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________________ प्रकाशित जैन साहित्य का सूचीकरण गत 100-150 वर्षों में विपुल परिमाण में जैन साहित्य प्रकाशित हुआ है। इसके बावजूद भी ग्रंथ भंडारों में सैकड़ों ग्रंथ अप्रकाशित हैं। यह समाज के लिए अत्यंत दुःखद है कि आज बीसवीं सदी के अंतिम वर्ष में भी हम न तो अपने ग्रंथ भंडारों का पूर्णत: सर्वेक्षण करा सके एवं न उनका सूचीकरण इसी कारण आज हमारे पास पाण्डुलिपि के रूप में सुरक्षित ग्रंथों की सूची भी उपलब्ध नहीं है। जब भी किसी नए भंडार का सूचीकरण होता है, तब यह समस्या आती है कि कितने ग्रंथ अद्यतन अप्रकाशित हैं एवं कितने प्रकाशित इसका निर्धारण हो जाने पर सीमित मात्रा में अद्यतन अप्रकाशित ग्रंथों का संरक्षण प्राथमिकता के आधार पर किया जा सकता है। शोध एवं अनुसंधान कार्य में लगे विद्वानों के लिए प्रकाशित साहित्य की जानकारी भी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि इसके माध्यम से ही वे पुनरावृत्ति के दोष एवं निरर्थक श्रम से बच पाते हैं। लगभग 50 वर्ष पूर्व प्रकाशित ग्रंथों में भी आज अनेकों अनुपलब्ध हैं एवं नई पीढ़ी को उनके नाम भी ज्ञात नहीं है। किसी भी नए अप्रकाशित ग्रंथ के सम्पादन / प्रकाशन के समय उसकी अन्य पांडुलिपियों की खोज भी नितांत आवश्यक होती है। सम्यक जानकारी के अभाव में बहुत श्रम एवं धन अन्य पांडुलिपियों की खोज में व्यर्थ चला जाता है। शोधार्थियों की सुविधा तथा प्रकाशित / अप्रकाशित साहित्य के संरक्षण की प्रक्रिया के प्रथम चरण में प्रकाशित जैन साहित्य के सूचीकरण की परियोजना कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, 584. महात्मा गांधी मार्ग, तुकोगंज, इन्दौर 452001 द्वारा बनाई गई है। - सश्रुत प्रभावना ट्रस्ट, भावनगर द्वारा भी इसी प्रकार की असुविधाओं का गत 2 वर्षों से अनुभव किया जा रहा था उन्होंने इसके समाधान हेतु अनेक संस्थाओं एवं विद्वानों से सम्पर्क किया संपर्क के क्रम में उन्होंने कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर से भी पत्राचार द्वारा संपर्क किया एवं ज्ञानपीठ के आमंत्रण पर चर्चा हेतु ट्रस्ट के प्रतिनिधि के रूप में श्री हीरालालजी जैन, नवम्बर 98 में पधारे। इस चर्चा के माध्यम से वर्तमान योजना के प्रारूप को अंतिम रूप दिया गया। सत्श्रुत प्रभावना ट्रस्ट, भावनगर एवं कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर के संयुक्त तत्वावधान में कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर द्वारा संचालित इस परियोजना का क्रियान्वयन 1 जनवरी 99 से प्रारंभ किया जा चुका है। हमें ज्ञात है कि पूर्व में भी कुछ विद्वानों एवं संस्थाओं ने एतद् विषयक प्रयास किये हैं किन्तु प्रकाशन का कार्य इतनी तीव्र गति से बढ़ा है कि वे प्रयास अब नाकाफी हो गए हैं तथा इस कार्य को बीच में छोड़ देने के कारण परिणाम अधिक उपयोगी न बन सके। हमारी योजना के अनुसार हम इस परियोजना के प्रतिफल इन्टरनेट एवं प्रिन्ट मीडिया द्वारा सर्वसुलभ करायेंगे। मात्र इतना ही नहीं कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ इस सूची में निरन्तर परिवर्द्धन करता रहेगा एवं जिनवाणी के उपासकों हेतु यह सदैव सुलभ रहेगी। ज्ञानपीठ द्वारा एतदर्थ आधुनिक संगणन केन्द्र' (Computer Centre) की स्थापना की जा चुकी है। हमारा अनुरोध है कि 1. जिन संस्थाओं ने पूर्व में प्रकाशित जैन साहित्य के सूचीकरण का प्रयास किया है वे अपनी सूचियों की छाया प्रतियां या फ्लापियां उपलब्ध कराने का कष्ट करें छाया प्रतियां (फोटोकापी) या फ्लापियों का व्यय देय तो रहेगा ही, उनके सहयोग का उल्लेख भी भाव प्रकाशन में किया जाएगा। 2. समस्त ग्रंथ भंडारों / पुस्तकालयों के प्रबंधकों से भी अनुरोध है कि वे अपने संकलनों की परिग्रहण - पंजियों (Accession Registers) की छायाप्रतियां भी हमें भिजवाने का कष्ट करें। एतदर्थ शुल्क ज्ञानपीठ द्वारा देय होगा । यदि आवश्यकता हो तो हमारे प्रतिनिधि भी आपकी सेवा में उपस्थित हो सकते हैं। · 3. जिन विद्वानों / प्रकाशकों ने जैन साहित्य का लेखन / प्रकाशन किया है, उनसे भी निवेदन है कि ये पूर्ण सूची / लेखक / शीर्षक / प्रकाशक / प्रकाशन स्थल / प्रकाशन वर्ष / संस्करण / मूल्य / प्राप्ति स्रोत आदि सूचनाओं सहित हमें शीघ्र भिजवाने का कष्ट करें। 4. इस परियोजना के अंतर्गत पांडुलिपियों की सूचियाँ भी संकलित की जायेंगी किन्तु उनका प्रकाशन एवं समग्र सूचीकरण दूसरे चरण में किया जाएगा। सभी विद्वानों / प्रकाशकों / भंडारों के व्यवस्थापकों / पुस्तकालयाध्यक्षों / संस्थाओं के पदाधिकारियों से इस महत्वाकांक्षी / विस्तृत योजना में सहयोग का विनम्र आग्रह है । डॉ. अनुपम जैन सचिव कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ अर्हत् वचन, अप्रैल 99 (कु.) संध्या जैन कार्यकारी परियोजनाधिकारी 87
SR No.526542
Book TitleArhat Vachan 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size23 MB
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