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૧૬ જાન્યુઆરી, ૨૦૦૬
આત્મહિત સાધી શકતો નથી.
જ્ઞાની માણસ જ પુણ્ય-પાપ આદિ જાણી શકે છે અને આ લોક-પરલોક સુધારવા સાથે રત્નત્રયીની આરાધના દ્વારા શિવસુખ પામી શકે છે.
પ્રબુદ્ધ જીવન
સ્વર્ગસ્થ ડૉ. રમણલાલ ચી. શાહે પોતાના સમગ્ર જીવનકાળ દરમિયાન શ્રદ્ધાપૂર્વક જ્ઞાનાચારની સુંદર આરાધના કરવા દ્વારા જૈન કૂળને અને પોતાના સમસ્ત જીવનને ઉજ્જવળ બનાવ્યું છે, शोलाव्धुं छे.
સમ્યગ્દર્શન વધુ ને વધુ નિર્મલ બનવા સાથે ભવાંતરમાં પણ એમની જ્ઞાનાચારની આરાધના થા૫ની ચાલુ રહે અને તેઓ શીઘ્ર આત્મચિત સાથે એ જ શુભાભિલાષા.
भाईश्री डॉ. रमणभाई ने हमारे बीच से पार्थिव देह से चिर बिदाई से ली। परिवार में व्यक्ति वियोग की व्यथा सहज है ही किन्तु जिनशासन में एक प्रकांड विद्वान तथा आगमपाठों के साथ गहन तत्त्वज्ञान के तलस्पर्शी विवेचक की अपुरणिय क्षति हुई है जिसकी पूर्ति वर्तमान में संभव नहीं!
એમની સાથેનો મારો પરિચય ૧૦/૧૨ વરસથી પત્ર દ્વારા જ થયેલી છે. અને પ્રત્યક્ષ ક્યારેય મળ્યા નથી. તેઓશ્રીએ ભારા પ્રકાશનો (જોડાક્ષર
'जैन जगत के प्रकांड विद्वान साहित्य दिवाकर डॉ. रमणलाल शाह'
पू. साध्वी निपुणाश्रीजी महाराज रायपुर
सांसारिक संबंध में भाई होने के कारण मुझे दीक्षा की आज्ञा दिलाने में भी आपका पूर्ण सहयोग रहा। अद्यपर्यन्त आप द्वारा लिखित लगभग सभी ग्रंथ पोस्ट से प्राप्त होता रहा एवं उन ग्रंथों का स्वाध्याय अनवरत सामूहिक रुप से चल रहा है । सहज सरल भाषा में अध्यात्म को आगम पाठ से प्रमाणित करते हुए इतना विशद विवेचन किया है जिसका वांचन करते करते हृदय बडा गद्गद् होता है एवं मस्तिष्क अहोभाव से झुक जाता है।
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आपके द्वारा लिखित और संपादित 'जिनतत्त्व', 'अध्यात्मसार', 'वीर प्रभु ना वचनो', 'प्रभावकस्थाविरो', 'ज्ञानसार' के 'जैन धर्मना पुष्पगुच्छ 'सांगत सहचिंतन' आदि ग्रंथ आध्यात्मिक जीवन शैली प्रदान करने में पूर्ण सक्षम है साथ ही रास आदि में महापुरुषों के जीवन का सजीव वर्णन बहुत ही रसप्रद सधी हुई शैली में किया है । 'पासपोर्ट नी पांखें' पुस्तक में वैदशिक जीवन शैली का आबेहूब चित्रण हुआ है जिसमें वाली द्विप में मनाये जाने वाले पर्व की पद्धति में प्राय: जैनों की उत्कृष्ट आराधना संवत्सरी के समकक्ष की अनुभूति कराता है। 'प्रबुद्ध जीवन' में तथा साहित्य सर्जन के क्षेत्र में आपकी बहुमुखी प्रतिभा का दिग्दर्शन होता है। निष्कर्ष की भाषा में आप जीवन पर्यन्त
आध्यात्मिकता में निमग्न रहे ।
दो-तीन माह पूर्व आपने लिखा था कि अभी ज्ञानसार का अनुवाद चल रहा है पश्चात् जैन पारिभाषिक शब्दकोष तैयार करना है, शायद प्रारंभ किया ही होगा।
बम्बई के हमारे पांच चातुर्मास में भी पुन: पुन: आपका आगमिक मार्गदर्शन मिलता रहा। महाकौशल प्रदेश बालाघाट में भूतकालिन शिबिर छात्र सम्मेलन में आपका प्रेरक प्रभाविक उद्बोधन रहा । महाकौशल जैन श्वे. मूर्तिपूजक संघ के आमंत्रित अतिथि रहे । दूसरी बार रायपुर में छात्राओं की शिबिर में संघ के आमंत्रण से आप सपत्नी पधारे थे । सहज सरल उद्बोधन में प्रभाविकता थी । तीसरी बार चार दिन का प्रवास रहा । चित्रकूट आदि स्थान पर्यटन साथी भाई राजेन्द्र धीया थे तब भी घंटों तक कितनी अनुभव वार्ता का रसपान कराया जो आज भी स्मृतिपट में चिरस्थायी है। सांसारिक बड़े भ्राता के रूप में अवश्य सहज हितचिंतक के रुप में हमारे संयमी जीवन के बहुमान साथ औचित्यपूर्ण व्यवहार रहा । बृहद् भगिनी परम पूज्या कुसुमश्रीजी म. सा. से आपने काफी ज्ञान से जीवन को भावित किया था।
વિચાર’ અને ‘ગુજરાતી લિપિ'ની પ્રસ્તાવના લખી આપી હતી અને મારા ૨-૪ લેખો ‘પ્રબુદ્ધ જીવન'માં પ્રગટ કર્યા હતા.
મારા પ્રત્યે તેમ જ મારાં પ્રકાશનો પ્રત્યે સંપૂર્ણ સંભાવ ધરાવતા હતા, એથી મારાં ઉપર્યુક્ત બે પ્રકાશનોની એમી સુંદર પ્રસ્તાવના લખી આપી હતી. તેઓશ્રીની લેખનશૈલી ખૂબ રસાળ હતી. પુસ્તક હાથમાં લીધા પછી મૂકવાનું મન ન થાય. એક વાર મેં પત્ર દ્વારા એમને પૂછેલું કે તમારા નામના અક્ષરો રમણલાલ ‘સી' શાહ લખવા કે રમણલાલ ‘ચી’ શાહ લખવા ? જવાબમાં એમણે મને લખેલું કે અંગ્રેજીની રોમન લિપિ અનુસાર ‘સી' શાહ લખી શકાય. પણ મને ‘ચી’ શાહ જ પછે.
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तेस्रो श्री ' थी' शाह (द्दीर्घ ४) समता हता. पशु 'शिभनदास'ना ચિ - શ્રી અંગે મારે એક વિદ્વાન સાથે થયેલી ચર્ચા દ્વારા 'ચિ' (ચિમનલાલ) સાચું હોવાનું જાણવા મળ્યું હતું. ***
पादरा निवासी अमृतलाल वनमालीदास कुटुम्ब के गौरवपुत्र पिता चोमनभाई शाह के कुलदीपक चि. रमणभाई पार्थिव शरीर से हमारे मध्य नही रहे किन्तु आपके सत्साहित्य रुप विरासत हमारे साथ है । उक्तं च
परिवर्तिनी संसारे, मृतः को वा न जायते । सजातीयेन जातेन पाति वंश समुतिम् ।।
परिवर्तनशील संसार में जन्म साथ मृत्यु अविनाभावि है किन्तु जन्म उनका ही सार्थक है जिनके द्वारा कुटुम्ब संघ समाज गौरवान्वित है ।
'ज्ञान क्रियाभ्याम् मोक्षः तत्त्वार्थ का सूत्र आपके जीवन में चरितार्थ था । आप कहते थे विदेश प्रवास से पूर्व सिद्धगिरि की यात्रा का भाव रहता है। तथा वहां विशिष्ट व्यक्ति को प्रदान करने हेतु प्रायः परमात्मा की प्रतिमा साथ से आते थे हम पालीताणा थे तब पुत्र अमिताभ का अध्ययन हेतु शायद प्रवास होगा, तब प्लेन से भावनगर होकर पालीताणा तीर्थयात्रा तथा हमारे दर्शन लाभ का भी खास निर्देश आपका रहा ।
आते ऐवं पृच्छा करते तो आप कहते सुबह सामायिक, पूजा पश्चात ही समागम जैन इतिहास के प्रखर विद्वान अगरचंदजी नाहटा आपसे मिलने मुंबई हो सकेगा ।
कि जैनत्व से अपरिचित को जैसा की पहचान हेतु संगठित करने में विविधता मैने एक वक्त पर्युषण व्याख्यानमाला के विषय में बातचीत की तो कहा
जैतत्व
जरुरी है, जो अनेक विषयों के विद्वान शासन के प्रमाणित वक्तव्य से सुप्त चेतना को जागृत करने का प्रयास है, किन्तु वास्तविक तो जो परंपरा है वही एवं में भी समय मिलते उसी स्थान पहुंचता हूं यानि संस्कृति का भी कितना गौरव था।
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आपकी एक विशिष्ट प्रकृति थी कि कभी भी पत्र सामान्य हो या विषयगत प्रश्न वाले हो प्रत्युत्तर अविलंब प्राप्त होता था । वीर प्रभु के वचन भाग-1 यहां हिन्दी भाषा का विमोचन कुमारपालभाई वि. शाह के हाथों हुआ था । जिनतत्त्व भाग-1 का हिन्दी भाषा में प्रकाशन होने जा रहा है। आगे सभी भाग प्रकाशित हो यह पुरुषार्थ है । भावि भाव ज्ञानीगम्य है । आप की संस्था से प्रकाशित जिनवचन ग्रंथ हमें भी बहुत उपयोगी रहा तथा विशिष्ट व्यक्ति बहुमान भाव से स्वीकृत करते हैं।
एक आध्यात्मिक साहित्य क्षेत्र का द्वार अवरुद्ध हो गया । उपलब्धि का ऐक स्रोत रुक गया । अन्त में आप की आत्मा जहां भी पहुंची हो वहां आपकी साधना अविराम प्रगतिशील रहे ! इसी सद्भावों के साथ..