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ameramaneeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeee ३०० 'अशुद्धन.
ता० १५-७-33
हिन्दी विभाग. (पचविसे) २८ चरनागरे २९ धाकड ३० कटनेरा ३१
पोरवाड ३२ पोरवाड (जांगडा) ३३ पोरवाड (जांगडावीसा)
३४ धवल जैन ३५ कासार ३६ बधेरवाल ३७ आयोध्यावासी दिगम्बर जैन जातिया।
(तारन पन्थ) ३८ आयोध्यावासी ३९ लाड जैन ४० (लेखक:--माणिकलाल अमोलकचन्द भटेवरा) कृष्णपक्षी ४१ काम्बोज ४२ समैय्या ४३ असाटी ४४
संसार के किसी भी धर्म को लीजिये; उसमें आंतरिक दशाहूमड ४५ बीसाहूमड ४६ पंचम ४७ चतुर्थ ४८ बदनेरे भेदभाव, शाखाएं प्रशाखाएं तो होगी ही, जैसे कि बौदा ४९ पापडीवाल ५० भवसागर ५१ नेमा ५२ नरसिंहपुरा में हीनयान, महायान, ईसाइयों में रोमन कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट, बीसा ५३ नरसिंहपुरा दसा ५४ गुर्जर ५५ सैतवाल ५६ मुसलमानों में शिया, सुन्नी, जैनों में श्वेताम्बर; दिगम्बर, मेवाडा ५७ मेवाडा (दसा) ५८ नागदा (बीसा) ५९ स्थानकवासी तेरापन्थी आदि । किसी भी धर्म का संस्थापक नागदा (दसा) ६० चितोडा (दसा) ६१ चितोडा (बीसा) तेा संसार कै-समाज के भले के लिये ही धर्म का स्थापन ६२ श्रीमाल ६३ श्रीमाल दसा ६४ सेलबार ६५ श्रावक ६६ करता है; वह स्वयं तो ये भेदभाव के बीज बो ही नहीं सादर (जैन) ६७ बोगार ६८ वैश्य (जैन) ६९ इन्द्र (जैन) सकता । फिर प्रश्न उठता है कि ये आंतरिक भेदभाव आये ७० पुरोहित ७१ क्षत्रिय (जैन) ७२ जैन दिगम्बर ७३ तगर कहां से ? मनन करने से ज्ञान होता है कि प्रत्येक धर्म पर ७४ चौधले ७५ मिश्र जैन ७६ संकवाल ७७ खुरसाले ७८ पडौसी धर्मों का और देशकालानुसार अन्यपरिस्थितिओं का हर दर ७९ उपाध्याय '८० ठगर बोगार ८१ ब्राह्मण जैन प्रभाव पड़ता है; और इन प्रभावों और परिस्थितिओं के अनुसार ८२ गांधी ८३ नाई जैन ८४ बढई जैन ८५ पोगरा जैन धर्म की आंतरव्यवस्था में परिवर्तन करने या न करने पर ८६ सुकर जैन ८७ महेश्री ८८ अन्य धर्मी. अस्तु. आपस में मतभेद हो जाता है; और प्रत्येक पक्ष अपना कक्का कोई कोई शाखा में तो तीन तीन या चार चार तक ही खरा करने के लिये अपने को एक जुदा पन्थ मानने लगता घर हैं । और इतनी अल्पसंख्यक होने से बेटी व्यवहार का है। इस भेदभाव का फल यह होता है कि धर्म का असल क्षेत्र संकुचित होने के कारण वे बड़ी तेजी से नाश के मुँह में ध्येय (Goal) लुप्त हो जाता है और उसका स्थान रूढिया ले जा रही हैं, फिर भी धर्म डुबने के भयसे दूसरी जातियों से लेती हैं । बौद्ध, ईसाई आदि धर्मों के समान जैन धर्म भी सम्बन्ध करके अपनी रक्षा नहीं कर सकती हैं। प्रति वर्ष 'अपने समयका एक मिशनरी धर्म है। ब्राह्मण (सनातन) धर्म जैन धर्म के अनुयायी कम होते जाते हैं। अगर अब भी न में चलती हुई घोर हिंसा और जाति भेद-उँच नीच भाव को संभले तो शायद बहुत ही थोडे वर्षों में जैन धर्म का अस्तित्व नाश करना ही जैन धर्म का उद्देश्य है। फिर भला जैन धर्म केवल इतिहास के पृश पर ही रह जायगा। में ही जिस की दृष्टि में न कोई उँच न कोई नीच ही हो महावीर पुत्रों, जागों, अब तो इन अन्तर्भदों को दुर करो सकता है, जातिभेद और उँच नीच भाव हो यह क्या कम और जैन धर्म की रक्षा करो।
तथास्तु । आश्चर्य और दुख की बात नहीं है ?
- બાલ્યા એ દુર્ગાભાઈ સાથે એ કેટું થયું છે? કેટલાકનું માનવું ___ आज जैन धर्म के अनुयायियों की क्या दशा है ? शनैः को माध्यमे सारना राना पैसा 11211 . त शनैः ब्राह्मण धर्म की तरह उनमें भी सौ से अधिक शाखा हिन मापने श्रीहने मालामा सा३ रे मा0 8481 पापना प्रशाखाएं हैं । दिगम्बर जैनों में नीम्न लिखित जातिया..हुता तेती स्त्रीय २is शमी २था छ!
અમારી મોટી સંસ્થાના પૈસા તળીયા ઝાટક સાફ થઈ १ खंडेलवाल २ अग्रवाल ३ जैसवाल ४ जैसवाल
* ગયા છે. એવા ડખ્યા છે કે પાઈ પણ વસુલ ન થાય! ધરમના (दसा) ५ परवार ६ पद्मावती परवार ७ परवार द प ५ भार परना पैसे 841 432. भारे निवृत्तिनी ८ परवार (चोसके) ९ पल्लीवाल १० गोलालारे ११ बिनैक्या वेणा Gपाधियानो पार नथा. हुत शु ?' १२ नूतनजैन-१३ ओसवाल १४ ओसवाल (वीसा) १५ 16, न मुळा, पमा
શ્રીપાળ મહારાજને કેવા કષ્ટો વેઠવા પડયા હતા? અમારી गंगेवाल १.६ बडेले १७ बरैथ्या १८ फतेह पुरिया १९ दि.
11 वभसाथ नया भया. यागमना MYR जैन २० पारबाल २१ बुढेले २२ लोहिया २३ गालसिंघारे माया-मारी शासन भाटेनी की Era 'सा २४ खैराबा २५ लमेचु २६ गोलापूर्व २७ गोलापूर्व
(अनुसंधान पृ. २८५ ७५२.) આ પત્ર મનસુખલાલ હીરાલાલ લાલને જેન ભાસ્કરોદય પ્રિન્ટીંગ પ્રેસ, ધનજી સ્ટ્રીટ, મુંબઈ નં. ૩ માં છાપ્યું છે. અને
ગેકલદાસ મગનલાલ શાહે જૈન યુવક સંઘમાટે ૨૬-૩૦, ધનજી સ્ટ્રીટ, મુંબઈ ૩, માંથી પ્રગટ કર્યું છે.