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neronnoncncucionevezetenenevens પ્રબુદ્ધ જૈન,
d०२०-५-33
૨૩૬
हिन्दी विभाग...
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अपनी समाजका पुनरुत्थान कैसे हो?
-शेठ अचलसिंहजी.
... श्री महाराष्ट्र जैन युवक संघकी नासिकम
(गतांक से चालु.)
(२) अपनी समाज में एक दो व्यक्तियों को अपना ....... स्थापना.
___ अगुआ अवश्य बनाये रखना चाहिये । जो कोई नई बात ता. १.४-५-३३ रवीवार को मेन रोड पर श्रीमान् की जाय वह आपस में प्रेमपूर्वक मिलकर करनी चाहिये । शेठ पृथ्वीराजजी निमाणी के हाथोंसें श्री महाराष्ट्र जैन युवक- अगर एक दूसरे की शिकायत करता है तो या तो रुवरु संघ की स्थापना हुइ, स्थापनेके समय तिनों सम्प्रदाय के सभ्य उपस्थित थे....
बैठकर या किसी योग्य मनुष्य को बिच में डालकर मामलेयहां पर ता. २०-२१-२२ मइ, को नासिक जिल्हा
को या गल्त-फहमी को साफ कर लेनी चाहिये, न कि
बगैर सोचे जो चाहे सो कह डालें या कर डालें। ओसवाल सभा होनेवाली है. इस लिये उसके जोडेसें कार्य- . कर्ताओंको यह भ्रम हुवा की इससे ओसवाल सभा के कार्य ।
(३) हर एक स्थान पर एक धर्म स्थान होना को धक्का लगेगा, क्योंकी ओसवाल सभा और युवक संघक।
चाहिये, जहाँ प्रतिदिन, प्रति सप्ताह अथवा प्रति महीने में बहुतसे कार्यकर्ता एकही है. संघके मुख्य कार्यकर्ता श्री
एक समय तो अवश्य मिलकर धार्मिक संबंधी बातों पर
बिचार किया जा सके जिससे धार्मिक उन्नति होती रहे। माणिकलालजी भटेवरा, और हेमराजजी चंडालीया ने ओसवाल सभा के प्रचारका कार्य फेर जिल्हेमें किया है. इसलिये
(8) व्यक्ति व्यक्ति से गृह 'बनता है, गृहों से समाज कुछ लोग इस संघके स्थापनाको विरोधी थे. इसलिये स्थान बनता है, समाजों से देश बनता है। यदि हर व्यक्ति पना के समय श्रीमान् शेठ चांदमलजी बरमेचा, श्रीमान अपने को संगठित कर लेता है तो परिणाम यह होता है मनोहरमलजी गोटी ओर श्रीमान चुनीलालजी रांका बी. ए. ।
कि समाज और समाज से देश आसानी से संगठित हो में विरोध किया. विरोध करने के लिये श्री. चनीलालजी रांका जाता है । स्थानीय समाज को अपना संगठन करना चाहिये बी. ए. ने संधके स्थापनोत्सवमें न जाने के लिये व्हॉलेंटिय- आ
और जब तमाम गाँव, कस्बे, तहसील और नगर की समाजें रोंको नोटीस दिया था. और छोटे छोटे (व्हॉलेंटियर) बेन्चों संगठित हो जायगी, तब उसका परिणाम यह होगा कि आपका को मारा भी, फिर भी स्थापना के समय सब लोग आये, स
सम्पूर्ण प्रांत अवश्य संगठित हो जायगा। धात अवश्य गाठत.हा जायगा
.. परंतु स्थामनाका निर्णय होनो पर. श्री. चुनीलालजी रांका
कुरीतियों बी. ए. उठकर चले गये तथा आ ओडे सभ्योंको खीचनेकी कुरीतियाँ, जो कि बहुत समय से जैन समाज में कोशीस कों, परंतु असफल रहें. . ..
चली आती हैं,उन्होंने जैन-समाज की जड़ों को खोखला कर चला आ
दिया है और यदि यही हालत रही तो एक दिन वह आएगा ___स्थापना के विरोध के उत्तर में अध्यक्ष महोदय श्री.
जब जैन समाज रुपी वृक्ष बिल्कुल नष्ट हो कर गिर जाएगा। पृथ्वीराजजी निमाणीनें कहां-की यह कोई विरोधी संघ नही
इस-लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि देश, काल-समयानुहै.. किंतु संघ के ओसवाल भाई आपके इस अधिवेशनमें
सार-जो कुरीतियाँ हैं उनको बिल्कुल निमूल कर देना आपको ऐसी मदत देंगे. जिससे आपकी सभा गरीबोंके लिये
चाहिये। तब ही आपः अन्य समाजों की तरह उन्नति कर भी कुछ ठोस काम कर सके तथा दोखावटी प्रस्ताबोम समय सकेंगे। मैं समाज का ध्यान निम्न कुरीतियों की ओर पूरी न होजाय.
दिलाना चाहता हूँ, जिनको शीघ्र दूर करने की अत्यन्त बाद में सारित्यरत्न दरबारीलालजी न्यायतीर्थ ने कहा आबश्यकता है:-
[अपूर्ण.] के ओसवाल सभा समाज सुधारक कार्य करे ऐसी इस संध की आवश्यकता है. क्योंकी ओसवाल सभा उतनेही कार्य
इसके बाद कुछ चर्चा हुवा तब विरोधी भाइयोंका
समाधान होने पर सर्वानुमत से संघको स्थापना हुइ. ऐसा कर सकती है जितने पर सभा से काम लिया जा सके. जब
निर्णय हुवा. : . . की संघका कार्यक्षेत्र इससे विशाल है. यह संध तिनों सम्प्र
- संधके सेक्रेटरी श्रीयुत् माणिकलालजी भटेवराने संघका दायोंके लिये तथा समस्त महाराष्ट्र के लिये है. तिनों सम्प्र- उद्देश पढकर 'सुनाये, और संघ की स्थापना हुइ. नासिक दायोंकी हफताकी इस समय कितनी आवश्यकता है इसके जिल्हेकी बहु संख्यांक जैन समाज संघसे परिचित है. और कहनेकी जरुरत नहीं है, इत्यादि!
उसमें सहानुभूति रखती है... આ પત્ર મનસુખન્નાજ હીરાલાલ.લાલને જૈન ભાસકરોદય પ્રિન્ટીંગ પ્રેસ, ધન સ્ટ્રીટ, મુબઈ નં. ૩ માં છાપ્યું છે. અને
ગિકલદાસ મગનલાલ શાહે “જૈન યુવક સંઘમાટે ૨૬-૩૦, ધનજી સ્ટ્રીટ, મુંબઈ ૩, માંથી પ્રગટ કર્યું છે.