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________________ टिप्पणी-1 अर्हत् वचन (कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर नमिनाथ जैन मंदिर कड़ौद कला - नरेश कुमार पाठक* मध्य प्रदेश के धार जिले की बदनावर तहसील में कड़ौद कला ग्राम स्थित है, यह बदनावर से 25 कि.मी. दूरी पर स्थित कोंद नामक ग्राम से 12 कि.मी. दक्षिण में स्थित है। यह 22° 47' उत्तरी अक्षांस 75° 13' पूर्वी देशान्तर में स्थित है। यहां पर नमिनाथ जैन मंदिर, लगभग 19 वीं शती ई. का, श्रीराम मंदिर एवं विष्णु मंदिर तथा अनेक परमार कालीन प्रतिमायें सुरक्षित हैं। नमिनाथ जैन मंदिर मूलत: 16 वीं शताब्दी का प्रतीत होता है, जिसे लाल बलुआ पत्थर की निर्मित लगभग एक मीटर ऊँची जगतीपर सप्त रथी योजना में निर्मित किया गया है। मंदिर पूर्णत: नागर शैली में निर्मित है, जिसमें मण्डोवर (जंघा) भाग तक के प्रत्येक रथ को कुंभ, कलिका, अन्तर पट्टिका तल छन्द, बंधन वराण्डिका एवं छज्जी जंघा का रूप दिया गया है। यह मंदिर, प्राचीन मंदिरों की भांति अलंकृत तो नहीं है, परन्तु प्रस्तर खण्डों को बहुत ही सुरूचिपूर्ण ढंग से तराशकर संलग्न किया गया है। जिस तरह से प्राचीन मंदिरों में जंघा भाग में ऊर्ध्व वास्तु स्तंभ खण्ड संलग्न किये जाते थे, उसी का अनुकरण किया गया है। जंघा के ऊपर शिखर पर अन्य अंग बने हुये है। मंदिर नागर शैली का है, जो अपने समय का भव्य देवालय रहा है। आधुनिक रंगों की पुताई के कारण इसकी प्राचीनता नष्ट हो गयी है। कुछ समय पूर्व जीर्णोद्धार किया गया है, जिससे गर्भगृह की प्राचीनता का आभास ही नहीं होता है। गर्भगृह चौकोर है, जिसके देव कक्षासन पर नमिनाथ की आधुनिक प्रतिमा प्रतिष्ठापित है। वितान घण्टानुमा है। देवालय में गज व्याल का प्रमाण के रूप में प्रयोग किया गया है। तीनों ओर जंघा के मुख्य रथ पर देव कुलिका बनी है, जो प्रतिमा विहीन है। प्रवेश द्वार सादा है, जिसमें तीन शाखाओं में क्रमश: चांवर धारिणी, द्वारपाल एवं पद्म धारिणी अंकित है। प्रवेश द्वार के ललाट बिम्ब पर आधुनिक संगमरमर की योगासन में तीर्थंकर प्रतिमा है। उतरंग तीन स्तंभ शीर्ष पर कलश युक्त है। अन्तराल की दोनों दीवालों में देव कुलिकायें हैं। अन्तराल के स्तंभ शीर्ष पर मारवाही चतुर्हस्ता कीचक संलग्न है। मण्डप स्तंभ विहीन आयताकार है, जिसका वितान गजपृष्ठाकृत है, जिसका मुख मण्डप दो स्तंभों पर आधारित है, इसके स्तंभ मराठी शैली के है, जो क्रमश: नीचे से चौकोर अष्टकोणीय गोल एवं कीर्ति मुख अलंकरण युक्त षोडस कोणीय है। दोनों स्तंभों के मध्य मेहराव लहरियादार एवं राजस्थान की आमेर शैली से प्रभावित है। मंदिर में एक देवनागरी लिपि का अभिलेख विक्रम संवत् 1998 (ई. सन् 1941) का उपलब्ध है, जिसमें जीर्णोद्धार कराये जाने का उल्लेख है। अभिलेख से ज्ञात होता है कि विक्रम संवत् 1998 (ई. सन् 1941) में धारा नगरी के राजा आनन्दराव पवार के राज्य में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया। प्राप्त - 20.8.98 * संग्रहालयाध्यक्ष, केन्द्रीय संग्रहालय, ए.बी. रोड, इन्दौर फोन : 700734 अर्हत् वचन, अप्रैल 99
SR No.526542
Book TitleArhat Vachan 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size23 MB
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