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________________ है, जिसमें उन्होंने अंतिम तपस्या की और आठ सीढ़ियाँ चढ़कर अलोप हो गये। 150-200 वर्ष पूर्व तो वहाँ ऊपर मन्दिर में जैन मूर्तियाँ थीं और तीर्थ यात्री आते थे, पर बाद में वह बौद्ध मन्दिर बन गया और मूर्तियाँ कहीं भारत में ले जाई गई। इस पर हम अष्टापद की यात्रा के लिये अति उत्सुक हो गये और मार्गदर्शन लेकर चढ़ाई शुरु की। चढ़ाई कठिन थी । आक्सीजन की बहुत अल्पता होने से धीरे-धीरे, करीब 4. 17 घंटे में ऊपर पहुँचे। वहाँ पर गुफा भी दिखी और मन्दिर में जाकर कुछ समय ध्यान भक्ति भी की। मेरे साथ और तीन जैन मित्र थे। मंदिर के पीछे जो पहाड़ है, वह आठ भव्य सीढ़ियों के रूप का ही है। पूरा एक चित्र में नहीं आ सका इसलिये हमने दो चित्र लिये। जिनको मिलाने से आठ सीढ़ियों का अन्दाज लगता है। भगवान आदिनाथ की काया महान थी, ऐसी माना जाता है। भगवान आदिनाथ ( ऋषभदेव) को वेदों में नमस्कार किया गया है, ऐसा मैंने भी सुना है। इसलिये लगता है कि यह बात ठीक होगी। हमें एक यात्री और जैन भाई मिला था, जो कह रहा था कि उसे भी गाइड ने यही बात बताई। इसी आधार पर हमें उस गाइड की खोज की और पावन दर्शन हुए। मैंने भारत भर के सभी कल्याणक भूमियों एवं तीर्थों के दर्शन गत 5-6 वर्ष अनवरत घूम कर किये हैं। पर लगता यह था कि अष्टापद एक ही बच जायेगा। शायद इसी इच्छा की पूर्ति के लिये यह चमत्कार घटा। सब बातें और तथ्य इस तरफ इंगित करते हैं कि यही अष्टापद है। पर मैं तो सामान्य व्यक्ति हूँ कोई शोधकर्ता नहीं । सो शोध का विषय तो शोध वाले ही जानें। पर मेरा भक्त मन और तार्किक दिमाग तो यही कहता है कि यही वह भूमि है।' मैं इन बन्धुओं के सहयोग से प्राप्त 4 चित्रों को भी यहाँ प्रकाशित कर रहा हूँ। इन चित्रों में प्राचीन मन्दिर एवं आसपास का धृश्य दिखाया गया है। किसी भी दिशा से 8 पर्वतचोटियाँ एकसाथ नहीं आती हैं। इसी बीच मुझे 'गोलालारे जैन जाति का इतिहास' पुस्तक मिली। इसके पृष्ठ 126 134 पर ब्रह्मचारी लामचीदासजी द्वारा श्री कैलाश क्षेत्र की यात्रा का विवरण प्रकाशित किया गया है। अपरिष्कृत हिन्दी में लिखा यह यात्रा विवरण - इस प्रकरण पर व्यापक प्रकाश डालता है एवं इसमें स्वयं द्वारा दर्शन करने का पूर्ण यात्रा विवरण दिया गया है। सभी पत्र एवं विवरण यह पुष्ट करते हैं कि कैलाश पर्वत में अभी भी मूल निर्वाण भूमि स्थित है, जो वर्तमान बद्रीनाथ में नव स्थापित निर्वाण भूमि से भिन्न है जिसका प्रचार एवं संरक्षण आवश्यक है। मेरा आदिनाथ आध्यात्मिक अहिंसा फाउण्डेशन के पदाधिकारियों से निवेदन है कि वे बद्रीनाथ में नव स्थापित चरणपादुका स्थल पर इस प्राचीन स्थल के बारे में सम्पूर्ण जानकारी एवं यात्रा सुविधायें उपलब्ध करायें जिससे जो उत्साही बन्धु वहाँ जाना चाहें वे जा सकें तथा कम से कम वास्तविक इतिहास लुप्त न हो। प्राप्त सितम्बर 98 68 * 42 / 22, साकेतपल्ली, चिड़ियाघर के पास, लखनऊ - 226001 अर्हत् वचन, अप्रैल 99
SR No.526542
Book TitleArhat Vachan 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size23 MB
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