को वंशानुगत रूप में बदल देते हैं। 22 यह उत्परिवर्तन कृत्रिम रूप से भौतिक कारकों विभिन्न विकिरणों, एक्स-रे, गामा- रे, अल्ट्रा - वायलेट रे के द्वारा हो सकता है। विभिन्न रसायन भी उत्परिवर्तन कर सकते हैं। 23 उत्परिवर्तन में क्षारकों का क्रम परिवर्तन होता है। 24 यहाँ भी अगर हम प्रस्तुत परिकल्पना की दृष्टि से देखें तो विभिन्न प्रकार के कर्म उत्परिवर्तन उत्पन्न जीव के भाग्य को बदलते / रूपान्तरित करते रहते हैं। पर्याय परिवर्तन / पुनर्जन्म और जेनेटिक कोड - कोशिका के केन्द्रक में गुणसूत्रों के ऊपर स्थित जीन (जो कि जेनेटिक कोड से मिलकर बने होते हैं) जीव की विभिन्न क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं और इन जीनों/ जेनेटिक कोडों पर कर्म तरंगें अपना निश्चित नियंत्रण रखकर जीवन नियमन करती है। यहाँ पर एक रोचक तथ्य है कि समस्त छोटे बड़े जन्तुओं, सूक्ष्मजीवों और पादपों में एक समान जेनेटिक कोड ही होता है। 25 अर्थात अमीबा से लेकर आदमी तक सबमें जीवन संचालक मूलभूत संकेताक्षर समान ही होते हैं अत: पुनर्जन्म की अवधारणा को भी इससे संबल प्राप्त होता है। __संभवत: कार्माण वर्गणायें निश्चित जेनेटिक कोड को नियंत्रित करते हुए अगले जन्म / पर्याय हेतु जेनेटिक कोड को ऐसा निश्चित क्रम प्रदान करती है कि वैसे शरीर की खोज में अर्हत् वचन, जुलाई 99 20
SR No.526543
Book TitleArhat Vachan 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
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