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________________ असातावेदनीय कर्म अधिक सतायेगा। इसका एक मनावैज्ञानिक कारण भी है। इन सब बातों से यह निष्कर्ष निकलता है कि व्यक्तित्व के निर्माण में कर्म ही सब कुछ नहीं होते हैं बल्कि आनुवंशिकता, परिस्थिति, वातावरण, भौगोलिकता, पर्यावरण, ये सब मनुष्य के स्वभाव और व्यवहार पर असर डालते हैं। अतः शक्ल सूरत के निर्माण में मात्र नाम कर्म ही सब कुछ नहीं होते हैं। मनुष्य के रूप रंग पर देश काल का प्रभाव भी आसानी से देखा जा सकता है। एक ही माता से दो बच्चे जन्म लेते हैं एक ठण्डे देश में तथा दूसरा गर्म देश में ठण्डे देश में जन्म लेने वाला बच्चा अपेक्षाकृत गोरा हो सकता है। इतना ही नहीं, यदि कोई व्यक्ति ठण्डे देश में रहना प्रारम्भ कर दे तो उसके रंग में भी परिवर्तन आ सकता है। आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार जीन्स (Genes) तथा रासायनिक परिवर्तन भी व्यक्तित्व के निर्माण में अपना प्रभाव डालते हैं। आयु कर्म भी एक कर्म है, लेकिन बाह्य निमित्त, जैसे जहर आदि के सेवन से आयुष्य को कम किया जा सकता है। इसी प्रकार यदि गुणसूत्रों (क्रोमोसोम्स) या जीन्स में परिवर्तन कर दिया जाय तो उससे शक्ल सूरत में परिवर्तन किया जा सकता है। इस प्रकार अकेले नाम कर्म ही यह तय नहीं करता कि किसी जीव ( या मनुष्य) की शक्ल सूरत कैसी होगी बल्कि बाह्य परिस्थितियाँ भी इसमें परिवर्तन कर सकती हैं। कोशिका के केन्द्रक को विशेष प्रकार से परिवर्तित करके यदि हम एक सी शक्ल सूरत वाले जीव पैदा करते हैं तो इसमें कर्म सिद्धान्त के अनुसार कोई विसंगति नहीं आती है क्योंकि कर्मों में संक्रमण आदि सम्भव है। अतः हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि कर्म सिद्धान्त के अनुसार एक ही प्रकार की शक्ल सूरत वाले जीव पैदा कर देना या क्लोनिंग के दौरान कोशिका के केन्द्रक (Neucleus) को परिवर्तित कर देना संभव है। अतः क्लोनिंग की प्रक्रिया कर्म सिद्धान्त के लिये चुनौ नहीं है बल्कि कर्म सिद्धान्त को व्यवस्थित तरीके से समझ लेने पर इस प्रक्रिया की व्याख्या कर्म सिद्धान्त के आधार पर आसानी से की जा सकती है। सन्दर्भ ग्रन्थ एवं लेख प्राप्त - 1. 'From Cell to Cloning', P. C. Joshi, Science Reporter, Feb. 98. 2. Cloning', Domen R. Olrzowy. The New Book of Popular Science, Vol-3, Grolier Inc., 89. - - 3. 'The Cell, John Pleiffer, (IInd Edition, 88 ) Life Time Books Inc., Hongkong. 4. 'जैन धर्म और दर्शन, मुनि प्रमाण सागर 5. 'कर्मवाद', आचार्य महाप्रज्ञ । . 6. क्या अकाल मृत्यु सम्भव है ?', डॉ. अनिलकुमार जैन तीर्थंकर, इन्दौर, जुलाई 94. 1.12.98 - अर्हत् वचन, जुलाई 99 15
SR No.526543
Book TitleArhat Vachan 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
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