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________________ श्रेष्ठ पुरुष - पुरुषोत्तम मानकर आदर प्रदान किया है। आचार्य मानतुंग ने तो हरि-हर आदि के सद्गुणों के अनुरूप उनमें अपने इष्ट की कल्पना तक की है। उनके द्वारा रचित काव्य 'भक्तामर स्तोत्र' के 25 वें श्लोक में भक्ति के प्रवाह में वे कहते हैं - बुद्धस्त्व मेव विबुधार्चित बुद्धि बोधात्, त्वं शंकरोसि भुवनत्रय शंकरत्वात्, धातासि धीर शिवमार्ग विधेर्विधानात्, व्यक्तं त्वमेव भगवन पुरुषोत्तमोसि।" 'हे भगवन! अपूर्व बुद्धिबोध के कारण आप ही बुद्ध हैं, समस्त विश्व कल्याणकर्ता होने के कारण आप ही शंकर हैं, मोक्षमार्ग के आदि प्रवर्तक होने के कारण आप ही प्रजापति ब्रह्मा हैं तथा मानवों में श्रेष्ठ होने के कारण आप ही पुरुषोत्तम विष्णु हैं।' हिमालय - हिमगिरि पर विहार करते समय परम पूज्य दिगम्बर जैन संत मुनि श्री विद्यानन्दजी ने सन् सत्तर के दशक में बदरिकाश्रम की यात्रा की थी। बद्रीनाथ मन्दिर के प्रधान श्री रावल के साथ घृतदीप के प्रकाश में, अभिषेक के काल में, बद्रीनाथ कही जाने वाली इस प्रतिमा का सूक्ष्म दृष्टि से दर्शन करने पर उन्हें भी इस प्रतिमा में पूर्ण वीतराग मुद्रा युक्त जिन प्रतिमा का ही दर्शन हुआ था। नवनिर्मित जैन सभागार का दृश्य देहली-सहारनपुर रेल मार्ग पर हरिद्वार रेलवे स्टेशन से तीन सौ किलोमीटर दूर स्थित बद्रीनाथ के लिये मोटर मार्ग है। हरिद्वार से बसें ऋषिकेश, देवप्रयाग, श्रीनगर, जोशीमठ, गोविन्दघाट होते हुए बद्रीनाथ मंदिर के समीप तक जाती हैं। बद्रीनाथ में यात्रियों के विश्राम हेतु धर्मशालायें एवं शासकीय गेस्ट हाउस हैं। एक जैन धर्मशाला का निर्माण भी हो चु है। यहीं एक भवन में नवनिर्मित चौबीस वेदियों पर चौबीस तीर्थंकरों के चरण भी स्थापित किय जा रहे है। इस क्षेत्र की उन्नति हेतु 'आदिनाथ आध्यात्मिक अहिंसा फाउण्डेशन' विशेष प्रयत्नशील है। इसके इन्दौर कार्यालय का पता है - 50, सीतलामाता बाजार, इन्दौर - 452001 56 अर्हत् वचन, अप्रैल 99
SR No.526542
Book TitleArhat Vachan 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size23 MB
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